New Delhi news, Kolkata news : उत्तर रेलवे यात्रियों को स्वच्छ और उच्च गुणवत्ता के चादर, तकिये और कम्बल उपलब्ध करा रहा है। इसके लिए उत्तर रेलवे पर प्रतिदिन एक लाख से अधिक बेडरोल की मैकेनाइज्ड धुलाई हो रही है। प्रयोग के तौर पर कुछ चुनिंदा ट्रेनों के कम्बलों की अल्ट्रा वायलेट कीटाणुशोधन प्रक्रिया भी शुरू की गयी, जिसमें उत्तर रेलवे को 99.7 प्रतिशत सफलता मिली है।
उत्तर रेलवे के सीपीआरओ ने प्रेस वार्ता में दी यह जानकारी
उत्तर रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी (सीपीआरओ) हिमांशु शेखर उपाध्याय ने शनिवार को एक प्रेस वार्ता में कहा कि उत्तर रेलवे पर संचालित होनेवाली सभी ट्रेनों में वातानुकूलित श्रेणी के कोचों में साफ, स्वच्छ और उच्च गुणवत्तावाले बेडरोल प्रदान किये जा रहे हैं। सभी चादरों और तकिया कवर को प्रत्येक उपयोग के बाद मैकेनाइज्ड लॉन्ड्री में धुलाई और इस्त्री की जाती है, ताकि यात्रियों को स्वच्छ बेडरोल देकर उनकी आरामदायक, साफ-सुथरी और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित की जा सके।
15 दिन में एक बार धुलाई होती है कंबलों की
उपाध्याय ने कहा कि पहले कम्बलों की धुलाई 03 महीने में एक बार की जाती थी, 2010 में उसे घटा कर 02 महीने में एक बार किया गया। वर्तमान में कम्बलों की धुलाई का काम 15 दिन में एक बार किया जाता है। रेलवे द्वारा एसी कोच में प्रत्येक यात्री को 02 चादरें दी जाती हैं, जिसमें से एक सीट पर बिछाने तथा दूसरी कम्बल के कवर के रूप में इस्तेमाल के लिए दी जाती है। इसके अतिरिक्त एसी कोच का तापमान भी 24 डिग्री के आसपास रखा जाता है, ताकि कंबल की आवश्यकता ही ना पड़े और चादर ही पर्याप्त हो।
उच्च गुणवत्ता वाले बेड रोल दिये जा रहे
उत्तर रेलवे ने प्रयोग के तौर पर रांची राजधानी में उच्च गुणवत्ता वाले बेड रोल देना शुरू किया था। अब उत्तर रेलवे द्वारा संचालित राजधानी, दुरंतो एवं एसी स्पेशल गाड़ियों में उच्च गुणवत्ता वाले बेड रोल दिये जा रहे है। हाल ही में उत्तर रेलवे ने रेलगाड़ी संख्या 12424 नयी दिल्ली-डिब्रूगढ़ राजधानी में अल्ट्रा वायलेट कम्बल कीटाणुशोधन किया। हर राउंड ट्रिप समाप्त होने पर इस गाड़ी के कम्बलों को अल्ट्रा वायलेट कम्बल कीटाणुशोधन के लिए भेजा गया। इसके बाद कम्बल का स्वाब लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा गया। इसमें उत्तर रेलवे ने 99.7 प्रतिशत सफलता हासिल की है।
उत्तर रेलवे पर बेडरोल की अनुपलब्धता और गंदे या फटे बेडरोल की शिकायतों में निरन्तर कमी आ रही है। इसके साथ ही चादरों और कम्बलों को कुछ समय बाद बदला भी जाता है तथा नये लिनेन सेट की खरीद की जाती है। मैकेनाइज्ड लॉन्ड्रियो में भी सफाई के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है तथा सीसीटीवी एवं स्टाफ द्वारा निरन्तर निगरानी रखी जाती है। धुले हुए कपड़ों की गुणवत्ता को चेक करने के लिए व्हाइटोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है। उत्तर रेलवे मुख्यालय एवं मंडल स्तर रेल मदद पर प्राप्त बेड रोल सहित अन्य शिकायतों की निगरानी के लिए वार रूम स्थापित किये गये हैं, जो यात्रियों की शिकायत एवं फीडबैक पर निरन्तर 24×7 निगरानी करते हैं। रेलवे यात्रियों के सुरक्षित एवं आरामदायक यात्रा के लिए कटिबद्ध है।
बेडरोल की पर्यावरण अनुकूल पैकेजिंग
वर्तमान विनिर्देशों के अनुसार भारतीय रेलवे में उपयोग किये जानेवाले कम्बल हल्के होते हैं, धोने में आसान होते हैं और यात्रियों को समग्र आरामदायक यात्रा के लिए अच्छा इन्सुलेशन प्रदान करते हैं। स्टेशन और ट्रेनों में लिनेन/बेडरोल के भंडारण, परिवहन, लोडिंग और अनलोडिंग के लिए बेहतर लॉजिस्टिक्स। कोच में यात्रा करने वाले अन्य ईमानदार यात्रियों के बराबर। रद्दीकरण के विरुद्ध आरक्षण (आरएसी) यात्रियों को भी पूरा लिनेन प्रदान किया जाता है। 2016 से इसे और घटा कर 15 दिन कर दिया गया है। कम्बल की सफाई का समय 2010 में पहले के 03 महीने से घटा कर 02 महीने कर दिया गया है। लॉजिस्टिक्स चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में इसे बढ़ाकर 20 से 30 दिन किया जा सकता है। रेलवे हमेशा एसी के प्रत्येक यात्री को दो चादरें देता है। एक बर्थ पर बिछाने के लिए और दूसरी कम्बल ओढ़ने के लिए। एसी कोच का तापमान 24 डिग्री के आसपास रखा जाता है, ताकि कम्बल की जरूरत न पड़े और चादर पर्याप्त से अधिक हो। दक्षिण पूर्व रेलवे में, चार स्थानों पर मैकेनाइज्ड क्लीनिंग लॉन्ड्री डिपो कार्यरत हैं, अर्थात संतरागाछी, रांची, चक्रधरपुर और टाटानगर, जिनकी कुल औसत क्षमता प्रतिदिन 19 टन लिनन धोने की है, जिसमें इन मैकेनाइज्ड लॉन्ड्री पर 19,000 पैकेट शामिल हैं। दक्षिण पूर्व रेलवे अपनी सेवाओं में निरन्तर सुधार करने और अपने यात्रियों को विश्व स्तरीय अनुभव प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।