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बेरोजगारी जो न कराए : गए थे कमाने परदेस, काम तो मिला पर पैसे नहीं, मजबूरी में 1100 किलोमीटर पैदल चलकर लौटना पड़ा घर, जानें क्या है पूरा मामला

बेरोजगारी जो न कराए : गए थे कमाने परदेस, काम तो मिला पर पैसे नहीं, मजबूरी में 1100 किलोमीटर पैदल चलकर लौटना पड़ा घर, जानें क्या है पूरा मामला

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Odisha News, Kalahandi news : बेरोजगारी का दर्द क्या होता है, यह महज दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे परिवारों से पूछो। आज भी विभिन्न राज्यों के लाखों लोग नौकरी की तलाश में अन्य राज्यों के लिए पलायन कर रहे हैं। ओडिशा भी इन्हीं में से एक है। लेकिन, विडंबना यह कि जिन दो पैसों की चाह में बेरोजगार अपना घर- परिवार छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर जाता है, वहां न तो उन्हें पेट भर भोजन मिल पाता है और न ही वेतन। और तो और वेतन मांगने पर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं। हाल ही में ओड़िशा से एक ऐसा ही हृदय विदारक मामला सामने आया है। हालात, इतने बदतर थे कि ओडिशा के कालाहांडी जिले के तीन बेरोजगारों को बेंगलुरु से लगभग 1100 किलोमीटर की दूरी सिर्फ इसलिए पैदल तय करनी पड़ी, क्योंकि उनके पास फूटी कौड़ी नहीं थी। तीनों कई दिन औऱ कई रातें पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे। घर पहुंचे तो कमाई के नाम पर उनके हाथ में पानी की चंद खाली बोतलों के अलावा कुछ और नहीं था।

रास्ते की अंतहीन पीड़ा बताते-बताते भर्रा आईं आंखें

प्रवासी श्रमिकों के 12 सदस्यीय समूह के साथ लगभग 2 महीने पहले नौकरी की तलाश में बिचौलियों की मदद से कालाहांडी जिले के तिगलकन गांव के बुड़ु मांझी, कटार मांझी और भिकारी मांझी भी बेंगलुरु गया था। वहां बिचौलिए ने उन्हें काम पर भी लगा दिया, परंतु जब भी वह नियोक्ता से वेतन की मांग करता तो पैसे तो नहीं ही मिलते, उनकी पिटाई जरूर होती। इस अवधि में उसने जो थोड़े बहुत बचत किए थे, वह खत्म हो गए। जब पैसे ही नहीं मिले तो परदेस में रहने का क्या फायदा, घर- परिवार की याद आई और तीनों ने पैसे के अभाव में पैदल ही लौटने का निर्णय ले लिया। जहां शाम ढली, वहीं सो गया, किसी ने कुछ उपकार कर दिया तो कुछ खा लिया। भाषाई समस्या भी इस दौरान उनके सामने आई। लोग उनकी बात भी नहीं समझ पाते, फिर अवेक्षित मदद भी नहीं मिली। सच बहुत मुश्किल भरा सफर था वह। अपनी कहानी बताते-बताते तीनों की आंखें भर्रा आईं।

अपना घर तो अपना घर है, ओडिशा पहुंचा तो छलक उठा दर्द, लोगों ने दीं रोटियां, पैसे भी दिए

खैर, ओडिशा के कोरापुट पहुंचने पर तीनों के जान में जान आई। तीनों ने पोतांगी ब्लॉक के पडलगुड़ा में स्थानीय लोगों को अपनी पीड़ा बताइ। बताया कि 26 मार्च को उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की थी, सात दिनों तक दिन-रात चलते रहे। इसी बीच कहीं सो भी लिया तो किसी ने कुछ दिया तो खा भी लिया। कुछ लोगों की मेहरबानी मिली तो उन्हें लिफ्ट मिला तो करीब 100 किलोमीटर की यात्रा आसान हुई। तीनों की व्यथा सुनकर स्थानीय लोगों ने उन्हें न सिर्फ भोजन कराया, बल्कि ओडिशा मोटरिस्ट एसोसिएशन की पोतांगी इकाई ने उनकी आर्थिक सहायता भी की। उन्हें उनके घर तक पहुंचाने के लिए परिवहन की भी व्यवस्था की। लोगों का यह उपकार देख कर तीनों ने कहा, सच अपना घर तो अपना घर है। अब मजदूरी करें या खेती। अब कहीं नहीं जाना।

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