New Delhi news : भारत की कृषि अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है, जिसमें बढ़ता कर्ज, घटती आय और जलवायु संकट की चुनौतियां शामिल हैं। पंजाब-हरियाणा सीमा पर फरवरी से आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने इन समस्याओं पर गंभीर ध्यान देने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता देने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) नवाब सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों की चुनौतियों को उभरता हुआ सामाजिक- आर्थिक संकट करार दिया गया। यह रिपोर्ट न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ को सौंपी गई।
पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने अदालत को बताया कि किसानों को शुरू में समिति की ओर से बड़े बदलावों को लागू करने की क्षमता पर संदेह था। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों के संगठनों में से एक, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) 4 नवंबर को समिति की कार्यवाही में शामिल हुआ, जबकि राज्य सरकार ने किसानों को अदालत द्वारा नियुक्त पैनल की सहायता करने के लिए मनाने के सभी प्रयास किए।
हालांकि, केंद्र और हरियाणा सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आग्रह किया कि किसान और उनके संगठन अपनी चिंताओं को सीधे अदालत के सामने रखें, साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य सरकार (पंजाब या हरियाणा) के लिए किसानों की ओर से बोलना उचित नहीं है। पीठ ने सभी हितधारकों को रिपोर्ट की समीक्षा करने और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
समिति की रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण भारत में औसत दैनिक कृषि आय मात्र 27 रुपए है। बढ़ते कर्ज और घटती कृषि लाभप्रदता ने किसानों और कृषि मजदूरों को गहरे संकट में डाल दिया है। रिपोर्ट में 1995 से अब तक चार लाख से अधिक किसान आत्महत्याओं का उल्लेख किया गया, जिनके पीछे मुख्य कारण कर्जदारी और घटते लाभ हैं।
हरित क्रांति से आई समृद्धि ने जहां शुरुआत में कृषि उत्पादन बढ़ाया, वहीं लंबे समय में यह स्थिर उपज, अस्थिर फसल पैटर्न और पर्यावरणीय क्षति का कारण बन गई। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में क्रमशः 73,673 करोड़ रुपए और 76,630 करोड़ रुपए का संस्थागत कर्ज है, जबकि गैर-संस्थागत कर्ज ने इस बोझ को और बढ़ा दिया है।