Home
National
International
Jharkhand/Bihar
Health
Career
Entertainment
Sports Samrat
Business
Special
Bright Side
Lifestyle
Literature
Spirituality

14 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्राति, खरमास होगा खत्म, मांगलिक कार्य हो जाएंगे शुरू

14 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्राति, खरमास होगा खत्म, मांगलिक कार्य हो जाएंगे शुरू

Share this:

Sushil kumar pandey, Motihari news: मकर राशि की सूर्य संक्रांति 14 जनवरी मंगलवार को दिन में 02:58 बजे से आएगी। इसलिए मकर संक्राति अथवा खिचड़ी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इसका पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा। इसके साथ ही भगवान सूर्य उत्तरायण हो जायेंगे और खरमास समाप्त हो जाएगा तथा इसी दिन से विवाह आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जायेंगे।

सूर्य को विशेष स्थान है प्राप्त

यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि मकर संक्राति प्रधानतः सूर्योपासना का त्योहार है और भारतीय आध्यात्मिक-सांस्कृतिक रिवाज में सूर्य को विशेष स्थान प्राप्त है। धार्मिक महत्ता से इतर सूर्योपासना की पर्यावरणीय और सामाजिक उपयोगिता भी है।

छह राशियों में करता है भ्रमण

सूर्योपासना और पवित्र नदियों में स्नान अन्य प्रकार से मानव की प्रकृति पर निर्भरता को रेखांकित करने के साथ ही प्रकृति के प्रति उसकी कृतज्ञता को भी ज्ञापित करता है।

मकर संक्रांति के दिन से सूर्य मकर से मिथुन तक की छः राशियों में रहते हुए उत्तरायण कहलाता है। उत्तरायण के छः मासों में सूर्य क्रमशः मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृष और मिथुन इन छः राशियों में भ्रमण करता है।

पृथ्वी गुजरती है देवलोक के सम्मुख

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार दक्षिणायन के छः मासों को देवताओं की एक रात्रि माना गया है। इसी प्रकार उत्तरायण छः मास में देवलोक में दिन रहता है। उत्तरायण के समय पृथ्वी देवलोक के सम्मुख से गुजरती है, इसलिए स्वर्ग के देवता उत्तरायण काल में पृथ्वी पर घुमने आते हैं तथा पृथ्वी पर मानव द्वारा किया गया हविष्य (आहुति) आदि स्वर्ग के देवताओं को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है।

स्नान व दान का है विशेष महत्व

अतः उत्तरायण काल एक पवित्र समय है। दान-पुण्य के कार्य उत्तरायण काल में करना परम कल्याणकारी रहता है।

प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि मकर संक्राति के दिन गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों अथवा किसी पवित्र जलाशयों में स्नान एवं दान आदि करने की पुण्यफलदायक परंपरा है। इस दिन तिल युक्त खिचड़ी तथा तिल के लड्डू दान देने एवं खाने-खिलाने का विधान है। इस अवसर पर ऊनी वस्त्र, कम्बल, जूता तथा धार्मिक पुस्तकें व विशेषकर पंचांग का दान विशेष पुण्यफल कारक होता है।

Share this: