Patna news : आधुनिक हिंदी साहित्य में बिहार के साहित्य साधकों में शिवपूजन सहाय का नाम बड़ी इज्जत और गर्व के साथ लिया जाता है। वह जितने बड़े साहित्यकार थे, उतने ही बड़े इंसान भी। काम के प्रति लगन ऐसी कि कोई भी उनके सामने नतमस्तक हो जाए। आजादी के बाद जब बिहार में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का गठन हुआ, तो उसका पहला निदेशक उन्हें बनाया गया और तमाम विषम परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने परिषद को शीर्ष पर पहुंचा दिया। सहाय का जन्म बिहार के शाहाबाद जिले के उनवांस गांव में हुआ था। आर के एक स्कूल से सिर्फ उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी। उन्होंने उन्होंने अपनी निष्काम सेवा से हिंदी साहित्य के गौरव बहल को और ऊंचा उठाया।
1960 में मिला पद्म भूषण सम्मान
सहाय को जानना है तो आप ‘देहाती दुनियां‘, ‘मतवाला माधुरी’, ‘गंगा’, ‘जागरण’, ‘हिमालय’, ‘वही दिन वही लोग’, ‘मेरा जीवन’, ‘स्मृति शेश’ तथा ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ पढ़ सकते हैं। आचार्य शिवपूजन सहाय को काजी नज़रुल इस्लाम के साथ 1960 में पद्मभूषण से सम्मानित किया,पर आर्थिक अभाव में वह उसे लेने दिल्ली भी नहीं आ सके। उन्हें 1962 में जेपी, रामधारी सिंह दिनकर और राहुल सांकृत्यायन के साथ मानद डीलिट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।
1950 में हुई थी परिषद की स्थापना
बता दें कि भारतीय स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद की राज्य सरकार ने बिहार विधान सभा द्वारा सन् 1948 ई. में स्वीकृत एक संकल्प के परिणामस्वरूप बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् की स्थापना की थी। राष्ट्रभाषा हिंदी की सर्वांगीण समृद्धि की सिद्धि के उद्देश्य से 1950 के जुलाई में इसने कार्य शुरू किया। इसका औपचारिक रूप से उद्घाटन 11 मार्च 1951 ई. को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल, महामहिम माधव श्रीहरि अणे ने किया था। इसके बाद ही इसका पहले निदेशक शिवपूजन सहाय बनाए गए थे।
परिषद के लिए खुद को खपा दिया
इस साहित्य संस्था का मुख्य उद्देश्य हिंदी के अभावों की पूर्ति करनेवाले ग्रंथों का प्रकाशन, प्राचीन पांडुलिपियों का शोध और अनुशीलन, लोकसाहित्य का संग्रह और प्रकाशन, लोकभाषा विशेषज्ञों की भाषणमाला का आयोजन, पुरस्कार प्रदान कर साहित्यिकों को सम्मानित और प्रोत्साहित करना, महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिए साहित्यिक संस्थाओं को अनुदान, देश-विदेश की प्रमुख भाषाओं के प्रामाणिक ग्रंथों के हिंदी अनुवाद द्वारा राष्ट्रभाषा साहित्य को संमृद्ध करना था।
इन सभी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निर्देशक के रूप में शिवपूजन सहाय ने अपना पूरा जीवन खपा दिया लेकिन परिषद को चमचमाता संस्थान बना दिया।