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‘इमोशनल टाइगर’ चंपई सोरेन का लेटर बम, झारखंड की राजनीति में आ सकता है भूचाल

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Jharkhand news, Jharkhand politics : चंपई सोरेन चाहें तो अपने अपमान के बदले में भाजपा में खुद और अन्य विधायकों को शामिल करवा कर हेमंत सोरेन सरकार को गिरा सकते हैं या 2024 के विधानसभा चुनाव के लिए खुद को सीएम कैंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए भाजपा पर प्रेशर बना सकते हैं. आने वाले चंद घंटे राज्य की राजनीति के लिए बेहद अहम…

झारखंड पर शुभ और अशुभ मुहूर्त का फेरा 

यह एआई का दौर है और हो सकता है कि आप शुभ मुहूर्त जैसी चीज को मानें या ना मानें. शुभ मुहूर्त क्या होता है, नहीं होता है, इस पर चर्चा फिर कभी लेकिन एक बात तो तय है कि अगर झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने शुभ मुहूर्त में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली होती तो शायद आज वह सब नहीं हो रहा होता, जो झारखंड में बीते 24 वर्षों से होता चला आ रहा है. मेरा इशारा राज्य सरकार की स्थिरता को लेकर है. आप अगर झारखंड की राजनीति को थोड़ा भी जानते हैं तो मेरी इस बात से सहमत होंगे कि 15 नवंबर 2000 की रात 11 से 12 बजे के बीच में क्षण भर के लिए एक शुभ मुहूर्त था, जिसमें मुख्यमंत्री को शपथ लेनी थी. राज्यपाल श्री प्रभात कुमार ने उस मुहूर्त में शपथ ले लिया और आप पाएंगे कि इस राज्य के राज्यपाल को लेकर कभी कोई झिकझिक नहीं हुई. अलबत्ता, मुख्यमंत्री के पद को लेकर जितनी अस्थिरता रही है, राज्य जिन कारणों से अस्थिर रहा है, उसको देख कर आप भी शायद यह मानें कि इस राज्य की प्रथम सरकार का गठन ही शुभ मुहूर्त में नहीं हुआ. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि शुभ मुहूर्त बीत जाने के बाद ही बाबूलाल मरांडी का शपथग्रहण समारोह पूर्ण हुआ था. इस बीच अनेक विधायकों का समर्थन का दावा कर सरकार बनाने का असफल प्रयास राज्यपाल के समक्ष किसने किया था, यह भी कोई गोपनीय तथ्य नहीं है. उस समय से जो गड़बड़ी चालू हुई, वह अब तक जारी है. 

चंपई सोरेन का लेटर बम विस्फोटक 

रविवार, 18 अगस्त को झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्तंभ कहे जाने वाले कोल्हान के टाइगर चंपई सोरेन ने लेटर बम फोड़ा है. यह विस्फोटक है. इस लेटर बम को राजनीतिक लेटर बम न समझें अपितु इसे एक स्वाभिमानी, नेक, दृढ़प्रतिज्ञ राजनेता की असहनीय वेदना का शाब्दिक प्रकटीकरण समझना ज्यादा श्रेयस्कर होगा. यह एक मुख्यमंत्री को उसके पद से हटाए जाने, 20 दिनों से बातचीत न करने, अपमानित और प्रताड़ित करने का शाब्दिक प्रकटीकरण है, जो पत्र के शब्दों की शक्ल में हवा में तैर रही है. इसने झामुमो के कैडर को हिला कर रख दिया है. मुख्यमंत्री तक की नींद गायब है. चर्चा है कि वह भाजपा ज्वाइन करेंगे. कर भी सकते हैं, नहीं भी. लेकिन, इस बात से कौन इनकार करेगा कि चंपई दा के साथ हेमंत का सुलूक बुरा ही नहीं, बदतर भी हो चला था? 

चंपई दा ने झारखंडियों के नाम लिखा पत्र 

आप उस पत्र को पढ़ें, जो चंपई दा ने झारखंडियों के नाम लिखा है. उसमें उन्होंने लिखा हैः आज समाचार देखने के बाद आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे. आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया? अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है. राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं. किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा. उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे. इसी बीच, 31 जनवरी को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद  इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना. अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा. बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी.

…और मेरे सभी कार्यक्रम पार्टी ने स्थगित करवा दिए 

वह आगे लिखते हैः इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है. इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था. पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है. तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते. क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा. लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया. इसके बाद भी बहुत कुछ उन्होंने लिखा है. आप पूरा पत्र उनके एक्स पर जाकर पढ़ सकते हैं. 

अब आगे क्या होगा?

अब सवाल यह उठता है कि होगा क्या? एक संभावना यह है कि वह भाजपा ज्वाइन कर लें. दूसरी संभावना यह है कि वह अपना कोई दल बना लें. तीसरी संभावना यह बनती है कि वह झामुमो में रहते हुए ही असंतुष्टों (जिनकी संख्या लगभग 16 बताई जा रही है) को साधें और भाजपा में शामिल होकर सरकार गिरा दें. राजनीति अंकगणित का खेल है. जिसके पास नंबरगेम है, वही किंग बनता है. यह देखना होगा कि बेहद भावुक, स्वाभिमानी चंपई दा करते क्या हैं. 

जिस दिन हेमंत जेल से बाहर निकले थे, उस दिन सियासत के पंडित माने जाने वाले लोग यह कहते नहीं अघा रहे थे कि अब हेमंत मैदान में घूमेंगे, चंपई राज चलाएंगे. कई सियासी पंडितों को इस बात की जानकारी थी कि हेमंत सोरेन सत्ता के बगैर रह नहीं पाएंगे. वह आते ही चंपई को हटाएंगे. हुआ भी ऐसा ही. उन्होंने 3 जुलाई को चंपई दा से इस्तीफा ले लिया. उसी दिन, जब चंपई दा ने इस्तीफा दिया था, तब मैंने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा थाः हेमंत ने राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया, इस साल यानी 2024 में शायद ही झारखंड उनके पास रहे. लगता है, वह घड़ी निकट ही है.

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