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महाकुम्भ में 25 देशों से आए श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी

महाकुम्भ में 25 देशों से आए श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी

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Mahakumbh Nagar news : प्रयागराज महाकुम्भ में आए 25 देशों के श्रद्धालुओं ने आज संगम में आस्था की डुबकी लगायी। इन श्रद्धालुओं में प्रमुख रूप से भारत में नॉर्वे की राजदूत मे-एलिन स्टेनर और उनके पति तथा मैक्सिको के विख्यात पर्यावरणविद् अबुएलो एंटोनियो आॅक्सटे और अन्य शामिल थे।

परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने बताया कि पिछले दिनों महाकुम्भ भगदड़ में शिकार हुई दिव्य आत्माएं संगम में स्नान करने आयीं थी, परन्तु स्नान नहीं कर पायीं। उनकी आत्मा की शांति, सद्गति के लिए भी डुबकी लगायी गयी। प्रभु उन सभी दिव्यात्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान दें तथा उनके परिवारजनों को यह दु:ख सहन करने की शक्ति, धैर्य व सामर्थ्य प्रदान करें।

अरैल स्थित परमार्थ निकेतन शिविर से संगम तट तक विश्वभर से आए श्रद्धालुओं ने एक मानव श्रृंखला बनाई, जो इस बात का प्रतीक है कि जब हम एकजुट होते हैं तो दुनिया में कोई भी मुश्किल हमें तोड़ नहीं सकती। यह मानव शृंखला न केवल सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है, बल्कि यह विश्व की एकता, शांति और सद्भाव का संदेश भी पूरे विश्व को दे रही है। सभी श्रद्धालुओं ने एक साथ मिलकर संगम का संदेश दिया कि हम सभी का जीवन एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। हम सब एक ही पृथ्वी के नागरिक हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने बताया कि इस आयोजन में पांच महाद्वीपों के 25 देशों से आए श्रद्धालुओं ने संगम में एकता और सामूहिक प्रार्थना का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालु एक साथ खड़े होकर भारत की धरती पर एक अभूतपूर्व सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मिलन का हिस्सा बने। यह आयोजन न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक विविधताओं को सम्मान देने वाला और वैश्विक एकता को प्रोत्साहित करने वाला है।

आश्रम से जुड़े डॉ. ईशान शिवानंद ने कहा कि स्वामी जी के सान्निध्य में आयोजित दिव्य स्नान और श्रद्धाजंलि प्रार्थना मानवता को समर्पित है। हम सभी एक परिवार हैं, और जब हम एक साथ मिलकर कार्य करते हैं, तो हम विश्व को बेहतर बना सकते हैं। साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि हम सभी की संस्कृति, विश्वास और धर्म चाहे जो भी हो परंतु हमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम बनाए रखना चाहिए, क्योंकि मानवता का वास्तविक उद्देश्य एक दूसरे के साथ प्रेम और सहिष्णुता के साथ जीना है। संगम का यह पवित्र आयोजन न केवल श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि यह एक वैश्विक परिवार की भावना का भी प्रतीक है।

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