Dharm adhyatm, Vivah panchmi : भारतीय संस्कृति में भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और माता सीता भारतीय नारी जीवन के आदर्श का प्रतिनिधित्व करती हैं। राम और सीता के विवाह के पर्व को विवाह पंचमी कहा जाता है जो इस साल 8 दिसंबर को पड़ रहा है। मान्यता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस का लेखन भी पूरा किया था।
आदर्श पुरुष और महान पत्नी
श्रीराम एक आदर्श पुरुष माने जाते हैं तो सीता उनकी संगिनी के रूप में महान पत्नी। इनका वैवाहिक जीवन कुछ खास बातों से महान माना जाता है। इनके वैवाहिक जीवन में श्रीराम ने माता सीता पर भरोसा और उनसे नि:स्वार्थ प्रेम किया वहीं माता जानकी ने त्याग और ईमानदारी के साथ हमेशा श्रीराम का साथ दिया। भारतीय समाज में यह संदेश दिया गया है कि हमें भी अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए भगवान राम और मां सीता के जीवन से सीख लेनी चाहिए।
पति संग झेली वनवास की पीड़ा
याद कीजिए, वनवास के समय माता सीता ने भी राम के साथ चलने का निर्णय किया। भगवान राम ने माता सीता से महल पर रहने का आग्रह किया, परंतु माता सीता ने भगवान राम के साथ वनवास पर जाने का निर्णय लिया। भगवान राम और माता के वैवाहिक जीवन से हमें सीखना चाहिए कि पति-पत्नी को हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ निभाना चाहिए। सीता ने महल का त्याग कर भगवान राम के साथ वन में रहने का निर्णय किया था। अगर आप भी चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन मजबूत बने तो एक-दूसरे के लिए त्याग करना सीखें।
ईमानदारी से रिश्ता निभाने की भावना
हर एक रिश्ता निभाने के प्रति ईमानदारी की भावना महत्वपूर्ण होती है। माता सीता और भगवान राम के वैवाहिक जीवन से हमें सीखना चाहिए कि एक- दूसरे के प्रति ईमानदार कैसे रहा जाए। अगर आप रिलेशनशिपको मजबूत बनाना चाहते हैं तो एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहें। यही शिक्षा राम और सीता के जीवन से हमें मिलती है।