हरियाणा में कांग्रेस को ले डूबी पार्टी नेताओं की आपसी लड़ाई
New Delhi news : हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी को चुनाव जीतने की मशीन ऐसे ही नहीं कहा जाता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हरियाणा में पांच सीटें जीती थी, जबकि 2019 में बीजेपी सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद से ही माहौल बनने लगा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में हवा है, लेकिन भाजपा ने इस पूरी बाजी को ही पलट दिया। सिर्फ जीत ही दर्ज नहीं की, बल्कि 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा बड़ी जीत हासिल की है।
भाजपा ने माना कि लोकसभा चुनाव के दौरान कई गलतियां हुईं थीं और उन्हें दूर भी किया। कई इंटरव्यू में भाजपा नेताओं ने खुलकर कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान सांगठनिक स्तर पर कुछ गलतियां हुईं थी, जिन्हें अब दूर किया जा रहा है। पार्टी ने यह भी माना कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा थी, भाजपा ने इसे युद्ध स्तर पर दुरुस्त किया। सीनियर नेता अलग-अलग ग्रुप में कार्यकर्ताओं से मिले और निराशा को दूर कर उन्हें यकीन दिलाया कि पार्टी ये चुनाव जीत सकती है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने लोकसभा चुनाव की गलतियों को सुधारकर, अग्निवीर मुद्दे को काउंटर किया और जातिगत समीकरणों का ध्यान रखते हुए बड़ी जीत हासिल की।
हरियाणा ऐसा राज्य है, जहां से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। यहां अग्निवीर एक मुद्दा रहा है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लगातार उठाया भी। भाजपा ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझा और अपने घोषणापत्र में वादा किया कि हर अग्निवीर को सरकारी नौकरी दी जाएगी। पार्टी के बड़े नेताओं ने हर रैली में इसे दोहराया कि हर अग्निवीर को पेंशनवाली जॉब दी जाएगी। अग्निवीर को लेकर खिलाफ बन रहे माहौल को भाजपा काउंटर करने में सफल रही।
हरियाणा में 36 बिरादरी को सबसे अहम फैक्टर माना जाता है। जहां कांग्रेस इस पर उलझी रही कि जाट बनाम नॉन जाट मुद्दा होगा, वहीं भाजपा ने बिरादरी के हिसाब से अपने समीकरणों को फिट किया। जाटलैंड में भी भाजपा जीती, जबकि पूरे चुनाव भर ये कहा जाता रहा कि जाट भाजपा से बहुत नाराज हैं। पार्टी ने ओबीसी को अपने पक्ष में करने के लिए कई मोहल्ला मीटिंग की। हरियाणा में ओबीसी 35 फीसदी हैं। दलित वोट को भी साथ लाने के लिए भाजपा ने कई रणनीति पर काम किया। चुनाव से ठीक पहले राम रहीम जेल से पैरोल पर बाहर आया और भाजपा को वोट देने की अपील की। हरियाणा में उसके अनुयायी बड़ी संख्या में हैं, जो ज्यादातर दलित समाज से आते हैं।
भाजपा लगातार कहती रही कि पिछले 10 सालों में उसने खर्ची-पर्ची का सिस्टम खत्म किया है। यानी बिना सिफारिश और बिना रिश्वत के लोगों को सरकारी नौकरी दी है। यह राज्य में चर्चा का विषय भी रहा। राज्य में 18 से 39 साल के 94 लाख से ज्यादा वोटर हैं और उसका असर दिखा। एंटी एनकंबेंसी से निपटने के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले ही सीएम बदला और फिर अपने खिलाफ जा रहे वोटों के बंटवारे की भी रणनीति बनाई। सबसे ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार इस बार मैदान में थे। ज्यादा उम्मीदवारों ने भाजपा के विरोधी वोटों का बंटवारा किया और भाजपा की जीत में योगदान दिया। साथ ही कांग्रेस नेताओं की आपसी लड़ाई ने भी बीजेपी की जीत की राह खोली।