New Delhi news : पश्चिम बंगाल सरकार की अनदेखी से 500 साल से भी अधिक पुरानी पाक विरासत बैंडल चीज (गाय के दूध का विशेष पनीर) का अस्तित्व खतरे में है। इसे बनाने वाले कभी सात से ज्यादा परिवार हुआ करते थे लेकिन आज केवल एक ही परिवार इसे बना रहा है और वो भी इस आर्थिक तंगी के कारण चीज को तैयार करने से बचने लगे हैं। हुगली के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाले बैंडल चीज का अस्तित्व बचाने के प्रयास में पश्चिम बंगाल सरकार ने कोई रुचि नहीं दिखायी है। इस विषय पर हाल ही में भाजपा के राज्यसभा सदस्य शमिक भट्टाचार्य ने संसद में जीआई टैग पर सवाल पूछा था। इस पर केन्द्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि राज्य सरकार या किसी भी हितधारक द्वारा बैंडल चीज के जीआई पंजीकरण के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है।
जीआई टैग क्यों है जरूरी
सांसद भट्टाचार्य ने बताया कि जीआई टैग इसकी प्रामाणिकता को बनाए रखने, स्थानीय उत्पादकों को बढ़ावा देने और इसकी विरासत को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है। फिर भी यह विरासत चीज आधिकारिक उदासीनता के कारण अनजान बनी हुई है। उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य सरकार इस पर चुप क्यों है? स्थानीय उत्पादकों को संस्थागत समर्थन के बिना क्यों छोड़ा गया है? क्या सरकार अंतत: पश्चिम बंगाल की अनूठी पाक विरासत की रक्षा के लिए कार्रवाई करेगी? बैंडल चीज को उसकी सही मान्यता मिलनी चाहिए। बंगाल के रसगुल्ले को जीआई टैग मिला है जबकि छेना बनाने की शुरूआत ही बैंडल से हुई है। सबसे पहले देश में पनीर बनाने की शुरूआत हुगली से हुई है।
अगर बैंडल चीज के इतिहास के बारे में बात करें तो इसका जिक्र ब्रिटिश सरकार के गजेटियर में भी मिलता है। इसके अलावा कुछ पुरानी इतिहास की किताबों में भी इसका जिक्र है। ब्लूमबर्ग बिजनेस पत्रिका ने 2017 में एक सर्वेक्षण में ‘बैंडेल चीज’ को दुनिया के शीर्ष 12 चीजों में से एक बताया था, जो अब मिलना दुर्लभ है। इसके अलावा कुछ जाने माने शेफ को यह बैंडेल चीज पसंद है। हाल ही में जाने-माने मिशेलिन स्टार शेफ विकास खन्ना ने भी न्यूयॉर्क में अपने मिशेलिन स्टार रेस्तरां ‘बंगला’ में बैंडेल चीज का इस्तेमाल किया था। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे को बैंडेल चीज खाना बहुत पसंद था।
बैंडल चीज या पनीर का इतिहास
बैंडल पनीर, एक इंच चौड़े और एक चौथाई इंच मोटे छोटे गोल आकार में बेचा जाता है। यह दो किस्मों में उपलब्ध है, स्मोक्ड और सादा। इसके संरक्षण के लिए दोनों में अत्यधिक नमक डाला जाता है। पश्चिम बंगाल में छेना या पनीर को सबसे पहले लाने वाले या यू कहिए परिचित कराने वाले पुर्तगाल से आए लोग जिम्मेदार थे। पुर्तगाली लोगों को पनीर बहुत पसंद था, जिसे वे दूध को अम्लीय पदार्थों के साथ फाड़ कर बनाते थे। भारत में तो दूध का फटना असुभ माना जाता था। यहां ज्यादातर मिठाई खोए से बनी होती थी। थॉमस बोउरे की पुस्तक जियोग्राफिकल अकाउंट आॅफ द कंट्रीज अराउंड द बे आफ बंगाल 1690-1780 के अनुसार, पुर्तगालियों ने घी और मक्खन के साथ पनीर को वर्तमान जावा में निर्यात करने का कारोबार किया। स्मोक्ड किस्म संभवत: डचों की देन है, उन्हें स्मोक्ड गौडा के प्रति गहरा प्रेम था। बैंडल चीज को बड़ी मात्रा में बनाने के लिए पुर्तगालियों ने पश्चिम बंगाल के स्थानीय लोगों को नियुक्त किया। इस तरह से बंगालियों को पनीर बनाने की प्रक्रिया से परिचित कराया गया। इस पुर्तगाली पाक विरासत पर अब कई शोध कार्य भी हो रहे हैं।
जीआई टैग से इस पाक विरासत का संरक्षण संभव
द होल हॉग डेली के संस्थापक और एक्टिविस्ट सौरभ गुप्ता बताते हैं कि बैंडल चीज की अनोखे स्वाद के साथ इसकी कहानी भी एकदम अनूठी है। इसका पूरा श्रेय कोरोना काल को जाता है। लॉकडाउन के दौरान बाकी दुकानदारों के साथ बैंडल चीज बनाने वाले पलाश घोष के परिवार पर भी असर डाला। उस समय दुकान बंद होने के कारण बैंडल चीज बनाने वाले पलाश घोष की दुकान में बनने वाले 1200 किलोग्राम पनीर खराब हो गया जिससे उन्हें काफी नुकसान हुआ। नौबत यहां तक आ गई कि उन्हें अपने परिवार के खर्च के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ी। थोड़ी मांग को देखते हुए उनके पिताजी बेहद कम पनीर ही बना पाते थे लेकिन उससे गुजारा नहीं हो पाता था। सौरभ गुप्ता बताते हैं कि इस पनीर के बारे में सुनकर उन्होंने पलाश घोष से मुलाकात की। पलाश ने बताया कि बैंडल चीज बनाने वाले उन परिवारों में से एक है जिसने पांच सौ साल से भी पुराने इस पाक विरासत को आज भी जिंदा रखा है। इनका परिवार पिछले 11 पीढ़ियों से बैंडल चीज बना रहा है। पलाश घोष की मदद के लिए आगे आए सौरभ गुप्ता बताते हैं कि बैंडल पनीर की मांग को देखते हुए उन्होंने पनीर को अपने आॅनलाइन बिजनेश द होल हॉग डेली के माध्यम से होटल और लोगों तक पहुंचाने लगे। मांग के अनुसार अब न केवल कोलकाता बल्कि पूरे देश में बैंडल चीज की डिलीवरी की जाने लगी है। अगर इसे जीआई टैग मिल जाता है तो इसे सरकार की तरफ से भी संरक्षण मिल जाएगा और दुनियाभर में लोगों को भी इसकी जानकारी मिल सकेगी।
इस कारण नाम पड़ा बैंडल चीज
बैंडल पनीर का नाम उसके स्थान के नाम से मिला है। पश्चिम बंगाल के हुगली में बैंडल जगह है जहां पहले पुर्तगाली लोगों की कॉलोनी हुआ करती थी। उन्होंने इस जगह में रहने वाले ग्वालों को अपने साथ काम पर लगाया। चूंकि बैंडल चीज बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले गाय के दूध की आवश्?कता होती है इसलिए बैंडल पनीर बनाने वाले डेयरी किसान ही थे। इन्होंने पुर्तगाली लोगों से पनीर बनाने की कला सीखी थी। हुगली जिले में बैंडल चीज बनाने वाले सात परिवार के बारे में जानकारी मिलती है जिसमें अब एक ही परिवार बैंडल पनीर को बना रहा है। बंदेल चीज के पुनरुत्थान के लिए इसे सरकारी संरक्षण देने की जरूरत है।