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मणिपुर में मुख्यमंत्री, दो मंत्री और 8 विधायकों के घरों पर हमले, पांच जिलों में कर्फ्यू, सात में इंटरनेट स्थगित

मणिपुर में मुख्यमंत्री, दो मंत्री और 8 विधायकों के घरों पर हमले, पांच जिलों में कर्फ्यू, सात में इंटरनेट स्थगित

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New Delhi news : मणिपुर में तीन महिला और तीन बच्चों के शव मिलने के बाद हिंसा जारी है। बिगड़ते हालात को देखतेहुए गृहमंत्री अमित शाह नागपुर की चार रैलियां रद्द कर दिल्ली लौट आए हैं। उन्होंने दिल्ली पहुंचते ही आला अफसरों के साथ राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर समीक्षा बैठक की। समझा जा रहा है कि केंद्र सरकार मणिपुर में शांति बहाली के लिए कोई बड़ा एक्शन ले सकती है। सूत्रों के अनुसार अगले दो-तीन दिन में हालात और बिगड़े, तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। फिलहाल केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) प्रमुख अनीश दयाल को हालात का जायजा लेने के लिए भेजा गया है।

बीच मणिपुर हिंसा और असहमति के बाद, नेशनल

इसपीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने भारतीय जनता पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया है। एनपीपी ने इस फैसले को राज्य की मौजूदा स्थिति से जोड़ते हुए आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की सरकार राज्य में जारी हिंसा और संकट से निपटने में पूरी तरह नाकाम रही है।

इसी बीच राज्य सरकार ने केंद्र से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) वापस लेने को कहा है। हिंसा के कारण केंद्र सरकार ने 14 नवंबर को इंफाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट, जिरीबाम, कांगपोकपी और बिश्नुपुर जिलों के सेकमाई, लामसांग, लामलाई, जिरीबाम, लीमाखोंग और मोइरांग पुलिस थाना इलाकों में अफस्पा लगाया था। 16 नवंबर को सीएम एन बीरेन सिंह, दो मंत्रियों और 8 विधायकों के घरों पर हमले हुए। हालात बिगड़ते देख पांच जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया और सात जिलों में इंटरनेट सर्विस स्थगित कर दिया गया है।

इस बीच, कुछ मंत्रियों सहित भाजपा के 19 विधायकों ने बीरेन सिंह को हटाने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा है। 16 नवंबर को जिरिबाम में बराक नदी के तट से दो महिलाओं और एक बच्चे का शव मिला था। शक है कि इन्हें 11 नवंबर को कुकी उग्रवादियों ने जिरीबाम से अपहृत किया था। 11 नवंबर को ही सुरक्षाबलों ने 10 बंदूकधारी उग्रवादियों को मार डाला था, जबकि कुकी-जो संगठन ने इन 10 लोगों को विलेज गार्ड बताया था। 15 नवंबर की रात भी एक महिला और दो बच्चों के शव मिले थे।

विरोध प्रदर्शन के चलते मणिपुर के पांच घाटी जिलों में कर्फ्यू लगाया गया है, जबकि सात जिलों में शनिवार शाम 5:15 बजे से दो दिन के लिए इंटरनेट स्थगित कर दिया गया है। ये जिले हैं- इंफाल ईस्ट, इंफाल वेस्ट, बिष्णुपुर, थौबल, काकचिंग, कांगपोकपी और चुराचांदपुर।

मिजोरम सरकार की अपील

दूसरी ओर, मिजोरम सरकार ने केंद्र और मणिपुर सरकार से अपील की है कि वे हिंसा को रोकने और शांति बहाल करने के लिए तुरंत कदम उठाएं। मिजोरम के गृह विभाग ने मारे गए लोगों के परिवारों और घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त की। सरकार ने मिजोरम के लोगों से कहा है कि वे कोई ऐसा काम न करें, जिससे यहां तनाव बढ़े। हिंसा की वजह से मणिपुर के करीब 7,800 लोग मिजोरम में शरण ले चुके हैं। ये लोग कुकी-जो समुदाय से हैं, जिनका मिजोरम के मिजो समुदाय से गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव है।

जिनके घरों पर हुए हमले

जिन आठ विधायकों के घर पर हमला हुआ है उनमें राजकुमार इमो सिंह (सागोलबंद विधानसभा), सपम कुंजकेश्वर (पटसोई विधानसभा), सपम निशीकांत (केशमथॉन्ग विधानसभा), थांगजम अरुणकुमार (वांगखेई विधानसभा), सागोलशेम केबी देवी (नाओरिया पखांगलाकपा विधानसभा), ख्वैरखपम रघुमनि सिंह (उरिपोक विधानसभा), एसी लोकन (वांगकोई विधानसभा), करम श्याम (लांगथाबल विधानसभा) के नाम शामिल हैं। इनके अलावा मुख्यमंत्री के पैतृक निवास पर भी हमला हुआ है। यही नहीं, राज्य कैबिनेट मंत्री सपम रंजन और थोंगम बिस्वजीत सिंह के घर पर भी हमला हुआ।

हिंसा के 500 दिन

कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा को लगभग 500 दिन हो गए। इस दौरान 237 मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। करीब 11 हजार एफआईआर दर्ज की गईं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया। इस दौरान महिलाओं की न्यूड परेड, गैंगरेप, जिंदा जलाने और गला काटने जैसी घटनाएं हुईं। अब भी मणिपुर दो हिस्सों में बंटा हैं। पहाड़ी जिलों में कुकी हैं और मैदानी जिलों में मैतेई। दोनों के बीच सरहदें खिचीं हैं, जिन्हें पार करने का मतलब है मौत।

हिंसा की वजहें

मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। एसटी वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50 प्रतिशत है। राज्य के करीब 10 फीसदी इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90 प्रतिशत इलाके में रहते हैं।

मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किया जाए।

मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया। बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में एसटी वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा। मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 मुख्यमंत्रियों में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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