सुप्रीम कोर्ट ने तय किए गाइडलाइंस, उल्लंघन पर अवमानना की कार्रवाई
New Hindi news : ‘बुलडोजर जस्टिस’ पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना बुलडोजर चला दिया। आरोपियों और यहां तक कि दोषियों के खिलाफ भी बुलडोजर ऐक्शन को शीर्ष अदालत ने गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया है। अवैध निर्माण को गिराने को लेकर कोर्ट ने गाइडलाइंस तय कर दिए हैं। उनका उल्लंघन होने पर अफसरों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि घर सपना होता है और सपने नहीं तोड़ने चाहिए। आवास का अधिकार मूल अधिकार का हिस्सा है। अगर घर गिराया जाता है, तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखिरी रास्ता था। अफसर खुद जज नहीं बन सकते।
घर गिराने की कार्रवाई की वीडियोग्राफी जरूरी
अदालत ने कहा कि अगर घर गिराने का फैसला ले लिया गया है, तो 15 दिन का समय दिया जाए। घर गिराने की कार्रवाई की वीडियोग्राफी जरूरी है। अगर कोई अफसर गाइडलाइन का उल्लंघन करता है, तो वो अपने खर्च पर दोबारा प्रॉपर्टी का निर्माण कराएगा और मुआवजा भी देगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगातार बुलडोजर कार्रवाई के बाद जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। आरोप लगाया था कि भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि कोर्ट अपने फैसले से हमारे हाथ ना बांधे। किसी की भी प्रॉपर्टी इसलिए नहीं गिराई गई है, क्योंकि उसने अपराध किया है। आरोपी के अवैध अतिक्रमण पर कानून के तहत कार्रवाई की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के 4 फाइनल कमेंट
1. जस्टिस बीआर गवई बोले, “एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए। हर एक का सपना होता है कि सिर पर छत हो। क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो? आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है?”
2. “अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, ऐसे में उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह असंवैधानिक है। अधिकारी यह तय नहीं कर सकते हैं कि कौन दोषी है, वे खुद जज नहीं बन सकते हैं कि कोई दोषी है या नहीं। यह सीमाओं को पार करना हुआ।”
3. “अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति का घर इसलिए गिराता है कि वो आरोपी है, यह गलत है। अधिकारी कानून अपने हाथ में लेता है तो एक्शन लिया जाना चाहिए। मनमाना और एकतरफा एक्शन नहीं ले सकते। अफसर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक सिस्टम हो। अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता है।”
4. जस्टिस गवई ने कहा, “एक घर सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने का मसला है। ये सिर्फ एक घर नहीं होता है, यह बरसों का संघर्ष है, यह सम्मान की भावना देता है। अगर घर गिराया जाता है, तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखिरी रास्ता था। जब तक कोई दोषी करार नहीं दिया जाता है, तब तक वो निर्दोष है। ऐसे में उसका घर गिराना उसके पूरे परिवार को दंडित करना हुआ।”
शीर्ष अदालत की गाइडलाइंस
मालिक को एडवांस नोटिस दिए बिना कोई इमारत नहीं गिराई जाएगी। नोटिस इमारत पर सही जगह चिपकाना होगा।
शो कॉज नोटिस 15 दिन पहले देना होगा। इसमें इमारत गिराने की वजह और इस पर सुनवाई की तारीख जरूर देनी होगी।
तीन महीने में डिजिटल पोर्टल बनाएं, जहां ऐसे नोटिस का ब्यौरा और इमारत पर चिपकाए जाने की तारीख बताई जाए।
नोटिस जारी किए जाने के तुरंत बाद एक ऑटो जेनरेटेड ई मेल कलेक्टर को भेजा जाए, ताकि बैक डेटिंग को रोका जा सके।
कहां लागू नहीं होगा निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पब्लिक प्लेस के संबंध में अदालत के निर्देश लागू नहीं होंगे। बेंच ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है। इसके साथ ही कोर्ट का आदेश उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां किसी अन्य कोर्ट ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।