Health tips : जल ही जीवन है। सम्पूर्ण जगत जल से भरा हुआ है। इसलिए रोगों में जल का निषेध होने पर भी जल को सर्वथा त्याग नहीं किया जा सकता। जल का महत्त्व इसी से सिद्ध हो जाता है कि तीव्र प्यास लगने पर यदि जल नहीं मिले, तो प्राण व्याकुल हो जाते हैं। एक बार अन्न के बिना व्यक्ति जी सकता है, लेकिन जल के बिना तो जीना ही मुश्किल है। चिकित्सा की दृष्टि से जल बहुत उपयोगी होता है, अतः प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत जल चिकित्सा का उपयोग किया जाता है। पथ्य और अपथ्य की दृष्टि से, जल का उपयोग करने या न करने से सम्बन्धित कुछ जरूरी और उपयोगी सूचनाएं हैं, जो अत्यन्त उपयोगी हैं।
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शीतल जल पान : मूर्छा, पित्त, प्रकोप गर्मी का प्रभाव, जलन, विष-विकार रक्त-विकार, मदात्यय, श्रम तमक, श्वास, उल्टी, उर्ध्व रक्त, पित्त आदि रोगों के रोगी को अन्न का पाचन हो जाने के बाद ठण्डा पानी पिलाना पथ्य है। अत: यह लाभकारी है, जबकि गर्म जल पिलाना अपथ्य अर्थात हानिकारक है।
उष्ण जल पान : पार्श्वशूल, प्रमेह, बवासीर, पाण्डु, जुकाम, वात रोग, अफारा, कब्ज, विरेचन, नवीन ज्वर, गुल्म, मंदाग्नि अरुचि, नेत्र रोग, संग्रहणी कफजन्यरोग, श्वास, खांसी, फोड़ा-फुन्सी और हिचकी इन रोगों के रोगी को गर्म या गर्म करके ठण्डा किया हुआ पानी पिलाना पथ्य है। दिन में सुबह उबाला हुआ पानी रात तक और शाम को उबाला हुआ पानी सुबह होने तक उपयोग में लाना चाहिए।
अल्प जलपान : अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि शोथ, मुंह में खट्टा पानी आना, उदर रोग, तीक्ष्ण नेत्र रोग, नया ज्वर और मधुमेह रोग इस रोगों के रोगी को आवश्यकता होने पर, पानी थोड़ी-थोड़़ी मात्रा में पिलाना चाहिए।
शीतल जल निषेध : त्रिदोष (सन्निपात) से पीड़ित रोगी को ठण्डा जल पिलाना या ठंडे पानी से स्नान कराना भयंकर रूप से हानिकारक ; अर्थात अपथ्य है।
अधिक जल पान : एक समय में एक गिलास से ज्यादा पानी पीने से आमाशय में आंव की वृद्धि होती है, अपच व कब्ज होता है। इससे कई प्रकार की अन्य व्याधियां होती हैं, इसलिए एक ही बार में अधिक जल पीना अपथ्य है।
मधुर जल पान : शक्कर मिला कर पानी पीने से कफ का प्रकोप होता है और वात का शमन होता है। मिश्री युक्त जल दोषनाशक और शुक्रवर्द्धक होता है। गुड मिला जल कफ वर्द्धक, पित्तकारक और मूत्रावरोधनाशक होता है, लेकिन पुराना गुड़ मिला जल पित्तनाशक व पथ्य होता है।
जलपान निषेध : भोजन के तुरन्त बाद, शौच के तुरन्त बाद, धूप में घूम कर आने पर बिना विश्राम किये, व्यायाम या भारी परिश्रम करने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होने पर और भोजन के पहले या प्रारम्भ में जल पीना अपथ्य है।
प्रात: ऊषापान : रात्रि के अन्तिम प्रहर में उठ कर शौच जाने से पहले ठण्डा पानी पीना पथ्य है। लेकिन, शौच के बाद पानी पीना अपथ्य है। कफ प्रकोप के रोगी, बुखार से ग्रस्त और मन्दाग्नि से पीड़ित व्यक्ति के लिए ऊषापान करना अपथ्य है।
जल पीने के कुछ नियम
● शीतल जल देर से और गर्म करके ठण्डा किया हुआ पानी जल्दी पचता है। कुनकुना गर्म पानी भी जल्दी पचता है।
● भोजन के आरम्भ में पानी पीने से कमजोरी आती है और अन्त में पीने से मोटापा और पेट बढ़ता है।
● अपच (अजीर्ण) होने पर जल पीना औषधि के समान होता है। भोजन के पच जाने के बाद अर्थात भोजन करने के लगभग डेढ़-दो घंटे बाद जल पीना बलवर्द्धक होता है। भोजन के मध्य में थोड़ा जल पीना अमृत के समान और भोजन के अन्त में जल पीना विष के समान हानिकारक होता है, क्योंकि यह भोजन को पचानेवाले रसों को पतला करके, अपच की स्थिति निर्मित करता है, जिससे अजीर्ण व कब्ज होता है।
● खाली पेट पानी पीना अपथ्य है। यदि कुछ खाये बिना ही प्यास लगे, तो पानी न पी कर शर्बत पीना चाहिए या कुछ खा कर ही पानी पीना चाहिए।
● पानी पी कर तुरन्त दौड़ना श्रम करना, पढ़ना, बोझ उठाना, सवारी पर बैठना और वाद विवाद करना, ये सब अपथ्य हैं।
● भूख, शोक, क्रोध और चिन्ता की स्थिति में पानी पीना अपथ्य तथा शान्त, प्रसन्न और सहज अवस्था में पानी पीना पथ्य है।
● अनजान स्थान का पानी पीना, अजनबी व्यक्ति द्वारा दिया हुआ पानी पीना, अंधेरे स्थान पर बिना देखे पानी पीना और लेट कर पानी पीना अपथ्य है।
● पानी पी कर नाक से सांस छोड़ना अपथ्य है। पानी पीने के उपरान्त जो पहली सांस छोड़ी जाती है, उसे नाक से न छोड़ कर मुंह से ही छोड़ना चाहिए।