New Delhi news : रावण के पुतले को दशमी के दिन हम बुराई का प्रतीक मान कर जलते हैं, फिर भी उसके गुण ग्रहण करने योग्य हैं। सामान्य रूप से रावण के बारे में कहा जाता है कि वो एक ब्राह्मण था, शास्त्रों का ज्ञाता था। भगवान शिव का महान भक्त था और संसार का एक ब़डा तपस्वी और वेदों का ज्ञाता था। ये भी कहा जाता है कि श्रीराम को ब्राह्मण रावण का वध करने की वजह से ब्रह्महत्या का पाप भी लगा था।
राम कथाओं में ब्राह्मण नहीं है रावण
अगर हम प्रामाणिक राम कथाओं को ठीक से पढ़ें तो कहीं भी किसी भी प्रामाणिक राम कथा में रावण के लिए कहीं भी ब्राह्मण उपाधि का प्रयोग नहीं मिलता है। यहां तक कि सबसे प्राचीन राम कथा यानि वाल्मीकि रामायण में भी रावण के लिए एक बार भी ब्राह्मण वर्ण की उपाधि का इस्तेमाल नहीं किया गया है। अगर महाभारत के वन पर्व में दी गई रामकथा जिसे रामोपाख्यान कहते हैं , उसका भी अध्ययन करें तो वहां भी रावण के लिए सिर्फ निशाचर या राक्षस उपाधियों का प्रयोग किया गया है।
ऋषि विश्रवा का पुत्र था रावण
यहां तक कि आज से 600 साल पहले जब तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की तो उन्होंने भी इस बात का ध्यान रखा कि वो कहीं भी किसी भी दोहे में रावण के लिए ब्राह्मण उपाधि का प्रयोग नहीं करें। आज जब हम सभी किसी भी विद्वान से ये पूछते हैं कि रावण का वर्ण या जाति क्या थी तो उनके पास सिर्फ एक दो तर्क ही हैं जिसके आधार पर वो रावण को ब्राह्मण सिद्ध करते हैं। पहला तर्क ये है कि वो ऋषि विश्रवा का पुत्र था और ऋषि विश्रवा ब्रह्मा जी के पौत्र थे इसलिए रावण भी ब्राह्मण ही था।
हनुमान जी ने क्या कहा था रावण के बारे में
दूसरा तर्क वो रामचरितमानस के इस दोहे से देते हैं जहां हनुमान जी रावण को समझाते हुए कहते हैं कि ऋषि पुलस्ति जसु विमल मयंका. तेहि ससि महुं जनि होहु कलंका।
अर्थात हे रावण तुम ऋषि पुलस्त्य के चंद्रमा के समान विमल यश को कलंकित मत करो। लेकिन, इस दोहे में भी कहीं भी ऋषि पुलस्त्य को ब्राह्मण नहीं कहा गया है और न ही रावण के लिए ब्राह्मण उपाधि का इस्तेमाल मिलता है।