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खरमास क्यों होता है ? जानिए इसका धार्मिक महत्व

खरमास क्यों होता है ? जानिए इसका धार्मिक महत्व

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Kya hai kharmas, Dharm-adhyatm, jyotish: भारतीय ज्योतिष और धार्मिक परंपराओं में वर्ष भर आने वाले विशेष समयों का अत्यंत महत्व होता है। इन्हीं में से एक है खरमास, जिसे अशुभ मास भी कहा जाता है। खरमास न केवल खगोलीय घटनाओं से जुड़ा हुआ है, बल्कि इसका धार्मिक दृष्टिकोण से भी गहरा संबंध है। यह समय धार्मिक साधना के लिए अनुकूल माना जाता है लेकिन किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, जनेऊ आदि के लिए वर्जित माना गया है। आइए, जानें खरमास का अर्थ, इसका खगोलीय आधार, धार्मिक महत्व, पौराणिक कथा और इस दौरान किन कार्यों से परहेज किया जाना चाहिए।

खरमास क्या है?

खरमास एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है – ‘खर’ यानी गधा और ‘मास’ यानी महीना, अर्थात गधे का महीना। यह शब्द सुनने में अजीब लगता है लेकिन इसके पीछे एक पौराणिक दृष्टांत और खगोलीय रहस्य छिपा है। खरमास वह समय होता है, जब सूर्य देव गुरु बृहस्पति की राशियों – धनु और मीन में प्रवेश करते हैं। सूर्य, जो नवग्रहों के राजा माने जाते हैं, जब इन राशियों में भ्रमण करते हैं, तब सूर्य के प्रभाव में थोड़ी कमी देखी जाती है और उसका धार्मिक व सामाजिक प्रभाव भी घट जाता है।

खरमास साल में कब आता है?

एक वर्ष में दो बार खरमास आता है।

1. दिसंबर-जनवरी में – जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है।

2. मार्च-अप्रैल में – जब सूर्य मीन राशि में प्रवेश करता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, यह समय मार्गशीर्ष-पौष और फाल्गुन-चैत्र महीनों के बीच आता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह सामान्यतः 15 दिसंबर से 14 जनवरी और 15 मार्च से 14 अप्रैल के बीच आता है।

खरमास का खगोलीय कारण

सूर्य प्रतिवर्ष 12 राशियों में भ्रमण करता है और प्रत्येक राशि में लगभग एक महीने तक रहता है। जब वह धनु और मीन राशियों में रहता है, जो कि बृहस्पति की राशियाँ हैं, तो इसे खरमास कहा जाता है। यह समय वैदिक ज्योतिष में अशुभ माना गया है क्योंकि सूर्य और गुरु का एक साथ संयोग धार्मिक कार्यों में विघ्न डालता है। इन राशियों में सूर्य की स्थिति को शुभ नहीं माना जाता, विशेषकर सांसारिक कार्यों के संदर्भ में।

खरमास में क्या नहीं करना चाहिए?

खरमास को धार्मिक दृष्टिकोण से त्याग, तप और साधना का समय माना जाता है। इस दौरान कई शुभ कार्यों पर रोक होती है:

1. विवाह – इस दौरान शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।

2. गृह प्रवेश – नए घर में प्रवेश करना वर्जित माना गया है।

3. सगाई या जनेऊ संस्कार – इन संस्कारों को भी इस मास में नहीं किया जाता।

4. नई चीजों की शुरुआत – जैसे दुकान खोलना, नया वाहन खरीदना, व्यापार की शुरुआत करना आदि कार्यों से बचना चाहिए।

5. मूर्तिप्रतिष्ठा या मंदिर निर्माण का शुभारंभ – यह भी टालना चाहिए।

हालांकि, पूजा-पाठ, हवन, जप-तप, तीर्थयात्रा, व्रत आदि कार्य इस मास में किए जा सकते हैं और इन्हें शुभ माना गया है।

खरमास का धार्मिक महत्व

खरमास के समय को आध्यात्मिक प्रगति और आत्मचिंतन के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। इस दौरान व्यक्ति को अपने जीवन में संयम, तप और भक्ति को बढ़ावा देना चाहिए। यह समय सांसारिक मोह से हटकर ईश्वर की आराधना और ध्यान में लीन रहने के लिए उपयुक्त होता है।

शास्त्रों में कहा गया है “धर्मस्य मूलं तपः”, अर्थात धर्म का मूल तत्व तपस्या है। खरमास इसी तपस्या और साधना का प्रतीक है। इस समय आत्मिक उन्नति के लिए संयमित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा दी जाती है।

खरमास से जुड़ी पौराणिक कथा

खरमास से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार एक बार सूर्य देव पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। वह अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार थे, जो बिना रुके पूरे वर्ष ब्रह्मांड में चलते रहते हैं। लेकिन वर्ष भर चलने के कारण उनके घोड़े थक जाते हैं और उन्हें जल की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में सूर्य को एक उपाय सूझता है। वह अपने घोड़ों को विश्राम देने के लिए रथ से उतार देते हैं और उनकी जगह एक ‘खर’ यानी गधा को जोत देते हैं, ताकि घोड़े विश्राम कर सकें। गधा धीमी गति से रथ खींचता है और सूर्य की गति मंद हो जाती है। इस कारण पृथ्वी पर सूर्य का तेज कम हो जाता है। यही कारण है कि इस समय को खरमास कहा जाता है। जब सूर्य फिर से मकर राशि में प्रवेश करते हैं (मकर संक्रांति के दिन), तब वह अपने सात घोड़ों के साथ पुनः गतिशील हो जाते हैं और धरती पर प्रकाश एवं ऊर्जा का संचार फिर से तीव्र हो जाता है।

खरमास में क्या करना चाहिए?

इस समय उपवास, ब्रह्मचर्य, जप-तप और दान को विशेष फलदायी माना गया है। कुछ ऐसे कार्य जो इस मास में करने चाहिए:

सूर्य अर्घ्य देना – प्रतिदिन उगते सूर्य को जल अर्पित करना लाभदायक होता है।

गाय को हरा चारा देना – विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

भगवद्गीता, रामायण, विष्णु सहस्रनाम का पाठ – मानसिक शांति मिलती है।

दान करना – अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करने से शुभ फल मिलता है।

व्रत और संयम का पालन – इस मास में मांस, मदिरा और तमोगुणी भोजन से परहेज करना चाहिए।

खरमास का वैज्ञानिक पक्ष

अगर खरमास को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह वह समय होता है जब सूर्य की उत्तरायण या दक्षिणायण गति के कारण तापमान में बदलाव आता है। सर्दियों में सूर्य दक्षिणायन होते हैं, जिससे उनकी ऊर्जा में कमी आती है, और दिन छोटे होते हैं। इसी समय फसलें भी पकने लगती हैं, जिससे किसानों को एक प्रकार का अवकाश मिलता है। शायद इसीलिए ऋषियों ने इस समय को आत्म-विश्लेषण और साधना के लिए सुरक्षित माना।

खरमास हमें जीवन में ठहराव, चिंतन, साधना और आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है

खरमास केवल एक खगोलीय स्थिति नहीं, बल्कि यह हमें जीवन में ठहराव, चिंतन, साधना और आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है। इसका धार्मिक महत्व इस बात में है कि यह हमें सांसारिक गतिविधियों से विरत होकर आत्मिक विकास की ओर प्रेरित करता है। जैसे ही खरमास समाप्त होता है, मकर संक्रांति के साथ सूर्य पुनः अपनी पूरी शक्ति के साथ जीवन में प्रकाश भरने लगते हैं। इसलिए, खरमास को वर्जना का समय नहीं बल्कि साधना और जागरूकता का पर्व मानना चाहिए।

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