Success In Kolhapuri Chappal Business : पब्लिक की बदलती डिमांड के अनुसार बिजनेस की नई सोच कामयाबी की नई कहानी गढ़ती है। कुछ ऐसे ही है हर्षवर्धन की कहानी। उन्होंने बहुत कम पैसों से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी। अब उनकी सालाना कमाई करोडों में है। वे याद करते हुए कहते हैं कि जब वे यूरोप में पढ़ रहे थे, तो उन्होंने अक्सर पुरुषों को गुलाबी, पीले और नियॉन हरे रंग के जूते पहने देखा। भारत में जूते बनाने वाली कंपनियां काले और भूरे रंग को छोड़कर कुछ भी बनाने से डरती हैं। ये कंपनियां हर महीने लाखों जूते बनाती हैं, लेकिन सभी काले और भूरे रंग के होते हैं। वे इस स्टीरियोटाइप को तोड़ना चाहते थे, जिसमें उन्हें कामयाबी मिली।
इस तरह पाई कामयाबी
नॉटिंघम में अपनी ग्रेजुएशन के दौरान ही हर्षवर्धन को कोल्हापुरी चप्पल से लगाव हो गया था। कॉलेज में एक दिन वे नाइकी के सैंडल के साथ कुर्ता पहने हुए थे। उनका भाई इस बात से बहुत निराश था। इसलिए उन्होंने हर्षवर्धन को अपनी कोल्हापुरी चप्पल दी। उन्होंने पहली बार कोल्हापुरी पहनी थी और उन्हें उनसे प्यार हो गया। हर्षवर्धन ने उन्हें पहनकर डांस किया। तब से वे कोई और फुटवियर नहीं पहनते। वे कोल्हापुरी चप्पल को बर्फ में, क्लबों के अलावा हर जगह पहनते हैं।
12वीं सदी तक जाता है इतिहास
कहा जाता है कि कोल्हापुरी चप्पल की शुरुआत 12वीं या 13वीं शताब्दी के दौरान हुई थी। ये हाथ से बनी चमड़े की चप्पलें होती थीं, जिन्हें वनस्पति रंगों का उपयोग करके रंगा जाता। ये मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में निर्मित होती रही हैं। दुनिया के कोने-कोने में नये-नये जूतों के एक विशाल डायवर्सिफिकेशन के बावजूद कोल्हापुरी चप्पल समय के साथ मार्केट में अपनी खास पहचान रखती हैं।
लॉन्च किया अपना ब्रांड
हर्षवर्धन का टार्गेट इन पारंपरिक चप्पलों का “पश्चिमीकरण” करके और इन्हें एक अच्छी पकड़, कूल लुक और बाइब्रेंट कलर देकर दुनिया भर में पहचान दिलाना था। कोल्हापुरी चप्पलों के लिए उनका लगाव एक वेंचर में बदल गया और उन्होंने 2015 में क्लासिक कोल्हापुरी चप्पलों को दुनिया के सामने लाने के मकसद के साथ चैपर्स लॉन्च किया, जो कि विशेष रूप से पुरुषों के लिए नए डिजाइन में इन चप्पलों को तैयार करती है।
इस तरह किया खास बदलाव
द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक दिन जब हर्षवर्धन अपने दोस्तों के साथ बाहर थे, तो उन्होंने चमड़े की जैकेट और कोल्हापुरी पहन रखी थी। तब उन्हें एक आइडिया आया। दोनों में (जैकेट और कोल्हापुरी) एक ही चीज थी – लेदर। लेकिन लेदर की जैकेट मुलायम होती हैं, जबकि कोल्हापुरी सख्त होती हैं। इसलिए कई लोग इन्हें पहनना पसंद नहीं करते। तब उन्होंने सोचा कि क्या कोल्हापुरियों को मुलायम चमड़े से बनाया जा सकता है। यही आइडिया उनके लिए बहुत बेहतर साबित हुआ।
सालाना कमाई 3 करोड़ रु
5,000 रुपये के निवेश से हर्षवर्धन ने चैपर्स को लॉन्च किया था। आज उनकी कंपनी का रेवेन्यू 3 करोड़ रुपए है। वह कहते हैं कि ‘मुनाफा बढ़ने के साथ ही उन्होंने भी ग्रोथ हासिल की। अभी तक, चैपर्स के पुणे शहर में चार मॉल में रिटेल स्टोर हैं, और हर्षवर्धन का लक्ष्य देश भर में फैले 350 मॉल में स्टोर का खोलना है। हर्षवर्धन ने चैपर्स को एक वैश्विक ब्रांड बनाने का भी सोचा है।