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सच का दम आख़िर क्यों घुटता है ??

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राजीव थेपड़ा 

Sach ka dam aakhir kyon ghutta hai : सच तो यह है कि सच कोई सुनना ही नहीं चाहता !! ना व्यक्ति, ना घर, ना पड़ोस, ना मोहल्ला, ना राज्य, ना देश, ना विश्व !! व्यक्ति की किसी एक इकाई से लेकर किसी वैश्विक समुदाय या यूनाइटेड नेशन या कोई भी क्यों न हो ; सच कोई भी सुनना नहीं चाहता !!

साफ-साफ से दिखती घटनाओं में भी लोग बायस्ड होते हैं…पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं ! बिल्कुल स्पष्ट दिखतीं स्थितियों में भी एक पक्ष के लोग कुछ और ढूंढ लेते हैं, तो दूसरे पक्ष के और कुछ और !! एक ही स्थिति पर या घटना पर एक पक्ष उसका कुछ और कारण बताता है, तो दूसरा पक्ष उसका कुछ और ही !! मगर, सच कभी भी सामने नहीं आता !! मूलतः कि वह जैसा हुआ करता है !!

मैं सोचता हूं कि लोगों की सोच पर अक्सर सच रोता होगा !! गनीमत है कि बाढ़-भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाओं में लोग इस तरह की बातें नहीं कर पाते ; वरना ऐसी घटनाओं में भी लोग एक-दूसरे पर उसका दोष मढ़ देते !! 

और, मीडिया भी तमाम मामलों में जिस प्रकार का मासूम और तटस्थ दिखना चाहता है। हकीकत में वैसा कभी कतई नहीं होता !! क्योंकि, आखिरकार वह भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समुदाय द्वारा चलाया जा रहा है और उस व्यक्ति या समुदाय के भी अपने कोई न कोई निहित स्वार्थ या कोई न कोई पक्ष अवश्य होते हैं । 

तो, इस प्रकार मीडिया के मामले में भी यह बात बिलकुल वैसी ही है। कौन-सी घटना के किस हिस्से को कितना दिखाना है ? किस तरह दिखाना है ? किस हिस्से में आवाज को म्यूट कर दिया जाना है ? किस हिस्से में आवाज को उभार कर दिखाना है ? किस हिस्से के किस पॉइंट को किस डायलॉग के साथ में प्रस्तुत करना है ? …और, यह सब भी अलग-अलग मीडिया ग्रुप द्वारा अलग-अलग सोच के मुताबिक अलग-अलग तरह से किया जाना है !!

मतलब घटनाक्रम तो एक ही है, लेकिन उसे प्रस्तुत अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग तरह से किया जाना है !! इस प्रकार मीडिया भी एक किस्म की कला ही तो है !! कुल मिला कर मीडिया भी जिस पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सोच रहा होता है, वही पूर्वाग्रह देश के लोगों पर या विश्व के लोगों पर लादने की कोशिश करता है और निश्चित तौर पर मीडिया के मालिकों के भी निहित स्वार्थ हुआ करते हैं, जिनके अनुसार उनके नुमाइंदों को काम करना होता है !!

अब अखबार के सरकुलेशन को ही लीजिए ना ! एक ही सरकुलेशन की रिपोर्ट पर विभिन्न अखबार उसे अपने-अपने पक्ष में किस प्रकार लेते हैं, वही देख लीजिए ना !! कोई फलाने वर्ग में सबसे ज्यादा पढ़ा जानेवाला अखबार ! कोई क्षेत्रीय स्तर पर सबसे ज़्यादा पढ़ा जानेवाला अखबार !! कोई स्थानीय स्तर पर सबसे ज्यादा पढ़ा जानेवाला अखबार !!…तो  कोई अपने सभी संस्करणों को मिला कर गिनती में सबसे ज्यादा पढ़ा जानेवाला अखबार !! कोई किसी खास हिस्से में सबसे अधिक पढ़ा जानेवाला अखबार !…तो, कोई किसी खास आय वर्ग में पढ़ा जानेवाला अखबार  !…तो, कोई किसी अन्य खास वर्ग में सबसे अधिक पढ़ा जानेवाला अखबार !!…तो, इस प्रकार हम देखते हैं कि रिपोर्ट तो एक ही है, लेकिन उसका हासिल अलग-अलग अखबारों के लिए अलग-अलग है !!…तो, जब एक ही सरकुलेशन की बाबत कितने तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं, तो साफ-साफ तौर पर सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं के तो न जाने कितने ही कोण तलाशे जा सकते हैं और उन कोणों के अनुसार उनकी व्याख्या भी की जा सकती है, बल्कि की ही जाती है !!

दोस्तों, हममें से कोई भी निर्लिप्त नहीं होता और तटस्थ भी नहीं होता !! जो-जो सुनना चाहता है, उसी को सच समझता है। जो नहीं सुनना चाहता, उसे वही झूठ लगता है !! सच और झूठ के इस धरती पर कोई मायने नहीं हैं ; सिवाय अपने स्वार्थों पर लीपापोती करने के !! 

सच तो ही होता है, लेकिन वह क्या होता है, यह किसी को नहीं पता ……और, साफ-साफ पता होने पर भी सब सच से बचना चाहते हैं…मुकरना चाहते हैं। अपनी-अपनी तरह से अपने-अपने सच को जीना ही सबको अच्छा लगता है…प्यारा लगता है…भले ही वह सबसे बड़ा झूठ ही हो !!

आज की अपनी अभिव्यक्ति का अंत इन्हीं पंक्तियों से…

“अपने अहसास को चुपचाप घोंटता रहता हूं।

अपने अन्दर की कोई आवाज़ टोहता रहता हूं !!”

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