निशिकांत ठाकुर
भाजपा कर्नाटक विधानसभा चुनाव हार गई और बहुमत के आधार पर कांग्रेस वहां सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री होंगे तथा डीके शिवकुमार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। ज्ञातव्य हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कर्नाटक सरकार के गठन के लिए आम सहमति जताई है। शपथग्रहण समारोह शनिवार 20 मई को बेंगलुरु में संपन्न हुआ । अब यह बात धीरे— धीरे आमलोगों की समझ में आने लगी है कि झूठ के पांव नहीं होते और एक-न-एक दिन सच सामने आ ही जाता है। कर्नाटक में भी यही हुआ। पिछली सरकार तो भाजपा की ही थी। इस बात का भी लाभ कांग्रेस को मिला और उसके द्वारा यह बार—बार पूछा जाता रहा कि आप मतदाताओं से किस आधार पर फिर से अपनी पार्टी को वोट देने की अपील कर रहे हैं? यह तो भला हो प्रधानमंत्री का, जिन्होंने अंत में भाजपा की स्थिति को संभाल लिया, अन्यथा क्या हाल पार्टी का होने वाला था, यह सब जानते हैं। भाजपा के लिए ऐसा लगता है कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद प्रधानमंत्री के अतिरिक्त कोई दूसरा नेता नहीं है, जो जनता को अपनी ओर खींच सके। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, जो अपने राज्य हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी की सरकार नहीं बचा सके, कर्नाटक में अपने भाषण से पूरे देश की जनता का अपमान किया। उन्होंने कहा, ‘नौ साल पहले कैसा भारत था? भ्रष्टाचार के नाम से जाना जाने वाला भारत था। कैसा भारत था, घुटने टेककर चलने वाला भारत था और आज जब मोदीजी को प्रधानमंत्री बनाया तो दुनिया में सिक्का जमाने वाला भारत बन गया।’ उनके इस वक्तव्य की खूब आलोचना हुई। यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक ने इसे भारतीयों के लिए अपमान बताया और कहा कि भारत पहले भी महान था और अब भी महान है। साथ ही कई प्रतिक्रियाओं में यह बात भी आई थी कि जो व्यक्ति अपने गृह प्रदेश में भी अपनी पार्टी की सरकार नहीं बचा पाया, उसकी कोई हैसियत नहीं है कि वह किसी और राज्य में अपनी सरकार बना सके।
चुनाव नतीजे आने के बाद भी भाजपा के नेतागण अपनी गाल बजाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। अपनी और अपने दल की कमियां दूर करने के स्थान पर अब भी कांग्रेस की कमियों को अनर्गल प्रलाप करके वह यह साबित करना चाहते हैं कि कांग्रेस की कर्नाटक में जीत और भाजपा की हार इनकी आगामी योजना का एक छोटा भाग हो। कर्नाटक चुनाव में ध्रुवीकरण का मुद्दा खूब उठा था। भाजपा से लेकर कांग्रेस और जेडीएस तक ने खूब ध्रुवीकरण की कोशिश की। चुनाव से पहले कर्नाटक में हिजाब, हलाल और फिर मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा चर्चा में रहा। चुनाव आते ही कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन का वादा करके नए सिरे से ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। भाजपा ने इसे बजरंग बली से जोड़ा, लेकिन यह दांव काम नहीं आया। बाद में फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ भी चुनावी मुद्दा बनी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद ट्वीट करके कांग्रेस को 135 सीटें जीतने पर बधाई दी है। भाजपा 66 पर सिमट गई, जबकि जेडीएस को 19 सीट मिली है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया था। उन्होंने कांग्रेस की धार को कुंद करने का पूरा प्रयास किया था। वहीं, कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को घेरा था।
कांग्रेस की बड़ी जीत पर पार्टी नेता राहुल गांधी ने कहा कि कर्नाटक की जनता को, कार्यकर्ताओं को और सभी नेताओं को, जिन्होंने इस चुनाव में काम किया, उन्हें बधाई देता हूं। दूसरी तरफ गरीब जनता की शक्ति थी, कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में गरीबों के साथ थी। कर्नाटक ने बताया कि मोहब्बत इस देश को अच्छी लगती है। वहां नफरत की बाजार बंद हुई है, मोहब्बत की दुकानें खुली हैं। पांच वादों को पहले दिन पहले कैबिनेट में पूरा करेंगे। राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि गरीबों की शक्ति ने भाजपा के पूंजीपति मित्रों की ताकत को हराया है। महासचिव प्रियंका गांधी ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि अब अटकाने-भटकाने वाली राजनीति नहीं चलेगी। उन्होंने दावा किया कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी, उनमें से 18 सीटों पर कांग्रेस जीती है। उन्होंने सिद्दरमैया और डीके शिवकुमार दोनों को बधाई दी। कर्नाटक में जीत के बाद प्रियंका गांधी ने कहा, ‘कर्नाटक ने साबित कर दिया है कि ध्यान भटकाने वाली राजनीति अब नहीं चलेगी। राहुल गांधी के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ा गया। उन्हीं की अगुआई थी। सिद्दरमैया और डीके शिवकुमार को बहुत-बहुत बधाई। यह जनता के मुद्दों की जीत है।’ कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने जीत पर खुशी जताते कहा कि यह कर्नाटक की जनता की जीत है, जिसने कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर दिया है और भ्रष्ट भाजपा को नकार दिया है। उन्होंने यह तय कर दिया हैं कि भाजपा को अपना बड़बोलापन खत्म करके स्थानीय लोगों से जुड़कर उसके विकास के लिए काम करने की जरूरत है।
यह तो हुई विधानसभा चुनाव की बात। कहा जाता है कि कर्नाटक दक्षिण का टोल गेट है और इसलिए यदि वहां से आप सफलतापूर्वक आगे बढ़ जाते हैं, तो यह मान लिया जाता है कि आगे आपका रास्ता आसान हो जाएगा। फिलहाल अभी कुछ इस तरह की बात करना तो बेमानी है, लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि इस वर्ष जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, सब में कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीतकर सरकार बनाएगी, लेकिन ईवीएम का खेला तो 2024 के लोकसभा चुनाव में होगा। जनता में कोई गलत संदेश न जाने पाए, इसलिए विधानसभा के चुनावों में जनता की इच्छानुसार कांग्रेस की प्रचंड जीत होगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतना है। इसमें पूरी ताकत और साम-दाम—दण्ड-भेद के जरिये केंद्र की सत्ता पर काबिज होना है। राज्य की सरकारें तो बनती—बिगड़ती, गिरती—उठती रहेंगी, लेकिन केंद्र में सरकार बनाकर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को स्थापित करना भाजपा का एकमात्र उद्देश्य है। कर्नाटक के बाद अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, वे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और राजस्थान हैं। अब कांग्रेस को इन राज्यों के साथ—साथ लोकसभा चुनाव के लिए सतर्क रहना होगा, अन्यथा जो कहा जाता है कि ‘सतर्कता हटी दुर्घटना घटी’ वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। चूंकि अब आम जनता गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई से त्रस्त है और झूठे जुमलों को समझ चुकी है, इसलिए उसने मन बना लिया है कि इन सबसे अब निजात पाया जाए और एक विश्वसनीय, उनके मध्य दुःख—सुख में साथ खड़े रहने वाले को देश का भाग्य निर्माता बनाने का अवसर दिया जाए।
आज युवा पढ़—लिखकर बेरोजगार घूम रहे है। उनके लिए रोजगार की कोई योजना सरकार के पास है नहीं, ऊपर से महंगाई की मार। फिर सरकार से कोई आश्वासन नहीं कि उन्हें भविष्य में क्या करना है। जो रोजगार के साधन थे, उसके बारे में अब देश का लगभग प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि पिछले कुछ वर्षों से देश के महत्वपूर्ण विभागों को निजी संस्थाओं के हाथ में सौंपा जा रहा है, जिन सरकारी विभागों को बनाने में पिछली सरकारों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, उसे देखते—ही—देखते निजी हाथों में सौंपकर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है। आजादी के बाद से वर्ष 2014 तक के शासनकाल को नकारा जाना और इस तरह की मानसिकता को समाज में विकसित कर देना कि समाज खंडों में विभाजित है, जातियों में विभाजित है, इस तरह के भेदभाव को समाज ने अब समझना शुरू कर दिया है। कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार के कई कारणों में यह भी एक कारण है। जब इस विषय पर पार्टी के वरिष्ठ नेता समीक्षा करेंगे, तो यह बात भी उनके सामने आएगी कि उनकी नीति जो अब तक समाज को, व्यक्ति को बांटकर एक—दूसरे से दुश्मनी जाने-अनजाने कराया जा रहा था, उसे बंद कर गंगा-जमुनी संबंधों को फिर से पुनर्जीवित करके ही समाज में फिर से विश्वास पैदा कराया जा सकता है। यह काम शीर्ष नेतृत्व ही कर सकता है। हां, शीर्ष नेतृत्व को समाज में सद्भाव बनाने का एक निश्चित उद्देश्य हो और उसके लिए वह कटिबद्ध हो। आज जो स्थिति बन गई है, उसमें तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल की बात सत्य होती प्रतीक होती दिख रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतवर्ष यदि अयोग्य राजनीतिज्ञों के हाथों में चला गया तो , वह खंड—खंड में विभाजित हो जाएगा, लेकिन ऐसा 70 वर्षों में तो नहीं हुआ, लेकिन आज समाज को जिस तरह से बांट दिया है, उससे यही लगता है कि यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो वह दिन दूर नहीं, जब चर्चिल की बात सत्य हो जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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