Health alert, Health tips, memory power, home remedy, how to improve memory power, smaran Shakti kamjor ho rahi hai to apnayen ye tarike : बढ़ती आयु के साथ स्मरण शक्ति का अपक्षय और हृास होने लगता है। जैसे शरीर के अन्य अंग शिथिल होते जाते हैं, वैसे ही स्मरण शक्ति भी प्रभावित होती है। लेकिन, स्मरण शक्ति के कमजोर होने से जो उलझन होती है और परेशानी उठानी पड़ती है, वह बहुत तकलीफ देती है। राह चलते कोई मिलता है, तपाक से दुआ-सलाम करता है, हाल-चाल पूछता है। हम उसके सवालों के जवाब में हां-हूं भ करते रहते हैं। लेकिन, मस्तिष्क इसी उलझन में ग्रस्त रहता है कि यह सज्जन आखिर हैं कौन…!
घंटों मस्तिष्क को उलझाये न रखें
बहुत बार तो हमारी यह दिमागी उलझन हमारे चेहरे पर भी उतर आती है और सामनेवाले को इसका आभास हो जाता है। वह कह बैठता है कि शायद आपने मुझे पहचाना नहीं। बजाय स्वीकार कर लेने के कि, ‘हां भई आपका नाम अभी ध्यान में नहीं आ रहा’ हम अक्सर दुनियादारी निभाते हुए बोल देते हैं कि, ‘अरे नहीं, पहचाना कैसे नहीं, भला आपको नहीं पहचानेंगे।’ खैर, वह तो चला जाता है, लेकिन हमारा मस्तिष्क इसी उलझन में घंटों ग्रस्त रहता है कि आखिर वह था कौन…! कई बार ऐसे मुंहफट लोग भी मिल जाते हैं, जो हमारे यह कहने पर कि, ‘भला आपको कैसे नहीं पहचानेंगे’, सीधे स्पष्ट पूछ ही लेते हैं कि अच्छा तो बताइए कि मैं कौन हूं। तब जो असुविधा और असहजता की स्थिति उत्पन्न होती है, उसे भुक्तभोगी ही जानता है। हमारे एक सयाने अनुभवी वरिष्ठ साथी की सलाह है कि उपरोक्त स्थिति में सीधे स्पष्ट कह देना ही उचित है कि, ‘फिलहाल मैं आपको प्लेस नहीं कर पा रहा हूं।’ बजाय इसके कि घंटों मस्तिष्क को उलझाये रखें।
कभी-कभी यह तरकीब भी काम नहीं करती
प्रख्यात चिन्तक और लेखक नरेन्द्र कोहली ने कुछ और ही तरकीब निकाली है। जब वह किसी मिलनेवाले का नाम याद नहीं कर पाते, तो एक कागज उसके सामने बढ़ा कर कहते हैं कि भाई अपना वर्तमान पता-ठिकाना इस पर लिख दो। लेकिन, कभी-कभी यह तरकीब भी काम नहीं करती। जब वह केवल पता भी लिख देता है, नाम नहीं, तब कोहली साहब को कहना पड़ता है कि भाई नाम भी लिख दो ; वरना मैं भूल जाऊंगा कि यह पता किस का है। तरकीबें तो और भी हो सकती हैं, लेकिन शायद स्पष्ट रूप से यह स्वीकार कर लेना सर्वोत्तम है कि याददाश्त काम नहीं कर रही। आखिर आंखों की रोशनी क्षीण पड़ जाती है या सुनाई कम पडऩे लगता है, तब तो हम किसी प्रकार की शरम महसूस नहीं करते। फिर स्मरण शक्ति के कमजोर हो जाने पर ही बहानेबाजी का सहारा क्यों…?
स्मरण शक्ति का अभाव झेलनेवाले आप अकेले नहीं
हम से ही कई बार हुआ है कि सब्जी लेने सब्जी मण्डी गये। पत्नी ने कुछ बताया था, हम कुछ और ही उठा लाये। इसी प्रकार किराने की दुकान पर तो पहुंच गये, लेकिन वहां याद ही नहीं आया कि लेने क्या आये थे। अचानक ही नयी रचना हेतु कोई विषय सूझा, लेकिन जरा-सी देर में ही वह ध्यान से उतर गया। हमने तो अब इसका सीधा समाधान ढूंढ लिया है। तुरन्त कागज पर नोट कर लो। न स्मरण शक्ति पर जोर देने की जरूरत और न दिमाग को अकारण उलझाने की। हमें याद है कि बुजुर्ग लोग कहा करते थे कि ‘पहले लिख पीछे दे, भूलचूक कागज से ले।’ यद्यपि, संदर्भ दूसरा है, लेकिन लिख लेने की उपयोगिता तो स्पष्ट ही है। स्मरण शक्ति का अभाव और लोप झेलनेवाले आप अकेले नहीं हैं। जनसंख्या का एक बड़ा भाग आपके साथ है। अत: किसी भी संकोच की आवश्यकता नहीं। अपने आप को कोसिये नहीं। ऊपर लिखे टोटके आजमाइए और सबसे बढ़ कर स्मरण शक्ति की लुका-छिपी पर मुस्कुराने की आदत डाल लें।