सोनल थेपड़ा/राजीव थेपड़ा
“ना मोहब्बत ना दोस्ती के लिए
वक्त रुकता नहीं किसी के लिए”
कोई शायर यह जो बात कह कर गया है, इसमें जीवन का 100 टका सच दिखाई देता है कि जीवन को हर दिन गुजारते हुए जितने भी लोगों से हम मिलते हैं, उनमें से बहुत सारे लोगों द्वारा हमें संताप भी मिलता है।…तो बहुत सारे लोगों द्वारा हमें ऊर्जा भी मिलती है। प्यार भी मिलता है और न जाने क्या-क्या कुछ मिलता है और इसी प्रकार तरह-तरह के लोगों से हमें तरह-तरह की बातें, तरह-तरह का साथ और तरह-तरह के व्यवहार सीखने को मिलते हैं। इसी प्रकार किसी से धन भी मिलता है। किसी से मन भी मिलता है। किसी से तन भी मिलता है। तो किसी से उसका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समय भी मिलता है और किसी से सीख मिलती है।
…तो, यह जो जीवन है ना ? यह इसी प्रकार हमारे किसी न किसी द्वारा कुछ न कुछ लेने और इसी प्रकार अपने द्वारा किसी न किसी को कुछ ना कुछ देने का नाम है। इससे कोई भी अलग नहीं हो सकता। यानी इसका कोई अपवाद नहीं हो सकता। एक भिक्षुक भी कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, किसी न किसी को, कुछ ना कुछ देता ही है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह देना-लेना तो एक प्रक्रिया है और बिना इसके जीवन गुजर भी नहीं सकता और बिना इसके साथ भी नहीं निभाये जा सकते।…तो फिर, हमें इनमें से किन चीजों को ग्रहण करके अपने पास रख लेना चाहिए और किन चीजों को भूल जाना चाहिए? इसी में हमारे जीवन की महत्ता और हमारे जीवन का सारतत्त्व छिपा हुआ है और जब हम इसे पहचान लेते हैं, यानी हमें क्या अपने पास रखना है और क्या छोड़ देना है, इस बात को हम जब जान लेते हैं, तब हमारा जीवन एक सतत ऊर्जा का प्रवाह हो जाता है और दुर्भाग्य यह है कि हम सब में से अधिकतम लोग इस बात को जानना तो दूर, उन्हें अपने द्वारा गुजारे जा रहे जीवन तक की कोई सुधि नहीं रहती कि वह क्या कर रहे हैं…क्यों कर रहे हैं और इसका परिणाम उनके लिए और बाकी लोगों के लिए क्या होने को है?
इस प्रकार जीवन तो सबका गुजरता है, लेकिन यह जो जीवन गुजरता है, वह हमारे लिए कहीं ना कहीं अभिशाप के समान होता है और इस प्रकार अपने-अपने जीवन में घटती घटनाओं को एक अभिशाप के रूप में देखते हुए और लोगों से उसकी चर्चा करते हुए हम अपने उस अभिशाप को और बढ़ाते चले जाते हैं और इस प्रकार हमारा यह जीवन हर दिन व्यर्थ बीतता चला जाता है। हर दिन रीतता चला जाता है और कहने को तो हम जीवन जीते हैं, किन्तु वह जीवन जीवन कतई नहीं होता। एक सम्पूर्ण जीवन का व्यर्थ गुजर जाना समूची मानवता के लिए एक बहुत बड़ा दुख स्वप्न है।
…तो जीवन को संवारने के लिए जो कर्म हमें करने हैं, उनकी नैतिक शिक्षा तो हमारे परिवार द्वारा, हमारे समाज द्वारा हमें दी ही जाती है। किन्तु एक महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसके चलते भी हम अपने जीवन को अपने लिए एक अभिशाप-सा बनाये रखते हैं, वे हैं हमारी यादें ! लोगों के साथ हमारे सम्बन्धों के अनुसार उनसे जो चीजें हमें प्राप्त होती हैं या नहीं होती हैं, उसके आधार पर हम अपने समूचे भविष्य में जिस प्रकार अतीत की उन संताप भरी बातों को याद करते हुए अपने वर्तमान को भी दुख स्वप्न की भांति बनाते चले जाते हैं, यह भी हमारे लिए सबसे बड़ा अभिशाप है और इसके निदान स्वरूप केवल और केवल यही कहा जा सकता है कि हम अपने जीवन में घटित वैसी किसी भी बात से एक सीख लेते हुए उन्हें दोबारा न करने की चेष्टा करें और जो हमारे साथ हुआ है, उसे किसी भी मूल्य पर भूल जायें और जिन्हें हमने क्षमा नहीं की है, उन्हें किसी भी मूल्य पर क्षमा करके बिलकुल हल्के हो जायें!
…और अपने वर्तमान को सदैव इसी प्रकार हल्का बनाये रखें और इसका एक तरीका यह भी है कि हम अपने जीवन की उन तमाम मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी बातों को याद करें और तदनुसार ही आचरण करें और खट्टी-खट्टी यादों के कारणों को भी भूल जायें। उन यादों को भी भूल जायें और यदि सम्भव हो, तो उन्हें अपने लिए केवल एक सबक के रूप में याद रखें ना कि सदैव उन यादों की पीड़ा से भरे रहें!
क्योंकि, हमारे भीतर कोई भी विकार, चाहे वह गुस्से का हो, चाहे वह हिंसा का हो, चाहे वह पीड़ा का हो, चाहे वह तनाव का हो, वह विकार अंततः हमें ही घायल करता है। हमें ही अस्वस्थ बनाता है। इसलिए, यदि हमें अपने आप को स्वस्थ बनाये रखना है और एक मूल्यवान जीवन जीना है, तो इसके लिए हमें स्वयं को स्वयं के लिए प्रयास करने होंगे और निश्चित तौर पर अपने को अच्छा बनाने के हमारे ये प्रयास अंतत: हमारे समाज को भी एक अच्छा समाज बनायेंगे और एक समाज के समस्त लोगों के बीच एक बेहतरीन तारतम्य बनाने में सफल होंगे ! …तो कितनी ही तरह की प्यारी-प्यारी यादें जीवन में एक ऐसी निमित्त बन जाती हैं, जिनसे हम बार-बार खुश होते हैं। उन दिनों को याद करते हुए उन दिनों को ही जीने लगते हैं और यह जीवन निश्चित तौर पर हमारे वर्तमान से बहुत प्यारा होता है, क्योंकि जिया जाता जीवन लगातार संघर्ष से भरा होता है और जिया जा चुका जीवन संघर्ष से रहित होता है, उसमें मनमाफिक चीजें मिल जाती हैं, खुशियों भरी यादगारें भी और यदि कोई उससे उलट यादगार है, तो वह भी ।
यह हमारा चुनाव है कि हम उसमें से क्या चुनते हैं। समय-समय पर हर तरह का चुनाव काम आता है। कभी कोई संघर्ष वाली याद हमें फिर से एक नयी जिजीविषा प्रदान करती है। हमारे द्वारा की गयीं गलतियों और दूसरों द्वारा की गयीं गलतियों को बताती हैं।…तो, कहीं खुशियों भरी यादें हमारे वर्तमान जीवन को उन्हें खुशियों से परिपूर्ण कर देती हैं और यही यादों का महत्त्व है।
इसलिए अच्छी हो या बुरी यादें, सब सम्भाल कर रखनी चाहिए और उन यादों को अपने जीवन के भविष्य का भी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए, क्योंकि जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि यादें किस प्रकार हमारे काम की होती हैं। जैसे कि दुनिया में कुछ भी व्यर्थ नहीं है, ना बुराई और अच्छाई, तो खैर वैसे भी व्यर्थ नहीं है। लेकिन, अगर सिर्फ अच्छाई ही रहेगी, तो भी उसका कोई महत्त्व नहीं बचेगा।
बहुत सारी बुराइयों के बीच अच्छाइयों का महत्त्व है और जितनी ज्यादा बुराई फैली हुई है, उतना ज्यादा अच्छाई का महत्त्व बढ़ जाता है और बुरी यादें भी एक सीख हैं और अच्छी यादें खुशियां प्रदान करनेवाली वरदान समान हैं।
यादें ! मीठी यादें ! यादें ! यादें ! यादें ! यादें ! रुलाती यादें ! हंसाती यादें ! जीवन में उमंग भरती यादें ! इन यादों को याद कीजिए ! अपने जीवन से आप बार-बार फिर से बात कीजिए और उसे आबाद कीजिए !!
ग़ाफ़िल ग़ाफ़िल !!