Diligence never goes in Vain, Success Speaks Gently : कामयाबी को दो तरह से जाना जा सकता है। एक जिसमें कामयाब होने वाला व्यक्ति आवश्यकता से अधिक शोर मचा कर अपनी ब्रांडिंग करना चाहता है और दूसरा, जिसमें व्यक्ति चुपचाप मेहनत कर मुकाम पर पहुंचता है और जब मुकाम पर पहुंचता है तो उसकी कामयाबी स्वयं शिष्टता पूर्वक सब कुछ सुना देती है। दूसरे प्रकार की कामयाबी की कहानी की मिसाल हैं नैनीताल के राजीव।
बीज कंपनी में काम करते थे राजीव
राजीव भास्कर रायपुर की एक बीज कंपनी में काम करते थे। वहां से जो अनुभव उन्हें हासिल हुआ, उसने उन्हें एक सफल किसान और उद्यमी बनने की ओर आगे बढ़ाया। अहम बात यह है कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं सोचा था। वे लगभग चार वर्षों तक वीएनआर सीड्स कंपनी की सेल्स और मार्केटिंग टीम के हिस्से रहा। इस दौरान उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों के कई किसानों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला। इसी माध्यम से उन्होंने कृषि के दायरे को सीखा और खेती करने के लिए प्रेरित हुए। फिर क्या था वे भी खेती में उतर गए। वे एक फल की खेती से अब सालाना 1 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।
खेती का नहीं था प्लान
राजीव ने कृषि में बीएससी की है। लेकिन, जब तक उन्होंने वीएनआर सीड्स के साथ काम करना शुरू नहीं किया था, तब तक खेती को एक पेशे के रूप में लेने की राजीव की कोई योजना नहीं थी। उन्होंने उस दौरान डिस्टेंस एजुकेशन माध्यम से अपना एमबीए भी पूरा किया। जैसे-जैसे राजीव ने बीजों और पौधों की बिक्री का काम किया, उन्हें कृषि में अधिक दिलचस्पी हो गई। आखिरकार उन्होंने इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला किया।
अमरूद की थाई किस्म
राजीव ने अमरूद की थाई किस्म के बारे में जाना। उन्होंने उन किसानों से भी बातचीत की जिन्होंने उन्हें खेती सिखाई और उनका मार्गदर्शन किया। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए राजीव ने हरियाणा के पंचकुला में लीज पर ली गई पांच एकड़ जमीन पर थाई अमरूद उगाने के लिए 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने इसे ‘अवशेष मुक्त’ (रेसिड्यू फ्री) खेती के नाम से पहचाने जाने वाले मेथड के जरिए किया।
1 करोड़ रुपये की सालाना कमाई
आज 30 साल के कृषि उद्यमी राजीव का बिजनेस 25 एकड़ भूमि तक फैल गया है, जिस पर वह लगभग 12,000 पेड़ उगा रहे हैं। इससे उनकी प्रति एकड़ कमाई सालाना लगभग 6 लाख रुपये है यानी कुल मिला कर 1 करोड़ रुपये।
पौधों की कटाई साल में दो बार
सामान्य रूप से अमरूद के पौधों की कटाई साल में दो बार की जाती है। एक बार बरसात के मौसम में और फिर सर्दियों के दौरान। लेकिन, राजीव अन्य किस्मों और विक्रेताओं से प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए केवल बरसात के मौसम में ही कटाई करते हैं। उसके बाद वे पौधों को आराम करने देते हैं।
14 कृषि श्रमिक करते हैं काम
राजीव अपनी सारी उपज दिल्ली एपीएमसी बाजार में 10 किलो के बक्से में बेचते हैं और एक सप्ताह के भीतर उन्हें भुगतान मिल जाता है। मौसम और क्वालिटी के आधार पर प्रति किलो की दर 40 रुपये से 100 रुपये के बीच होती है। उनके पास लगभग 14 कृषि श्रमिक हैं और वे प्रति एकड़ औसतन 6 लाख रुपये कमाते हैं।