Dharm adhyatm : हर साल नए साल के पहले महीने यानी जनवरी की 14 तारीख को सामान्य रूप से मकर संक्रांति का पर्व आता है। इसके ठीक 1 दिन पहले 13 जनवरी को उत्तर भारत के कई राज्यों में खुशी और उत्साह का पर्व लोहड़ी का जश्न देखते ही बनता है। मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में इसे बड़ ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने का यह तरीका होता है कि रात के समय लकड़ियां जलाकर अग्नि देव की पूजा करें। इसके बाद इस आग के 7 या 11 बार परिक्रमा करें। इस अग्नि में गजक, रेवड़ी और और मक्का के दाने अर्पित करें. आखिर में में लोहड़ी का प्रसाद सभी में बांटें।
आग जलाकर उसके चारों ओर नृत्य, गीत और संगीत का समां
हर साल 13 जनवरी को रात के समय में यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। आग जलाकर उसके चारों ओर नृत्य गीत और संगीत का समा गजब का होता है। लोग आग में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक डालते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं। इस दौरान तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं। ये त्योहार पंजाब में फसल काटने के दौरान मनाया जाता है। इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है।
इस पर्व की परंपरागत शुरुआत और महत्व
माना जाता है कि अकबर के शासन के वक्त पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स रहता था। यह वो समय था जब कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे। तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। दुल्ला भट्टी अकबर की नजर में तो एक डकैत था, लेकिन गरीबों के लिए वो किसी मसीहा से कम नहीं था। तभी से दुल्ला भट्टी को एक नायक के रूप में देखा जाता है और हर साल लोहड़ी पर उसकी कहानी सुनाई जाती है।