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ईरानी शिपिंग कंपनी ने भारत – रूस के बीच नए ट्रेड रूट के जरिए माल पहुंचाकर बनाया कीर्तिमान

ईरानी शिपिंग कंपनी ने भारत – रूस के बीच नए ट्रेड रूट के जरिए माल पहुंचाकर बनाया कीर्तिमान

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ईरान की शिपिंग कंपनी ने भारत और रूस के बीच नए ट्रेड रूट से माल पहुंचाकर नया कीर्तिमान रच दिया है। कंपनी ने रूस से भारत तक माल पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर का इस्तेमाल किया। 7200 किलोमीटर लंबे इस ट्रेड रूट में पाकिस्तान व अफगानिस्तान को बाइपास कर दिया गया है। अगर यही माल रूस के स्वेज नहर के जरिए भारत पहुंचता तो इसे 16112 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती। ऐसे में अगर यह व्यापार गलियारा सक्रिय हो जाता है तो न सिर्फ भारत और रूस के बीच ट्रेड में  इजाफा होगा, बल्कि ईरान और कजाकिस्तान के साथ भी व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ होंगे।

रूस से भारत किस रास्ते से पहुंचा माल

सेंट पीटर्सबर्ग में बना माल अस्त्रखान में कैस्पियन सागर के किनारे मौजूद रूसी पोर्ट सोल्यंका लाया गया। इसके बाद यहां से शिप के सहारे माल को ईरान के अंजली कैस्पियन बंदरगाह लाया गया। अंजलि बंदरगाह से माल को सड़क मार्ग के जरिए होर्मुज की खाड़ी के किनारे स्थित बंदर अब्बास लेकर जाया गया। फिर यहां से शिप के जरिए अरब सागर के रास्ते इस माल को मुंबई बंदरगाह पर पहुंचाया गया।

पाकिस्तान-अफगानिस्तान को किया गया बाइपास

अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे में रूस से निकला माल कैस्पियन सागर, कजाकिस्तान, ईरान और अरब सागर होते हुए भारत पहुंचेगा। इस रास्ते से अफगानिस्तान और पाकिस्तान को हटाने से परिवहन के दौरान माल को खतरा भी कम होगा। इसके अलावा माल ढुलाई में सरकारी दखलअंदाजी के कारण बेवजह लेटलतीफी से भी मुक्ति मिलेगी। पिछले कई साल से भारत, रूस और ईरान आपसी व्यापार को बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं।

समय की बचत के साथ माल ढोने में खर्चा भी होगा कम

अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मामलों के जानकारों का मानना है कि नये से परिवहन लागत में 30 फीसदी तक कमी हो सकती है। इतना ही नहीं, इससे भारत और रूस के बीच माल ढुलाई के समय में भी 40 फीसदी की बचत की जा सकती है। 2019 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा स्थापित करने पर सहमति जताई थी।

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