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लम्पटता इधर भी है, लम्पटता उधर भी…!

लम्पटता इधर भी है, लम्पटता उधर भी…!

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राजीव थेपड़ा 

There is debauchery here too, debauchery there too…! : लम्पटता इधर भी है और लम्पटता उधर भी है !! इधर और उधर की लम्पटताओं के बीच अगर हम किसी अच्छे व्यक्ति की प्रशंसा करें, तो यह समूची इधर या उधर की प्रशंसा के रूप में ले ली जाती है !! इसी प्रकार अच्छाई इधर भी है और उधर भी, लेकिन उन अच्छाइयों के बीच कुछ बुराइयां भी हैं, लेकिन हम अच्छे लोगों के बीच मौजूद उन बुरे लोगों की बुराइयों को इंगित करें, तो यह समूची बुराई समूचे इधर या उधर की मान ली जाती है !!

मैं बहुत पिछले काफी समय से इस बात से बेहद पगलाया रहता हूं कि अब जो हम इस तरह की बंदरबांट में लग चुके हैं और समाज के बीच इस तरह की विभाजनकारी प्रवृत्तियों के बीच में इस तरह से अपने आप को शामिल कर चुके हैं कि इधर वाले को उधर की अच्छाइयां नजर नहीं आतीं और उधर वाले को इधर की अच्छाइयां नजर नहीं आतीं और यह अपने आप में बहुत भयानक समस्या बनती जा रही है। दरअसल, यह अपने आप में एक मानसिक विकार है !! …और, इस मानसिक विकार के चलते कभी भी एक मजबूत संवाद नहीं हो सकता, एक मजबूत समाज बनाने की तो बात ही दीगर है !! 

…तो, कई बार ऐसा होता है कि किसी इधर वाले की अच्छाइयों के बीच किसी बुरी प्रवृत्ति की ओर इशारा करता हूं, तो सारे ईधर वाले बुरा मान जाते हैं और उधर वाले खुश हो जाते हैं और इसका उल्टा भी जब मैं करता हूं कि किसी उधर वाले की किसी बुराई की ओर इशारा करता हूं, तो उधर वाला नाखुश हो जाता है और इधर वाले खुश हो जाते हैं !! यही बात अच्छाइयों के संदर्भ में भी होती है। जिसकी अच्छाई की प्रशंसा कर दो, तो उसके विपरीत वाले लोग बुरी तरह नाखुश कि राजीव जी आप भी !! राजीव जी आप भी !! राजीव जी आप भी !!

यह सब क्या मजाक है ?? विभिन्न नजरियों पर हमारा स्टैंड क्या हमारी एकतरफा दृष्टि के कारण तय होगा या कि हमारी न्यायप्रियता के कारण ?? लेकिन, उससे भी बड़ा सवाल यह है कि हम चाहे इधर वाले हों, चाहे उधर वाले, क्या हम सब के सब ऐसी रतौंधी के शिकार होते जा रहे हैं कि उधर वाले को इधर वाले नहीं पसंद और इधर वाले को उधर वाले नहीं पसंद ??

…तो, दुनिया जब इस तरह बिलकुल दो हिस्सों में विभक्त हो जायेगी और वह विभक्त भी ऐसी कि एक-दूसरे से नफरत ही करने लगे !! …तो फिर, समाज में विभिन्न प्रवृत्तियां, विभिन्न मत कहां स्थान लेंगे ?? …और, जब विभिन्नता ही स्थान नहीं ले पायेगी, तो एक समूची दुनिया, विविधता वाली दुनिया कैसे बनेगी ?? 

एक बात तो अच्छी तरह समझ ली जाये कि दुनिया की सभी सभ्यताओं में और सभी धर्म और मजहबों में तमाम कालों में विभिन्न लोगों द्वारा बहुत सारी गलतियां की गयी हैं, जिसके कारण कटुता और वैमनस्य बढ़ा और वह गलतियां भी ऐसी-वैसी नहीं हैं !! हजारों-हजार लोगों का कत्ल, लाखों-लाख लोगों को कैद और न जाने कितने ही अमानुषिक और बर्बर अत्याचार विभिन्न सभ्यताओं ने दूसरी सभ्यताओं के ऊपर किये हैं। लेकिन, सवाल यह है कि इतिहास की उन गलतियों को बार-बार वर्तमान जीवन के ऊपर मत्थे मढ़ कर हम वर्तमान के साथ क्या सुलूक करना चाहते हैं ?? 

दूध का धुला कोई भी नहीं है !! अगर हम इतिहास का ही बखान करना चाहते हैं, तो हमें एक के बाद एक बुराई ही बुराई नजर आयेगी, क्योंकि हम उसे ही उघाड़ना चाहते हैं !! क्योंकि, आदमी की प्रवृत्ति ही है गड़े मुर्दों को उखाड़ना !! लेकिन, सच यह भी है और इस सच का इतिहास भी गवाह है कि गड़े मुर्दों को उखाड़ने से सिर्फ और सिर्फ जहर ही फैलता है और आगे भी यही होनेवाला है और आज भी यही हो रहा है !!

मैं बहुत समय से इस बात के लिए पगलाया जा रहा हूं कि आप किसी भी बात पर अपना कोई भी स्टैंड रख दो, आपको गरियाने वाले भी मिलेंगे और आपको चाहने वाले भी मिलेंगे। गरियाने वाले आपको दे मार-दे मार-दे मार-मारेंगे, तो वहीं प्रशंसा करने वाले आपको चने के झाड़ पर चढ़ायेंगे !! सवाल यह है कि हम सब को करना क्या है ?? हम सबको विभिन्न विषयों पर संवाद करना है कि आपस में लट्ठमारी ?? और जब लट्ठमारी ही करनी है, तो क्यों हम सभ्य हैं ? क्यों हम शिक्षित हैं ? और क्यों हमें विवेकशील कहा जाना चाहिए ?? 

आज यह सवाल मैं आपके मत्थे छोड़ता हूं ?? अगर इन सवालों पर आप संवेदनात्मक तरीके से विचार कर सको, तब तो हमें अपने पागलपन से बाहर आने का कोई रास्ता मिल पायेगा। वरना, सम्भव है कि हम बाबा आदम के जमाने वाले कबीलों वाले भेड़ियों के रूप में ही तब्दील हो जायें !!

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