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नित्य करें प्राणायाम, लेकिन इन बातों का जरूर रखें ध्यान, नहीं तो उठाना पड़ेगा बड़ा नुकसान

नित्य करें प्राणायाम, लेकिन इन बातों का जरूर रखें ध्यान, नहीं तो उठाना पड़ेगा बड़ा नुकसान

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Health Tips : आज के समय में लोगों का झुकाव योग एवं प्राणायाम की ओर काफी बढ़ा है। योग गुरु स्वामी रामदेव ने जन-जन तक योग के महत्त्व को पहुंचा दिया है। जब से लोगों ने योग एवं प्राणायाम के महत्त्व को जाना है, उनमें इनको जानने की एवं समझने की उत्सुकता और भी बढ़ गयी है। यह एक शुभ संकेत है। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता का ही यह परिणाम है। प्राणायाम श्वास-प्रश्वास की एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शरीर को शक्ति प्रदान करती है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना, इन तीनों ही नाड़ियों में ठीक-ठीक संतुलन करके आरोग्य बल, शांति, एकाग्रता और लम्बी आयु प्रदान करना प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य है। इससे आमाशय, लिवर, किडनी, छोटी-बड़ी आंतों और स्नायुमंडल की कार्य-कुशलता बढ़ती है। परिणाम स्वरूप अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं। शरीर की रोग निरोधक शक्ति बढ़ती है और मन का सिमटाव होता है।

प्राणायाम की तीन क्रियाएं

प्राणायाम करते समय श्वास-प्रश्वास सम्बन्धी तीन क्रियाएं की जाती हैं। श्वास अन्दर ग्रहण करने की क्रिया को ‘पूरक’ श्वास और छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ तथा श्वास रोकने की क्रिया को ‘कुम्भक’ कहा जाता है। ‘कुम्भक’ भी दो प्रकार का होता है…अन्तर्कुम्भक तथा बहिर्कुम्भक। अन्दर में श्वास रोकने की क्रिया को अन्तर्कुम्भक और बाहर में श्वास रोकने की क्रिया को बहिर्कुम्भक कहा जाता है।

कब प्राणायाम नहीं करना चाहिए

प्राणायाम की अपनी एक सीमा होती है। कुछ लोग प्राणायाम को सभी रोगों की एक दवा के रूप में बताते हैं, किन्तु यह सत्य नहीं है। उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, चक्कर या मस्तिष्क विकारों में भस्त्रिका, कपालभाति और मूर्छा प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। फेफड़े की बीमारी हो, यक्ष्मा या फेफड़े में छिद्र हो, तो ऐसी स्थिति में नाड़ी-शोधन प्राणायाम नहीं करना चाहिए। बलपूर्वक देर तक कुम्भक करने या इसके साथ खिलवाड़ करने से नाड़ियों, फेफड़ों तथा हृदय को क्षति पहुंच सकती है। शीतकाल में शीतली या शीतकारी प्राणायाम का तथा ग्रीष्मकाल में सूर्यभेदन या भ्रस्रिका प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास से पहले योगासनों का समुचित अभ्यास करके शरीर को लचीला बना लेना चाहिए। सिद्धासन या पद्मासन ही प्राणायाम के लिए उत्तम आसन हैं। इसमें रीढ़ की हड्डी सीधी और विश्राम की स्थिति में रहती है। साथ ही, इसमें कंधों का फैलाव अधिकतम रहने के कारण फेफड़े को प्राणवायु ग्रहण करने में कोई रुकावट नहीं होती है।

कहां प्राणायाम नहीं करना चाहिए

गन्दे, बदबूदार, सीलनयुक्त या बंद कमरे में प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। जहां तेज और सीधी वायु प्रवाहित हो रही हो, वहां भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए। जहां की वायु बहुत अधिक ठंडी हो या बहुत अधिक गर्म हो, वहां भी अभ्यास करना उचित नहीं है। भीड़भाड़ वाली और शोर वाली जगहों से भी बचना चाहिए। हवादार, साफ, सुखद और शांत वातावरण में ही अभ्यास करना उचित है।

यह भी ध्यान रखें

प्राणायाम के प्रारम्भिक दौर में ही अति पर नहीं पहुंच जाना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार धीरे-धीरे फेफड़े के शक्तिशाली हो जाने पर ही अभ्यास की गति और समय बढ़ाना चाहिए। कभी भी अभ्यास के दौरान बलपूर्वक श्वास-प्रश्वास की क्रिया नहीं करनी चाहिए और न ही किसी प्रकार की अनावश्यक आवाज ही उत्पन्न करनी चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रात:काल ही होता है, जब वातावरण शांत और स्वच्छ रहता है।

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