Understand the mood and its prevalence, change your lifestyle and give a new dimension to life like this, Lifestyle, health care, daily life, healh news, healthy life news, health alert, home remedy : सक्रियता, प्रफुल्लता, उत्साह, उमंग, स्फूर्ति उस मन: स्थिति या मूड का परिणाम है, जिसमें वह सामान्य रूप में अच्छा होता है, जबकि बुरी मन: स्थिति में अंतरंग निष्क्रिय, निस्तेज, निराश और निरूत्साह युक्त अवस्था में पड़ा रहता है। कह सकते हैं कि व्यक्ति विनोदपूर्ण स्थिति में दिखाई पड़े, तो वह अच्छे मूड में है, जबकि निराशापूर्ण दशा उसके खराब मूड को दर्शाती है।
अपनी मनोदशा को हमेशा स्वस्थ रखें
✓प्रयत्न करना चाहिए कि हमारी मनोदशा हमेशा स्वस्थ रहे। अगर कभी वह बेपटरी ही भी जाए तो उसे तुरंत पूर्व स्थिति में लाने की कोशिश करनी चाहिए। जिसका मानसिक धरातल जितना लचीला होगा, वह उतनी ही जल्दी अपने इस प्रयास में सफल सिद्ध होगा। लगातार खराब मूड में बने रहने से मन उसी का अभ्यस्त हो जाता है और व्यक्ति मानसिक विकारों का पुराना रोगी बन जाता है।
दशकों पूर्व हमारी जिंदगी अपेक्षाकृत सरल थी
✓ वर्तमान जीवनशैली में जीवन की जटिलताएं इतनी बढ़ गई हैं कि व्यक्ति अधिकांश समय खराब मानसिक अवस्था में बना रहता है। दशकों पूर्व हमारी जिंदगी अपेक्षाकृत सरल थी। तब लोग हंसते-गाते, मिलते-जुलते, खेल और मनोरंजन के साथ सहजता से तनाव रहित उन्मुक्त जीवन गुजार लेते थे, आज की परिस्थितियों में ऐसा नहीं दिखता। दूसरी ओर जटिल जीवन में समस्याएं बढ़ती हैं और उस बढ़ोतरी का असर मन की स्वाभाविकता पर पड़े बिना नहीं रहता।
हमारा जीवन उधेड़बुन में उलझा दिखाई पड़ता है
✓दरअसल इन दिनों मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा इस कदर बढ़ी-चढ़ी है कि वह अधिकाधिक धन-दौलत जुटा लेने, प्रसिद्धि कमा लेने और वाहवाही लूट लेने की ही उधेड़बुन में उलझा दिखाई पड़ता है। जीवन इसके अलावा भी कुछ है, उन्हें नहीं मालूम। बस यही अज्ञानता विकृत मनोदशा का कारण बनती है। यह सच है कि व्यक्ति का रहन-सहन जितना निर्द्वन्द्व व निश्छल होगा, उतनी ही अनुकूल उसकी आंतरिकस्थिति होगी। इसके विपरीत जहां बनावटीपन, दिखावा, झूठी शान, प्रतिस्पर्धा होगी, वहां लोगों की मनोदशा उतनी ही असामान्य होती है। एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि भोले-भाले ग्रामीणों की तुलना में स्वभाव से अधिक चतुर-चालाक और कृत्रिमता अपनाने वाले शहरी लोगों का ‘मूड’ अपेक्षा कृत ज्यादा बुरी दशा में होता है।
…तो शारीरिक- मानसिक क्षति की आशंका बढ़ जाती है
✓ मनोवैज्ञानिकों की सलाह है कि जब कभी मन: स्थिति या मूड खराब हो जाए तो उसे अपने हाल पर अपनी स्वाभाविक मानसिक प्रक्रिया द्वारा ठीक होने के लिए नहीं छोड़ देना चाहिए। इसमें समय ज्यादा लंबा लगता है और शारीरिक- मानसिक क्षति की आशंका बढ़ जाती है। शरीर के विभिन्न तंत्रों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से अनेक प्रकार की असमानताएं सामने आने लगती हैं। इसलिए यथासंभव इससे उबरने का शीघ्र प्रयत्न करना चाहिए। विलंब करना अपने आप को हानि पहुंचाने के समान है।
मित्रों के साथ हंसी मजाक में स्वयं को व्यस्त रखें
✓यदि कभी ‘मूड’ खराब हो जाए तो अकेले पड़े रहने की अपेक्षा मित्रों के साथ हंसी मजाक में स्वयं को व्यस्त रखें पर हां यह सावधानी रखें कि ‘मूड’ को चर्चा का विषय न बनाएं। एक कारगर तरीका भ्रमण भी है। प्रकृति के संपर्क से मन जितनी तीव्र तासे प्रकृतस्थ होता है, उतनी तेजी से अन्य माध्यमों के सहारे नहीं हो सकता। इसलिए ऐसी स्थिति में पार्क, उपवन, बाग, उद्यान जैसा आसपास कोई सुलभ स्थल हो तो वहां जाकर मानसिक दशा को सुधारा जा सकता है। नियमित व्यायाम, खेल एवं किसी भी रचनात्मक कार्यों का सहारा लेकर भी मन की बुरी दशा को घटाया-मिटाया जा सकता है।