Motihari news : अनंत चतुर्दशी का पुण्य पवित्र पर्व 17 सितंबर (मंगलवार) को मनाया जाएगा। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसमें मध्याह्न व्यापिनी चतुर्दशी तिथि ग्रहण की जाती है और व्रत का पूजन भी मध्याह्न काल में ही किया जाता है। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने दी।
कलश की करें स्थापना
उन्होंने बताया कि व्रती को चाहिए कि इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को स्वच्छ और सुशोभित कर कलश की स्थापना करें और उसमें कुशा से बनाई हुई अनन्त भगवान की मूर्ति स्थापित करें। उसके आगे कुमकुम, केसर व हल्दी से सुशोभित चौदह गाठों वाला अनंत भी रखें। कुश निर्मित अनन्त भगवान की वंदना करके उसमें भगवान विष्णु का आवाहन एवं ध्यान करके उपलब्ध सामग्रियों से पूजन कर कथा का श्रवण करें और ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ दक्षिणा भी दें। इसके बाद शुद्ध अनन्त को स्त्रियां अपनी बायीं भुजा और पुरुष अपनी दाहिनी भुजा पर बांधे।
माना गया है अनंत फलदायक
प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि व्रत के नाम से ही लक्षित होता है कि यह दिन अंत न होने वाले सृष्टिकर्ता निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है। इस दिन भक्तगण लौकिक कार्य कलापों से मन को हटाकर ईश्वर भक्ति में अनुरक्त हो जाते हैं। इस दिन वेदग्रंथों का पाठ करके भक्ति की स्मृति का डोरा बांधा जाता है। अनन्त की चौदह गाठें चौदह लोकों की प्रतीक है। उनमें भगवान अनन्त विद्यमान रहते हैं। यह डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनन्त फलदायक माना गया है। यह व्रत धन, ऐश्वर्य व पुत्र-पौत्रादि की कामना से किया जाता है।