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एक सच्चे लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आयें हम 

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राजीव थेपड़ा 

Let us come forward to protect a true democracy : जिसे अपना वोट देते हैं हम, क्या वह इसके लायक भी है ? दोस्तों ! हम जिसे वोट देते हैं, क्या उसके पिछले जीवन की जानकारी के लिए अपने दस मिनट भी खर्च करते हैं, जिसे हम अपनी, अपने शहर, अपने राज्य व अपने देश की सुरक्षा-प्रशासन और अन्य जिम्मेवारियों को निभाने की बागडोर वह भी महज एक मिनट में, केवल एक ठप्पे में या कहूं कि एक मजाक की तरह सौंप देते हैं… क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं है….??

यह तो गनीमत है दोस्तों कि पूरी व्यवस्था में अब भी कुछेक इतने-इतने भीषण ईमानदार लोग बचे हुए हैं, जो बेईमानों की राह में चट्टान बन कर खड़े हो जाते हैं…जिनका एक साइन करोड़ों के घपले कर उन्हें भी करोड़पति बना सकता है…वह अपने खकपति रहने को स्वीकार कर देश की व्यवस्था को काफी हद तक सही बनाये रखने की कोशिश करते हैं…वरना, बहुत से लोग अंदर-ही-अंदर देश को पूरा-का-पूरा ही बेच खाये…..!!

हर 05 वर्ष बाद समय हमें यह अवसर देता है कि हम अपने द्वारा की गयी कम से कम उन त्रुटियों को तो सुधारें, जिनके कारण हमारी खुद की स्थिति बद से बदतर हुई चली जाती है !  हम न केवल ऐसे व्यक्तियों का अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनाव करें, जो वास्तव में समदर्शी हों, हमारे हितों की रक्षा के लिए कुछ भी करने को व्याकुल हों और सबसे बड़ी बात उसके हृदय में देश के प्रति और अपने क्षेत्र की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता की भावना हो। यदि ऐसा कोई उम्मीदवार हमें दिखाई नहीं देता, तो नि:संकोच हमें किसी भी वैसे उम्मीदवार को अपना वोट नहीं देना चाहिए, जो उपरोक्त गुणों से युक्त नहीं हों।

अपने पराये का भेद नहीं करके, इस जाति या उस जाति का भेद नहीं करके, इस धर्म या उस धर्म का भेद नहीं करके, इस प्रकार अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को नहीं साधते हुए, हमें केवल और केवल हम सभी के हितों का बराबर ख्याल करनेवाले, अपने क्षेत्र को अच्छी तरह से समझनेवाले, अपने क्षेत्र के सभी प्रकार के लोगों के साथ सामंजस्य रखनेवाले, बिना किसी पक्षपात के लोगों के साथ न्याय करनेवाले, इस प्रकार हमारे एक सच्चे हितैषी व्यक्ति को ही अपना प्रतिनिधि बनने की जिद होनी चाहिए। 

फिर, यह केवल हमारे हित का प्रश्न नहीं है। ओवरऑल हर क्षेत्र के नागरिकों का वास्तविक हित भी तो इसी में है कि हमारे प्रत्येक उम्मीदवार सस्ते और कचरे के डिब्बे ना होकर, महंगे और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हों और हर एक विषय को समझने में भी समर्थ हों। जब तक हम अपने लिए गलत प्रतिनिधियों को अपनी विधानसभाओं और संसद में भेजते रहेंगे, तब तक हम अपने देश और समाज में किसी भी वास्तविक परिवर्तन की आशा भी नहीं कर सकते और ऐसी आशा करने का हमें कोई अधिकार भी नहीं ! 

हम तरह-तरह से इस लोकतंत्र में खुद को ठगते हैं दोस्तों !! कोई दारू…कोई भय…कोई किसी अन्य लालच…कोई अनभिज्ञता के कारण…तो कोई पढ़ा-लिखा होने के बावजूद किसी लहर किसी भावना के वशीभूत होकर अपना वोट एक बिलकुल वैसे अनजान व्यक्ति को दे आते हैं…जिसके बारे में हम कदापि नहीं जानते कि वह इस ताकत का क्या करनेवाला है…..!!!

केवल अपने मत का प्रयोग करना ही नहीं, अपितु अपने उस मत का उचित उपयोग करना ही वास्तविक लोकतंत्र की सफलता की सबसे बड़ी कसौटी है और इस कसौटी पर हमारे उम्मीदवारों से पूर्व हमें खुद को खरा उतारना समय की चुनौती है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का खिताब पानेवाले हम सभी लोगों को अपने लोकतंत्र की गरिमा का एहसास भी होना चाहिए और साथ ही अपने देश के गौरव का भी। 

 …तो, यदि हम अपने लिए गलत प्रतिनिधियों को चुनना ही छोड़ देंगे, तो अपने आप इस देश को गर्वित करनेवाले लोग आगे बढ़ कर हमारे प्रतिनिधि बनने को उत्सुक होंगे। क्योंकि, जब तक हम गलत प्रतिनिधियों को चुनने की अपनी मंशा जाहिर करते हैं, तब तब हमारे बीच से ऐसे लोग विगलित होते हैं, जो वास्तव में हमारे लिए चिंतित होते हैं…अपने देश के लिए सुचिंतित होते हैं ।…तो, कुल मिला कर हमारे अपने न्यस्त स्वार्थ चाहे जैसे भी हों, किन्तु हमें अपने देश के हितों का विचार सर्वप्रथम रखना चाहिए। 

देश हमारे लिए सदैव सर्वोपरि होना चाहिए और तब हम देखेंगे कि हम कभी भी निकृष्ट प्रतिनिधियों को चुन ही नहीं पायेंगे। क्योंकि, जब तक हम छोटे-छोटे खानों में बंटे उन छोटे-छोटे खानों के लिए ही टुच्चे प्रतिनिधि ढूंढते रहेंगे, तब तक हमारे स्वयं की डोर उन गुंडों, मवालियों और बाहुबलियों के हाथों में थमी रहेगी, जिनके भय से समाज कांपता है और तब तक यह देश विभिन्न छोटे-छोटे समूहों की आपसी लड़ाई भर बना रहेगा। हमारे देश में कभी कोई वास्तविक सांसद या विधायक बन ही नहीं पायेगा।

…तो, हमारे इस युवा हो चुके लोकतंत्र को चलाने के लिए इस प्रकार के क्षमतावान लोग ही चाहिए, जो व्यापक परिप्रेक्ष्य में विषयों को समझते हुए, इस वर्तमान ग्लोबल विश्व में अपने देश के मान और महत्त्व को जानते हुए, उसे और ऊपर, और ऊपर, और ऊपर उठाने के प्रयासों में अपने आप को झोंक दें। स्वाधीनता के पश्चात ऐसे अवसर कम ही आये हैं, जब हमारी बागडोर ऐसे प्रतिनिधियों के हाथों में आ सकी हो। किन्तु, अब हमें स्वयं के भीतर झांकते हुए सबसे पहले अपने भीतर ही उन विचारों को जन्म देना होगा, जो एक देश को सामूहिक रूप से बदलते हैं…एक देश को सामूहिक रूप से चलाते हैं और छोटे-छोटे समूह ना होकर एक विशाल समुच्च्य बन जाते हैं।

 …तो, समय की यह पुकार है कि हम नागरिक के रूप में अपनी नागरिकता को सर्वोच्च मान देते हुए, सबसे पहले अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए उचित लोगों को अपने लिए उचित अवसर प्रदान करें। और साथ ही अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी उचितरूपेण करें और हां, यदि आपने गलती से किसी ऐसे व्यक्ति को अपने क्षेत्र से जिता दिया है…जो नकारा….असमर्थ…नाकाबिल और हर तरह से भ्रष्ट साबित हो चुका है,  तो क्या ऐसे व्यक्ति को वापस बुलाना अपना अधिकार नहीं…. ? …तो आईये, अब राईट तो रिकाल का भी निनाद करें…. इस आन्दोलन को अपने जज्बे के साथ-साथ दें…देश को हमारी सच्ची आवाज़ की और हमारे स्वयं के भी ईमानदार और सच्चे प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है…!!

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