राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद का तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन सम्पन्न
New Delhi news : राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) का इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘विकसित भारत का विजन, उर्दू भाषा मिशन’ शीर्षक के तहत आयोजित तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन रविवार को संपन्न हो गया। समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रो. गजनफर ने अपने भाषण में कहा कि यह सम्मेलन हर दृष्टि से बहुत सफल रहा और उद्घाटन कार्यक्रम से लेकर अंतिम सत्र तक उर्दू भाषा के सर्वांगीण विकास के संबंध में बहुत मूल्यवान बातें सामने आईं। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि इस सम्मेलन की विभिन्न बैठकों में देश-विदेश के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों ने उर्दू शिक्षा में सुधार, उर्दू लिपि के संरक्षण और समग्र विकास के लिए जो कहा है, उस पर हम व्यावहारिक कदम उठाएं।
उन्होंने कहा कि दैनिक तकनीकी सत्रों के साथ-साथ नृत्य और संगीत, मुशायरा और महफिल-ए-कव्वाली का आयोजन भी इस सम्मेलन की एक विशिष्ट विशेषता रही जो उर्दू भाषा के उज्ज्वल और गौरवपूर्ण सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर करती है। प्रोफेसर गजनफर ने उर्दू की तुलना गुलाब से की और कहा कि यह भाषा भारत की सांस्कृतिक विविधता को खूबसूरती से दर्शाती है।
परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू भाषा के ऐतिहासिक चरणों को देखने से पता चलता है कि उर्दू एक लचीली और स्वीकार्य भाषा है, इसने हमेशा राष्ट्रीय सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरतों को ध्यान में रखा है और वैज्ञानिक सोच को स्वीकार करने में संकोच नहीं किया है। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू को नए रुझानों के अनुरूप ढलना होगा और हमारे बुद्धिजीवियों को राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार रहना होगा। शम्स इकबाल ने कहा कि हमें अपनी भाषा को लेकर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है, उर्दू का वर्तमान भी सुखद है और भविष्य भी संभावनाओं से भरा है।
डॉ. इकबाल ने कहा कि वर्तमान समय में भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का उर्दू में अनुवाद करना और उर्दू के अच्छे साहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद करना आवश्यक है ताकि भारतीय भाषाओं के बीच की दूरी को कम किया जा सके।
अंत में डॉ. शम्स इकबाल ने सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अतिथियों, अपने सहयोगियों, शिक्षा मंत्रालय, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन के आयोजन में हर कदम पर सरकार के पूर्ण समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
इससे पूर्व सुबह दस बजे सम्मेलन का पांचवां तकनीकी सत्र ‘उर्दू कार्यों में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मूल्यों का प्रतिबिंब’ शीर्षक के तहत आयोजित किया गया, जिसमें प्रो. मोहम्मद जमां आजुरदा और प्रो. आफताब अहमद आफाकी ने शोधपत्र पढ़ा। चर्चा में भाग लेने वालों में प्रो. मुश्ताक आलम कादरी, डॉ. अब्दुल्लाह इम्तियाज अहमद, डॉ. सूरज देव सिंह, डॉ. नाजिया बेगम जाफो खान और डॉ. बाल्मीकि राम थे जबकि सत्र की अध्यक्षता प्रो. एजाज अली अरशद और प्रो .मुजफ़्फर अली शहमीरी ने की।
इस बैठक के भाषणों और पत्रों में उर्दू साहित्य की विशेषता पर प्रकाश डाला गया कि इसमें न केवल भारतीय भाषाओं के शब्दों और मनोदशाओं का मिश्रण है, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतिबिंब भी इसी भाषा में सबसे अधिक है। इस सत्र का संचालन डॉ. साकिब फरीदी ने किया।
छठा तकनीकी सत्र ‘उर्दू के प्रचार और प्रकाशन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग’ शीर्षक के तहत आयोजित किया गया। प्रो. रहमत यूसुफजई और डॉ. परवेज अहमद इसमें अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। डॉ. शमीम अहमद और अहमद अशफाक ने चर्चा में भाग लिया। सत्र की अध्यक्षता प्रो. एजाज अहमद शेख और प्रो. मोहम्मद जहांगीर वारसी ने की। इस सत्र के प्रतिभागियों ने मशीनी अनुवाद और एआई के विभिन्न प्लेटफार्मों की समीक्षा की और उर्दू को आधुनिक तकनीक के अनुकूल बनाने पर जोर दिया। इस सत्र का संचालन डॉ. अब्दुल हई ने किया।
सातवें और अंतिम सत्र का शीर्षक ‘प्रवासी भारतीयों के बीच निर्बाध संचार को मजबूत करना’ था, जिसमें डॉ. साकिब हारुनी और डॉ. नीलोफर खोजैवा ने शोधपत्र प्रस्तुत किए, जबकि पैनलिस्ट डॉ. कासिम खुर्शीद, डॉ. सिराजुद्दीन नूर मतूफ और डॉ. अहसन अय्यूबी थे। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. हसनैन अखतर और डॉ. मोहैया अब्दुल रहमान ने की। इस सत्र के संचालन का दायित्व नायाब हसन ने निभाया। इसके बाद शाम छह बजे इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ‘शाम-ए-सूफियाना’ का आयोजन किया गया, जिसमें निजामी बंधुओं ने अपनी कव्वाली से श्रोताओं को आनंदित किया। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम से परिचय कराने का दायित्व निहां रुबाब और फैजानुल हक ने निभाया।