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अच्छाई-बुराई के बीच भांति-भांति के लोग और हम!

अच्छाई-बुराई के बीच भांति-भांति के लोग और हम!

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राजीव थेपड़ा 

इस संसार में जीते हुए लगातार हम तरह-तरह के संघर्षों का सामना करते हैं। समस्याओं का सामना करते हैं और ऐसे लोगों का सामना करते हैं, जिनसे हमें बहुत प्रताड़ना मिलती है और इसके चलते हम यह समझने लगते हैं कि दुनिया बुरी ही बुरी है, किन्तु मैं समझता हूं कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। क्योंकि, यदि ऐसा होता, तो चारों तरफ दु:ख ही दु:ख दिखाई देता ! लेकिन हम देखते हैं कि ऐसा भी नहीं है, लोग हंसते हैं, खेलते हैं, गाते हैं, बतियाते हैं, नाचते हैं, झूमते हैं। लोगों के साथ मिल कर रहते हैं। इस प्रकार यह जीवन संसार खुशियों भरा संसार बना रहता है। यद्यपि, लोग आते हैं, जाते हैं। लोग दु:ख तकलीफ पाते हैं ! कुछ लोग दूसरों को अपने स्वार्थ के कारण दु:ख देते हैं ! लोग छीना-झपटी करते हैं ! लोग प्रतिस्पर्धा करते हैं!  उसके बावजूद यह संसार सुखपूर्वक रहता है। हालांकि, बीच-बीच में संताप भी भरा रहता है और बहुत सारे दु:ख तो ऐसा लगता है कि अकारण आते हैं और हमारी जिन्दगी को एकदम लील जाते हैं ! ऐसे में हमें ऐसा लगने लगता है कि जीवन केवल और केवल दु:ख है और यह भी कि ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही क्यों होता है ! लेकिन, यह भी सच है कि कम या ज्यादा, हर किसी के साथ ऐसा होता है। ऐसा होता आया है। ऐसा होता रहेगा। क्योंकि, हम जीवन के कर्मफल के बारे में बिलकुल नहीं जानते और इसकी व्याख्या करने बैठो, तो फिर एक बहुत बड़ा अध्याय हो जायेगा और इसकी अलग-अलग शाखाएं हो जायेंगी। लेकिन, कर्मफल नामक एक चीज है, जिसे हम भाग्य भी कहा करते हैं। उसके चलते भी हमारे जीवन में बहुत तरह के दु:ख संताप होते हैं और ये जो बुरे लोग हमारे जीवन में आते हुए दिखाई पड़ते हैं, वे उन्हीं कर्मफल के कारण होते हैं और यह बिलकुल सच है कि हम जो बोते हैं, वही काटते हैं !…तो, हम जो बोया करते हैं, वही हम इस जीवन में काटते जाते हैं। 

…तो, जिसके साथ अच्छा हो रहा है, यह उसके पुण्य प्रताप का फल है। जिसके साथ बुरा हो रहा है, यह उसके बुरे कर्मों का फल है। किन्तु, अपने द्वारा किये गये बुरे कर्मों के बारे में भला कौन कल्पना कर सकता है या कौन यह सोच सकता है कि हम किसी जन्म में बुरे थे और हमने ऐसे ऐसे बुरे कर्म किये थे, जिसके चलते हमारी यह स्थिति हो रही है!? 

…तो, कुल मिला कर जीवन एक विचित्र तरह का घालमेल बन जाता है और इसके चलते कई बार तो हमारी मानसिक दशा सदा-सदा के लिए भी दुख और संताप से भरी हुई हो जाती है ! हम बहुत सारी जगह पर केवल और केवल दूसरों के साथ तुलना करके अपने दु:ख को और भी ज्यादा बढ़ा लेते हैं और अपने साथ घट रहीं सामान्य घटनाओं को भी अपने दु:ख संताप का कारण बना लेते हैं और ऐसा भी नहीं है कि जिन्हें हम बुरा समझते हैं, वे सदा बुरे ही होते हैं ! 

बहुत बार हमारे खुद के स्वार्थ दूसरों को बुरा बताने में अपना अहंकार तुष्ट होता हुआ देखते हैं ! इसलिए वे अच्छे लोगों को भी बुरा बता देते हैं ! लेकिन, ऐसा बिलकुल नहीं है ! इस संसार में बुरे लोग हमेशा अत्यन्त कम रहे हैं, अच्छे लोग ज्यादा रहे हैं ! बुरे लोगों की जनसंख्या इस संसार की कुल जनसंख्या की कुल 10% से भी ज्यादा नहीं होगी। 

लेकिन, क्योंकि बुराई की चर्चा हर तरफ इतनी ज्यादा होती है और संचार के इतने तरह के माध्यम हैं, और एक ही बुराई सैकड़ों, हजारों, लाखों लोगों के मुंह से निकलती हुई लाखों-लाख लोगों के दिलों तक जाती है ! तो इस प्रकार एक घटना हजारों लोगों तक पहुंच जाती है और कुछ सैकड़ा घटनाएं हजारों तरह के माध्यमों से लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच कर ऐसी प्रतीति देने लगती है कि हमारी चारों तरफ जैसे बुराई ही बुराई हो ! हमारी चारों तरफ जैसे बुरे ही बुरे लोग हों ! 

लेकिन, ऐसा ना कभी था और ना कभी होगा ; हमारे चारों तरफ अच्छे लोग भरे पड़े हैं ! दुनिया अच्छे लोगों से अटी पड़ी है ! अच्छे लोग हैं, बहुत सारे लोग हैं, अनगिनत हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसे लोगों को पहचान पाने में हमारी भी नजरें धोखा खा जाती हैं।

मैंने अपने जीवन में ऐसे बहुत सारे लोग पाये हैं। हालांकि, ऐसे लोग भी बहुत सारे मिले हैं, जिन्होंने धोखा दिया है और जीवन एकदम पटरी से उतर गया। किन्तु फिर से जीवन की शुरुआत हुई, तो कुछ नये लोगों ने ही सहारा दिया और मजेदार बात यह कि वह नये लोग बिलकुल अनजान थे। …और, एक रोचक, किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि धोखा अधिकतर अपने ही लोगों से मिलता है और यह सच भी सबके साथ बराबरी के साथ लागू होता है !! 

पता नहीं, मुझे ऐसा क्यों लगता है कि दुनिया में बुराई से ज्यादा अच्छाई ही है। बल्कि सबसे ज्यादा अच्छाई ही है, जिसके चलते हम सभी यहां मिल कर रह पाते हैं। हालांकि, थोड़ा बहुत स्वार्थ कहां नहीं होता। 

थोड़ा बहुत स्वार्थ है, थोड़ा बहुत अहंकार और थोड़ा बहुत अलग-अलग तरह के विचार। ये हमें दूसरों से अलग कर देते हैं ; यह एक अलग बात है और केवल अपने अहंकार के कारण हम इस पर भी विचार नहीं कर पाते, यह हमारा दुर्भाग्य है।।

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