राजीव थेपड़ा
Life…every day is a new morning…new warmth…new energy!! : जीवन में हर रोज ऐसा होता है कि हम उसको किसी न किसी से धोखा मिलता है और अपने जीवन में मिलने वाले धोखों के अनुपात में हमारा दूसरों पर विश्वास या अविश्वास कायम होता है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि हम अतीत में जिस प्रकार के घटना क्रम से गुजरते हैं, उसी के अनुसार हमारा मानस निर्मित होता है और उसी के अनुसार हम अपने जीवन में आने वाले नये व्यक्ति का स्वागत या अस्वागत करते हैं।
यूं देखा जाये, तो जीवन में धोखा देने वाले लोग बहुत ज्यादा नहीं होते। लेकिन, हम उनसे खाये हुए धोखे को अपने जीवन भर तक फैला लेते हैं, इसलिए हमें अपना जीवन धोखे से भरा लगने लगता है। वरना कदम-कदम पर साथ चलनेवाले, हाथ में हाथ पकड़ कर चलनेवाले, हमें अंगुली पकड़ कर चलना सिखानेवाले, हमें अपने प्यार से ओत-प्रोत करनेवाले, हम पर अगाध विश्वास करनेवाले और हमें अपनी ऊर्जा से भर देनेवाले न जाने कितने ही लोग हमें अपने जीवन में मिलते हैं। तथापि बहुत बार तो हम स्वयं भी उनकी कदर नहीं कर पाते और बहुत बार हम इतनी तेजी से आगे बढ़ जाना चाहते हैं कि हमें अपने जीवन में आनेवाले लोगों का वास्तविक परिचय तक नहीं हो पाता !!
ऐसे में बहुत बार तो ऐसा भी होता है कि हम जिसे धोखा समझ रहे होते हैं, वह कहीं ना कहीं हमारी ही कोई गलतफहमी होती है और क्योंकि एक बार जिस चीज को हम धोखा समझ लेते हैं। फिर हम उसे अपने हृदय से लेकर मस्तिष्क तक में और अपने समाज में उसको उसी प्रकार प्रचारित और प्रसारित करते हैं। इस प्रकार एक ही गलत बात हमारे ही आसपास बार-बार प्रचारित और प्रसारित होते हुए हम सबको एक तरह की नेगेटिविटी से आप्लावित कर देती है। इस प्रकार समाज के लोग अपने साथ हुई छोटी-छोटी घटनाओं को भी धोखे के रूप में महसूस करना शुरू कर देते हैं और इस प्रकार हम ऐसी चीजों को भी धोखा समझने लगते हैं, जो वास्तव में उसे रूप में नहीं होता !
कई बार अपनी अति बुद्धिमानी या अबुद्धिमानी के चलते भी हम अपने जीवन को एक ऐसा आकार दे देते हैं। इसमें सकारात्मकता का स्थान बहुत ही कम रहता है ! लेकिन, जीवन में ऐसा बिलकुल भी नहीं है, क्योंकि जीवन हर दिन नयी उमंग, नयी ऊर्जा और नयी तरंग से ओत-प्रोत होता है। यदि जीवन के उस रूप को हम देखना चाहें, तो हमें वही दिखाई देता है और यदि नहीं देखना चाहें, तो यह केवल और केवल हमारी मर्जी है !! यह बिलकुल वैसा ही है कि जैसे प्रकाश हमारे चारों तरफ फैला हुआ है। लेकिन, हम अपनी आंखें मूंदे में बैठे हैं और हमें अपनी चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है, तो फिर ऐसी मानसिकता का क्या किया जाये ?? जीवन हरगिज, हरगिज, हरगिज ऐसा न कभी था और ना कभी रहेगा ।।
…तो, यह केवल और केवल अपने ऊपर निर्भर है कि हम जीवन को किस तरह लेते हैं कि हम एक व्यक्ति से मिले हुए धोखे को अगर दूसरे व्यक्ति के ऊपर लागू करके इस प्रकार जीना शुरू करेंगे, तो यह दूसरे व्यक्ति के साथ कुठाराघात होगा और जीवन सदैव आगे की ओर सोच का नाम है। पीछे मुड़ कर देखना केवल सीखने भर तक के लिए तो अच्छा है, लेकिन पीछे को अपने आप से पूरी तरह से चिपकाये रखना, उसके चलते आनेवाले कल की गरिमा को नष्ट करने के समान होता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि सूरज हर दिन रोज की भांति निकलता है। हर दिन अपनी नव ऊष्मा, नव ऊर्जा और नया सवेरा हमें प्रदान करता है और साथ ही हर सुबह एक नयापन, एक नयी ताजगी लेकर आती है।…तो जब सृष्टि में हर दिन हर कुछ नया-नया और नया ही घटित होता चला जा रहा है।…तो हमें भी अपने जीवन में आनेवाले प्रत्येक मनुष्य को नये की तरह ही देखना चाहिए । यदि हमने किसी एक को भी पुराने की भांति देखा, तो यह जीवन के साथ अन्याय होगा। …तो इस प्रकार जीवन की गरिमा केवल और केवल इसी में है कि हम आने वाले जीवन को उसकी गति को, उसके आयाम को, उसकी ऊर्जा को अपनी समूची अभीप्सा के साथ जियें। अपनी समूची सकारात्मकता के साथ जियें। अपनी सम्पूर्ण जिजीविषा उसमें उड़ेल दें। अपने आप को जीवन में समर्पित कर दें। तब हम देखेंगे, जीवन जैसा भी है और इसने हमें जो भी दिया है और जो कुछ भी हमें दे रहा है, वह हमारे लिए अमृत तुल्य बन जायेगा ।।