डाॅ. आकांक्षा चौधरी
एक पत्नी के तौर पर मैं बड़ी दुविधा में हूं कि मैं अच्छी पत्नी हूं या बुरी पत्नी। बात तीज के दिन की है। चारों तरफ तीज का शोर शराबा था…औरतें मेहंदी लगवा रही थीं…नयी साड़ियां खरीद रही थीं…नयी-नयी सुहागिनें तो सोने, चांदी, हीरे, मोती में लदी हुईं और भी नये गहने खरीद रही थीं।
इसके अलावा मेकअप का बाजार भी गर्म था। वाटर प्रूफ ऑइल प्रूफ, फलना – ढीमकाना और मैं अपनी पुरानी जींस और कॉटन की शर्ट पहने इन खूबसूरत पतिव्रता सुहागिनों को देख-देख कर यह सोच रही थी कि मैं अपने पति के लिए कुछ करती भी हूं या नहीं !
समझ नहीं आ रहा था, मैं अपना प्रेम कैसे प्रदर्शित करूं ? तीस-चालीस हजार की साड़ी खरीदूं, वाटरप्रूफ मेकअप खरीदूं, सैंडल, उससे मैचिंग जूलरी, चूड़ियां खरीदूं ! साथ में पूजा के लिए लेटेस्ट वाली थाली, मावा और ड्राई फ्रूट से सजी हुई पिरुकिया, तरह-तरह के पकवान, पंजाब स्वीट हाउस और नोवल्टी की मिठाइयां और कुछ डेढ़ दो लाख का बजट बनाऊं या फिर शांति से बस घर से काम और काम से घर करूं !
अच्छा अभी ट्रेंड में यह भी है यदि आप तीज, करवा चौथ नहीं कर रहे हैं, तो आप फैशन स्टेटमेंट से बाहर भी हो सकते हैं। यानी, आप मॉडर्न हो गये हैं और अपनी संस्कृति भूल चुके हैं। इसका सीधा अर्थ यह लगाया जा सकता है कि आप अपने पति परमेश्वर से प्रेम नहीं करतीं। मतलब प्रेम करने के लिए आपका तीज का व्रत करना महा जरूरी है। ऐसा है कि हमारे गांवों में कभी-कभी कुछ व्रत कुछ घरों में नहीं होते, जैसे कि मेरी ससुराल में तीज का व्रत नहीं होता। लेकिन, उससे क्या, मेरे मायके में तो होता है।
…तो, एक श्रद्धालु और पतिव्रता स्त्री होने का सबसे बड़ा सबूत है कि मुझे अपने मायके को फौलो करते हुए तीज करना ही चाहिए, तभी यह सोसाइटी मुझे एक पतिव्रता का टैग देगी। बाकी मामलों में मुझे अपनी ससुराल की बात माननी चाहिए, लेकिन तीज तो करना ही है।
अब मेरी आधुनिकता के इल्ज़ाम के छींटें मेरी मां पर भी पड़े हैं। चूंकि, उसने मुझे तीज करने की सलाह नहीं दी। उसने हाई स्कूल की शिक्षिका की नौकरी करते-करते कभी भी सही नियमों का पालन नहीं किया ; ना ही तरह-तरह के मेवा-मिष्ठान बनाये। मैंने बचपन से देखा, न तो वह महंगी साड़ी लेती थी, न उसके साथ कभी मेहंदी, नेल पॉलिश, लिपस्टिक इन चीजों की जरूरत उसे पड़ी। कांच की साधारण चूड़ियां और एक साड़ी बस इतना ही खर्चा करती थी वह अपने श्रृंगार पर। कुछ फल और मिठाइयां रेडिमेड ही खरीद लेती थी। अगली सुबह पारण करने के साथ ही शरबत पी लेती थी। और तो और, इस व्रत में उसने कभी भी छुट्टी नहीं ली। उसका मानना था कि छुट्टी और आराम किसी भी व्रत के बाद नहीं किया जाता है। मेरे पिताजी की लम्बी उम्र के साथ-साथ उसका काम करते-करते व्रत करना महा जरूरी था। यह भी एक तरह की साधना थी।
…तो, ऐसी मां मुझे आजकल के तीज व्रत के सही तौर तरीके सिखा ही नहीं पायी। नये कंसेप्ट के हिसाब से तो जब तक मैं छप्पन तरह की मिठाइयां पकवान नहीं बनाती और तरह तरह के मेकअप प्रोडक्ट्स नहीं लेती, साड़ी की मैचिंग ज्वेलरी चूड़ियां, बिंदी और पता नहीं क्या-क्या नहीं कर लेती, तब तक मैं संस्कारी सुहागिनों के लिस्ट में बहुत पीछे हूं और मैं अपने पति से कम प्यार करती हूं।
यहां सवाल यह उठता है कि जिनकी लम्बी उम्र के लिए मैं इतना तामझाम कर रही हूं, वह क्या चाहते हैं ? वह तो कहते हैं…”अच्छा ही है, इतना खर्चा बच गया। मुझे तो मेरी लम्बी उम्र के लिए सबसे अच्छा गिफ्ट यही मिलता है कि तुम तीज नहीं करती हो, जो यह दो-तीन लाख का खर्चा होता, वह बच जाता है।” लेकिन, कई सहेलियां और समाज जब मुझे तीज के दिन सवाल भरी निगाहों से घूरते हैं, तो मुझे अपनी ससुराल के इस नियम पर काफी रोष होता है कि मैं समाज को दिखा नहीं पा रही कि मैं अपने पति से कितना प्यार करती हूं और मैं उनकी लम्बी उम्र के लिए कितना कुछ कर सकती हूं !