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शक्ति पीठों में से एक है बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर, यहां धोती-कुर्ता पहन कर विराजमान हैं विघ्नहर्ता

शक्ति पीठों में से एक है बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर, यहां धोती-कुर्ता पहन कर विराजमान हैं विघ्नहर्ता

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Ballaleshwar Ashtavinayaka :  महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िला के पाली गांव में स्थित भगवान श्री गणेश का बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यहां एकमात्र ऐसे गणपति हैं, जो धोती-कुर्ता जैसे वस्त्र धारण किये हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भक्त बल्लाल को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिये थे। इस अष्टविनायक की महिमा का बखान मुद्गल पुराण में भी विस्तार से किया गया है। दरअसल, मान्यता यह है कि बल्लाल नाम के एक व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश उसी मूर्ति में विराजमान हो गये थे, जिसकी पूजा बल्लाल किया करते थे। ज्ञातव्य है कि अष्टविनायकों में बल्लालेश्वर ही भगवान श्री गणेश का वह रूप है, जो भक्त के नाम से जाना जाता है। अष्टविनायक तीर्थ यात्रा की शुरुआत मोरेगांव के मोरेश्वर या कहें मयुरेश्वर मंदिर में भगवान श्री गणेश के दर्शन करने से होती है। मयुरेश्वर के पश्चात सिद्धटेक के सिद्धिविनायक मंदिर में भगवान विनायक की आराधना की जाती है। मोरेश्वर एवं अष्टविनायक मंदिर के पश्चात अष्टविनायक तीर्थ यात्रा का तीसरा पड़ाव आता है बल्लालेश्वर विनायक मंदिर का। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के पाली गांव में भगवान श्री गणेश का यह मंदिर स्थित है। आइये, जानते हैं बल्लालेश्वर विनायक के बारे में…

यहां भगवान गणेश को कहते हैं बल्लालेश्वर विनायक

महाराष्ट्र के मुम्बई (124 कि.मी) और पुणे (111 कि.मी) से लगभग समान दूरी पर रायगढ़ जिले के पाली गांव में भगवान गणेश का यह मंदिर स्थित है। यह अष्टविनायक शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ मान्यता जुड़ी है कि यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्री गणेश किसी साधारण व्यक्ति जैसे परिधान (धोती-कुर्ते) में हैं। मान्यता है कि भगवान श्री गणेश ने यहां पर अपने भक्त बल्लाल को एक ब्राह्मण के वेश में दर्शन दिये थे। भगवान श्री गणेश भक्त के बल्लाल के नाम पर ही इस मंदिर का नाम बल्लालेश्वर विनायक पड़ा। मान्यता है कि भगवान श्री विनायक का यह इकलौता मंदिर है, जिसका नाम उनके भक्त के नाम पर रखा गया है। इसकी एक कहानी भी है, जो कुछ इस तरह है।

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बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, पाली गांव में एक सेठ दम्पति रहते थे। सेठ का नाम कल्याण, तो उनकी पत्नी का नाम इंदुवती था। उनका एक पुत्र भी था, जो भगवान श्री गणेश का परमभक्त था। नाम था बल्लाल। उसकी भक्ति से पिता खुश नहीं थे। वह चाहते थे कि बल्लाल उनके कामकाज में हाथ बंटाये, लेकिन वह स्वयं तो सारा दिन भक्ति में लीन रहता ही था। साथ ही, और भी हम उम्र दोस्तों को भगवान श्री गणेश की महिमा सुनाता रहता और उन्हें भी भक्ति के लिए प्रेरित करता।

एक दिन उसके दोस्तों के माता-पिता सेठ कल्याण के यहां पंहुचे और शिकायत की कि बल्लाल खुद तो कुछ करता नहीं है, उनके पुत्रों को भी बिगाड़ रहा है। फिर क्या था सेठ का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।  वह बल्लाल को ढूंढते हुए जंगल में जा पंहुचे, जहां वह भगवान श्री गणेश की आराधना कर रहा था। उन्होंने उसे खूब पीटा ; यहां तक कि भगवान श्री गणेश की जिस प्रतिमा की वह पूजा कर रहा था, उसे भी क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया।

 उन्होंने प्रतिमा को उठा कर दूर फेंक दिया और बल्लाल को पेड़ से बांध कर वहीं मरने के लिए छोड़ दिया। हालांकि, बल्लाल अब भी शांत था और भगवान श्री गणेश के ध्यान में ही खोया था। कहते हैं, बल्लाल की निष्ठा व भक्ति से प्रसन्न हो भगवान श्री गणेश ब्राह्मण के वेश में उसके सामने प्रकट हुए और उसे बंधन से मुक्त कर कहा कि वह उसकी भक्ति से प्रसन्न हैं, जो मांगना चाहता है, मांग ले।

तब उसने कहा, “मुझे आपकी शरण के अलावा कुछ नहीं चाहिए। मेरी इतनी इच्छा है कि आप इसी क्षेत्र में वास करें।” मान्यता है कि भगवान श्री गणेश ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए स्वयं को एक पाषाण प्रतिमा में स्थापित कर लिया। यहीं पर उनके मंदिर का निर्माण भी किया गया। इसी मंदिर के समीप बल्लाल के पिता ने जिस प्रतिमा को फेंका था, उसे ढूण्ढी विनायक के नाम से जाना गया। आज भी लोग बल्लालेश्वर के दर्शन से पहले ढूण्ढी विनायक की पूजा करते हैं। इस स्थान से यह मान्यता भी जुड़ी है कि त्रेता युग में जिस दण्डकारण्य का जिक्र है, यह स्थान उसी का हिस्सा था। यह भी कि भगवान श्री राम को आदिशक्ति मां जगदम्बा ने यहीं पर दर्शन दिये थे। यहां से कुछ ही दूरी पर वह स्थान भी बताया जाता है, जहां सीताहरण के समय रावण और जटायु में युद्ध हुआ था।

बल्लालेश्वर स्वरूप व अष्टविनायक मंदिर की संरचना

बल्लालेश्वर भगवान की प्रतिमा पाषाण के सिंहासन पर स्थापित है। पूर्व की तरफ मुख वाली 03 फीट ऊंची यह प्रतिमा स्वनिर्मित हुई लगती है। इस प्रतिमा में भगवान श्री गणेश की सूंड बायीं ओर मुड़ी हुई है। नेत्रों व नाभि में हीरे जड़े हुए हैं। भगवान श्री गणेश के दोनों ओर ऋद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं भी हैं, जो उनके दोनों ओर चंवर लहरा रही हैं। यह प्रतिमा ब्राह्मण की पोशाक में स्थापित लगती है। वहीं, बल्लालेश्वर मंदिर के पीछे की ओर ढुण्ढी विनायक का मंदिर है। इसमें भगवान श्री गणेश की प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ है।

यह प्रतिमा भी स्वत: बनी लगती है

यह प्रतिमा भी स्वत: बनी लगती है। मंदिर की यदि बात करें, तो भगवान बल्लालेश्वर का प्राचीन मंदिर काष्ठ का बताया जाता है। लेकिन, कालांतर में इसके जीर्ण-शीर्ण होने पर इसका पुनर्निर्माण हुआ, जिसमें पाषाण का उपयोग हुआ है। मंदिर के समीप ही दो सरोवर भी हैं। इनमें से एक का जल भगवान श्री गणेश को अर्पित किया जाता है।

इतना ही नहीं, यदि ऊंचाई से पूरे मंदिर को देखा जाये, तो यह देवनागरी के श्री अक्षर की भांति प्रतीत होता है। मान्यता है कि हिन्दू पंचाग के अनुसार दक्षिणायन में सूर्योदय के समय भगवान श्री गणेश की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। मंदिर में अंत: और बाह्य ; दो मंडपों का निर्माण किया गया है। बाह्य मंडप 12, तो अंत: मंडप 15 फीट ऊंचा है। अंत: मंडप में ही भगवान बल्लालेश्वर की प्रतिमा स्थापित है।

बाहरी मंडप में भगवान श्री गणेश के वाहन मूषक, जो अपने पंजों में भगवान श्री गणेश के प्रिय आहार मोदक को दबाये हैं, की प्रतिमा भी बनी हुई है। भगवान बल्लालेश्वर के इस मंदिर में भाद्रपद माह की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पंचमी के बीच यहां गणेशोत्सव की धूम देखी जा सकती है। इसी समय मंदिर में महापूजा व महाभोग का आयोजन भी किया जाता है।

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