Dharm adhyatm : भारतीय जीवन परंपरा में रामायण का महत्व सदियों से चला आ रहा है। राम, रावण और सीता केवल पात्र ही नहीं, भारतीय जीवन के भीतर की कुछ विशेषताओं और कर्मियों को दर्शाते हैं। राम मर्यादा के प्रतीक हैं तो रावण बुराई का। माता सीता नारी जीवन के आदर्श को प्रस्तुत करती हैं। यह सभी कहते हैं कि बेशक रावण राक्षस था, लेकिन उसकी विद्वता के सामने किसी का टिकना संभव नहीं था। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि रावण का भाई कुंभकरण क्या था और उसके जीवन की क्या विशेषता थी। वह हमारे समाज के लिए क्या संदेश देता है। आज हम कुंभकरण के चरित्र को जानने की कोशिश करते हैं। सामान्य रूप से हम जानते हैं कि रावण कुंभकरण का बड़ा भाई था और उसका छोटा भाई विभीषण था। कहा जाता है कि कुंभकरण साल में 6 माह सोता था और 6 माह जगता था तो उसके भोजन की व्यवस्था करना बड़ा कठिन काम हो जाता था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुंभकरण में रावण को राम की शरण में जाने को कहा था।
कुंभकरण के बारे में क्या कहती है रामायण की कथा
रामायण की कथा के विशेष जानकारी बताते हैं कि कुंभकरण का जन्म ब्राह्मण-राक्षस कुल में हुआ था। उसके पिता महान ऋषि विश्रवा थे माता राक्षस कुल की कैकसी। वह जन्म से ही अतिविशाल शरीर लेकर पैदा हुआ था तथा समय के साथ-साथ वह और विशाल होता गया। कुंभकरण प्रतिदिन असंख्य लोगों के बराबर भोजन खा जाता था। प्रिया महत्वपूर्ण बात है कि कुंभकरण देव इंद्र द्वारा स्वयं से ईर्ष्या रखने की बात जानता था तथा उसे भी देव इंद्र पसंद नही थे। कुंभकरण भगवान ब्रह्मा से वरदान में इंद्रासन मांगना चाहता था अर्थात देव इंद्र का आसन जिससे देवलोक पर उसका अधिकार हो जाता। उसी समय देव इंद्र ने सरस्वती माता से सहायता मांगी तो मां सरस्वती कुंभकरण के वरदान मांगते समय उसकी जिव्हा पर बैठ गईं। इस कारण कुंभकरण ने भगवान ब्रह्मा से इंद्रासन की बजाए निद्रासन मांग लिया अर्थात हमेशा सोते रहने का वरदान। भगवान ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दे दिया।
जब 6 माह बीतने के पहले ही उसे जगाया गया…
एक दिन कुंभकरण सो रहा था। उसे छह माह से पहले ही रावण के सैनिकों द्वारा जगा दिया गया। इसके लिए बहुत प्रयास किए गए व अन्तंतः कुंभकरण जाग गया। जागते ही उसे बहुत सारा भोजन व मदिरा पीने को दी गई। इसके बाद कुंभकरण ने स्वयं को समय से पहले जगाने का औचित्य पूछा तो उन्होंने इसे महाराज रावण का आदेश बताया। कुंभकरण भोजन करने के पश्चात रावण से मिलने उसके भवन की ओर निकल पड़ा। राम रावण युद्ध को लेकर कुंभकरण को यह आभास हो गया था कि श्रीराम कोई और नही अपितु नारायण का अवतार हैं। माता सीता स्वयं मां लक्ष्मी का।
पसंद किया नारायण के हाथों मर जाना
रामायण की कथा में यह वर्णन है कि जब कुंभकरण सुग्रीव को बंदी बनाकर रावण के महल की ओर जाने लगा तो स्वयं श्रीराम ने उसे चुनौती दी। कुंभकरण को पता चल गया था कि उसके सामने स्वयं नारायण आ चुके हैं व अब उसका अंत निश्चित है, लेकिन नारायण के हाथों मृत्यु होने से वह निश्चिंत भी था। उसने श्रीराम के साथ भीषण युद्ध किया और उनके हाथों मरकर एक प्रकार से अमर हो गया। इसलिए उसके चरित्र को हम आज भी जानते हैं और आगे की पीढ़ियां भी जानती रहेगी।