Dharm- adhyatm : भारतीय परंपरा में धर्म, अध्यात्म और भक्ति की असंख्य कहानियों की श्रृंखला देखने को मिलती है। आज के हाईटेक युग में बहुत से लोग इन कहानियों पर विश्वास भी नहीं करते हैं। अगर विश्वास करते हैं तो कई तरह के सवाल खड़े करते हैं। सवाल खड़े करना बहुत अच्छी बात है। लेकिन, भारतीय परंपरा को समझना और उसकी कथाओं से आज के लिए मिल रहे संदेश को समझना सबसे बड़ी बात है। हम इसी कड़ी में विष्णु भक्त प्रहलाद के जन्म और जीवन तथा उसके पिता द्वारा उसे दी गई यातनाओं से आपको रूबरू करा रहे हैं।
अटूट और असीम है भक्ति की शक्ति
भारतीय परंपरा में भक्ति की शक्ति अटूट है। वास्तव में यह शारीरिक शक्ति न होकर आध्यात्मिक शक्ति होती है। आध्यात्मिक शक्ति दिव्या होती है और यह वैसा कुछ करने में सक्षम होती है, जिससे शारीरिक शक्ति कल्पना भी नहीं कर सकती है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी शारीरिक शक्ति पर हथियार से प्रहार किया जाए, उसे पानी में डुबोया जाए या आग में जलाया जाए तो वह अपने अस्तित्व को बचा सकती है। ऐसा कदापि संभव नहीं है। लेकिन, याद कीजिए संस्कृत में यह साफ बताया गया है की आत्मा वह शक्ति है, जिसे ना हथियार काट सकता है, न उसे पानी भिगो सकता है और उएसे आग जला सकती है। मतलब आत्मा की शक्ति ही आध्यात्मिक शक्ति है, जो शारीरिक शक्ति से इतर है। शरीर के भीतर वह होती है, लेकिन अनुभूति के बल पर उसे जगाया और आगे बढ़ाया जाता है। विष्णु भक्त प्रहलाद का जीवन भक्ति से मिली आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, जिसे चाह कर भी उसका पिता हिरण्यकश्यप समाप्त नहीं कर पाता है।
देवासुर संग्राम और असुर हिरण्यकश्यप
देवासुर संग्राम की चर्चा हम अपनी परंपरा में सुनते हैं। इसमें देवों और असुरों की लड़ाई में कभी असुर जीतते हैं, तो कभी देव, लेकिन अंततः साम्राज्य देव का ही स्थापित होता है। कहा जाता है कि जब देवों ने असुरों के राजा हिरण्यकश्यप के साम्राज्य पर आधिपत्य स्थापित कर लिया तो उसने ब्रह्मा की आराधना कर अपने भीतर असीम शक्ति अर्जित कर ली और वह इसके लिए सिद्ध हो गया कि वह ईश्वरीय शक्ति से संपन्न हो गया। इसका उसे अभिमान हुआ और उसने भगवान विष्णु को भगवान मानने से इनकार कर दिया, जबकि उसके घर में उसका पैदा हुआ उसका बेटा ही भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था और वह हमेशा विष्णु विष्णु की रट लगाए रहता था। यह हिरण्यकश्यप को जरा भी पसंद नहीं था। इसलिए उसने अपने बेटे प्रहलाद को खत्म करने के लिए कभी उसे पहाड़ से नीचे फेंकवा दिया। कभी पानी में डुबाने की कोशिश की और कभी आग में जलान की कोशिश की, फिर भी वह बच गया। भगवान विष्णु ने खुद नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रहलाद का जीवन बचाया और हिरण्यकश्यप का अंत किया।
प्रहलाद कैसे बना विष्णु भक्त
अब जानते हैं कि आखिर प्रहलाद कैसे विष्णु भक्त बन गया। भारतीय परंपरा की कथा से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि प्रहलाद एक दैत्य कुल में जन्मा था। उसके पिता का नाम हिरण्यकश्यप तथा माता का नाम कयाधु था। कथा में बताया गया है कि प्रहलाद के चाचा हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु के वराह अवतार ने वध कर दिया था। उसके पिता भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने चले गए थे। उस समय कयाधु गर्भवती थी। प्रह्लाद उसके पेट में पल रहा था। हिरण्याक्ष का वध हो जाने और हिरण्यकश्यप के भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो जाने पर दैत्य नगरी शासक विहीन हो गई थी। इसी अवसर का लाभ उठाकर इंद्र व अन्य देवताओं ने दैत्य नगरी पर आक्रमण कर दिया और वहां भी अपना शासन स्थापित कर लिया। उन्होंने कयाधु को बंदी बना लिया था। देवताओं के बंदीगृह से देवर्षि नारद मुनि ने कयाधु की रक्षा की थी। अपने आश्रम में स्थान दिया था। अब कयाधु देवर्षि नारद मुनि के आश्रम में ही रहती थी। प्रतिदिन नारद मुनि द्वारा हरि वचन और कथाएं सुनती थी। नारद मुनि के वचनों तथा विष्णु भक्ति से अपनी मां के गर्भ में पल रहा अजन्मा प्रह्लाद भी विष्णु भक्त बन गया था। जब उसका जन्म हुआ तब वह विष्णु की भक्ति में ही लीन रहने लगा। लाख कोशिश कर भी उसका बाप हिरण्यकश्यप उसे भक्ति के मार्ग से डिगा नहीं सका।