मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कहा, मैं अपनी टिप्पणियों पर कायम
New Delhi news : इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव की पिछले महीने एक कार्यक्रम में की गईं टिप्पणियों पर काफी विवाद हुआ था। समान नागरिक संहिता पर बोलते हुए उन्होंने मुसलमानों से धार्मिक सुधार की अपील की थी और कहा था कि ‘देश बहुसंख्यकों के हिसाब से’ चलेगा। इन टिप्पणियों के लिए सीजेआई संजीव खन्ना की अगुआई वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने उन्हें तलब किया था और फटकार भी लगाई थी। अब ताजा अपडेट ये है कि जस्टिस यादव अब भी अपनी टिप्पणियों पर कामय हैं। उन्होंने चीफ जस्टिस को लिखे एक खत में कहा है कि उनकी टिप्पणी न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती। उनके बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
17 दिसंबर को हुई थी बैठक
जस्टिस यादव की मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम के साथ 17 दिसंबर को बैठक हुई थी। इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली ने उनसे जवाब मांगा था। अंग्रेजी एक अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मामले में नई रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि जस्टिस यादव से जवाब मांगने वाले पत्र में एक कानून के छात्र और एक पूर्व आईपीएस अधिकारी की शिकायतों का जिक्र था। आईपीएस अधिकारी को सरकार द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी। दोनों ने जस्टिस यादव के भाषण के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
भाषण तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा
जस्टिस यादव ने अपने जवाब में कहा कि उनके भाषण को निहित स्वार्थों वाले लोग तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका के सदस्य सार्वजनिक रूप से अपना बचाव नहीं कर सकते। इसलिए न्यायिक बिरादरी के वरिष्ठ लोगों को उनकी रक्षा करनी चाहिए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जस्टिस यादव ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगी है। उन्होंने कहा कि उनका भाषण संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप सामाजिक मुद्दों पर विचारों की अभिव्यक्ति था, न कि किसी समुदाय के प्रति घृणा फैलाने के लिए।
हिंदुओं ने सुधार किए हैं, जबकि मुसलमानों ने नहीं
8 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की लाइब्रेरी में विश्व हिंदू परिषद के लीगल सेल की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा था कि हिंदुओं ने सुधार किए हैं, जबकि मुसलमानों ने नहीं। जस्टिस यादव ने कहा था, ‘आपको एक गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपकी शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक बात और कहना चाहता हूं चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू लॉ हो, आपका कुरान हो या हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा, हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों को दूर किया है। कमियां थीं, दूरुस्त कर लिए हैं। छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या जैसे सभी मुद्दों को ठीक किया है, फिर आप इस कानून को क्यों नहीं हटा रहे हैं कि जब आपकी पहली पत्नी है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, वह भी उसकी सहमति के बिना तो यह स्वीकार्य नहीं है।’