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कौन असली, कौन नकली ?

कौन असली, कौन नकली ?

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डॉ. आकांक्षा चौधरी 

इस दौर में जब हर पदार्थ की गुणवत्ता और श्रेष्ठता शक के दायरे में है, तब कौन-सी चीज असली है और कौन-सी चीज नकली, यह समझ पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन प्रतीत होता है। कभी-कभी तो इन मेड इन चाइना वाले सामानों की लिस्ट इतनी बड़ी रहती है कि क्या कहें! सामान से लेकर इंसानी रिश्ते तक में मिलावट। 

अब एक मौका-ए-शादी की कहानी देखिए…लड़की वालों ने मेहंदी-हल्दी का उत्सव रखा। पहले ये छोटे-छोटे विधि विधान घर के आंगन में या घर की छतों पर निपटा लिये जाते थे। घर की शादीशुदा बड़ी बुआ, दीदी या दादी शुद्ध हल्दी की गांठ को सिलबट्टे पर कूटती थीं, फिर सारी बड़ी बूढ़ी महिलाएं मिल कर होनेवाले वर या वधू की त्वचा के ज्यादा से ज्यादा भाग को हल्दी के उबटन से पोत देती थीं। ऐसा वैज्ञानिक तौर पर त्वचा सम्बन्धित बीमारियों को रोकने, ठीक करने और त्वचा को शादी के पहले सुन्दर और स्वस्थ रखने के लिए ही किया जाता था। अब ये जो कल-परसों की मेहंदी-हल्दी के कार्यक्रम में शामिल हुई, तो बहुत कुछ में नकलीयत का चोंगा और नकली सामानों की बू दिख रही थी। अव्वल तो घर का आंगन नहीं, शहर का एक महंगा होटल परिसर दिखा। रिश्तेदार अपने घरों को छोड़ कर होटलों के अलग-अलग बड़े कमरों से परिष्कृत ढंग से सजे-संवरे हुए नीचे लॉबी में आयोजन में शामिल होने के लिए निकल रहे थे।

घर के आंगन में सिलबट्टा महत्त्वपूर्ण भूमिका में रहता था, कूटने की ठक-ठक की आवाज के साथ महिलाओं के सुरीले लोकगीत ‘आनन्द सुख सरसावन’ और ‘लगाओ सखी उबटन दुल्हनिया को’ कानों में रस घोलते थे। यहां होटल की लॉबी में नये जमाने के रैप बजाये जा रहे थे, वह भी कर्कश गूंज के साथ। जो हल्दी लगायी गयी, उसे लगाने के आधे-पौने घंटे के भीतर वधू को पूरे शरीर में चक्कते उग आये और त्वचा मुलायम, चमकदार, सुन्दर बनने की जगह लाल लाल बड़े फफोले युक्त धब्बेदार बन गयी। एंटी एलर्जी की दवाई से काम नहीं बना, तो फिर किसी डॉक्टर से आनन-फानन में सम्पर्क साधा गया। 

डॉक्टर ने दी गयी दवाई के ब्रांड नाम जानने के बाद आलोचनात्मक ढंग से बताया कि ‘यह ब्रांड नकली केमिकल का इस्तेमाल करता है, इसकी जगह फलां ब्रांड की दवाई दी जाये, तो फायदा होगा!’ बात सही निकली और त्वचा पर उग्रता से उगे हुए फफोले थोड़े नरम पड़े। लेकिन, अब तक तो त्वचा की हालत नाजुक बन चुकी थी। खैर…उस हल्दी का कटोरा तो डिस्कार्ड कर ही दिया गया था। 

अब बारी थी, मेहंदी लगने की, तभी सारे रिश्तेदार भौंचक रह गये। अन्दर से होनेवाली दुल्हन भी दूसरी निकली। तरोताजा, बिलकुल दूसरी। रिश्तेदारों को बताया गया कि कहीं कोई एलर्जी न हो, इसलिए चेहरे पर मेकअप आर्टिस्ट की सहायता से मेकअप करा कर डम्मी यानी नकली दुल्हन को बिठाया गया था। मेहंदी की टेस्टिंग पहले की जा चुकी है, इसलिए अब अपनी ओरिजिनल बिटिया को लगवाना है।

हम सभी लोगों के मुंह से एक साथ ‘अरे बाप रे!’ निकला। और इस कौन असली, कौन नकली के फेरे में असली सामान तो क्या असली इंसान को पहचान पाना भी हमारे बस का नहीं रह गया!

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