Home
National
International
Jharkhand/Bihar
Health
Career
Entertainment
Sports Samrat
Business
Special
Bright Side
Lifestyle
Literature
Spirituality

सांसदों के समर्थन वापसी पर भी मजबूत है प्रचंड सरकार

सांसदों के समर्थन वापसी पर भी मजबूत है प्रचंड सरकार

Share this:

यशोदा श्रीवास्तव

Nepal latest affairs : नेपाल में राजनीतिक स्थिरता पर ग्रहण खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। राजशाही खत्म होने के डेढ़ दशक बाद के हालात यही है। पांच वर्ष के लिए चुनी गई इस दौर की सरकारों ने अपना कार्यकाल नहीं पूरा किया और बेमेल गठबंधन की सरकारों का दौर जारी रहा। इस बार प्रचंड सरकार को दलीय भावनाओं से ऊपर उठकर जिस तरह प्रतिनिधि सभा के 275 सांसदों में से 268 ने समर्थन दिया था, उससे ऐसा लग रहा था कि इस बार की सरकार सचमुच प्रचंड है लेकिन इस सरकार के एक माह भीतर ही 20 सांसदों की बड़ी संख्या वाले राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने समर्थन वापसी की घोषणा कर सत्ता रूढ़ गठबंधन में खलबली पैदा कर दी। इस पार्टी के मुखिया रवि लामीछाने जो प्रचंड सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ गृहमंत्री भी थे,को नागरिकता विवाद के चलते न केवल मंत्री पद से हटना पड़ा उनकी सदस्यता भी रद हो गई। इन्हें मंत्रिमंडल में बनाए रखने की मांग न मानने पर इस पार्टी के तीन अन्य मंत्रियों ने भी विरोध स्वरूप त्याग पत्र दे दिया। रवि लामीछाने चितवन (दो) से प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए थे।
राजनीति में कदम रखने के पहले रवि लामीछाने पूरे नेपाल में तेज तर्रार पत्रकार की छवि धारण कर चुके थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि नेपाल के पहाड़ी समुदाय में उनकी अच्छी साख और ख्याति थी। फरवरी 1994 में काठमांडू से वंशानुगत नागरिकता प्राप्त किए रवि लामीछाने 2007 में अमेरिका चले गए और वहां की नागरिकता हासिल कर ली। 2014 में नेपाल वापसी के बाद भी वे 2017 तक अमेरिका के ही नागरिक थे। अमेरिका से नेपाल वापसी के बाद उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा और खूब ख्याति अर्जित की। इस दौरान उन्होंने न तो अमरीकी नागरिकता रद की और न ही नेपाली नागरिकता के लिए ही दुबारा आवेदन किया। रवि लामीछाने की बतौर अमरीकी नागरिक बिना वर्क परमिट के नेपाल में पत्रकारिता करने की शिकायत किसी ने नेपाल प्रेस कौंसिल से कर दी। प्रेस कौंसिल के इस शिकायत का संज्ञान लेते ही उन्होंने 2018 में अमरीकी नागरिकता त्याग दी लेकिन दोबारा नेपाल की नागरिकता के लिए आवेदन नहीं किया। इधर 2022 के आम चुनाव के कुछ ही माह पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के नाम से राजनीतिक दल बना लिया और चुनाव मैदान में उतर गए। संयोग से उनकी पार्टी को 20 सीटों पर शानदार कामयाबी भी मिली। लेकिन चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत कागजातों में नागरिकता संबंधी उनके कागजात कानूनी रूप से वैध नहीं थे।
14 दिसंबर 2022 को युवराज पौडेल और रविराज बसौला नामक दो अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक वाद दायर कर चुनौती दी कि रवि लामीछाने की नेपाली नागरिक नहीं हैं इसलिए उनकी प्रतिनिधि सभा की सदस्यता रद कर उन्हें सभी वैधानिक पदों से मुक्त किया जाए। 25 जनवरी 2023 से लगातार 72 घंटे की सुनवाई के बाद 27 जनवरी को कार्यकारी प्रधान न्यायाधीश हरी सिंह कार्की ने फैसला सुनाया कि रवि लामीछाने नेपाल के नागरिक नहीं हैं। वे संवैधानिक पद पर नहीं रह सकते,उनकी प्रतिनिधि सभा की सदस्यता भी अवैध है।
इस तरह जिस धूमकेतु की तरह रवि लामीछाने सत्ता के शिखर तक पहुंचे थे,उसी रफ्तार में धराशाई भी हो गए। नेपाल की राजनीति में इसे रवि लामीछाने और उनकी पार्टी के प्रचंड सरकार से विदाई को ताजा ताजा बनी प्रचंड सरकार के लिए सिर मुड़ाते ओले पड़ने जैसा माना जा रहा है। रवि लामीछाने प्रकरण को लेकर प्रचंड और ओली के बीच हल्का फुल्का तनाव हो भी जाय तो भी प्रचंड सरकार पर खतरे जैसी बात नहीं है। रवि लामीछाने की पार्टी ओली के गठबंधन के रास्ते उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की शर्त पर प्रचंड सरकार में शामिल हुई थी। ओली के पैरवी पर ही आनन फानन पर रवि लामीछाने की नेपाली नागरिकता बहाल हुई। इसी आधार पर ओली रवि लामीछाने को फिर से गृहमंत्री बनाए जाने का दबाव बना रहे थे लेकिन इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय में फिर एक याचिका दायर हो गई कि बिना प्रतिनिधि सभा का सदस्य हुए किसी को मंत्रिमंडल में शामिल न किया जाए।
बता दें कि भारत की तरह नेपाल में भी ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति छ माह तक बिना किसी सदन का सदस्य रहे मंत्री बन सकता है।
रवि लामीछाने और उनकी पार्टी के प्रचंड सरकार से हटने को नेपाल की राजनीति में भूचाल या ओली प्रचंड के बीच मतभेद की दृष्टि से देखा जाने लगा है। लेकिन प्रचंड पर इसका असर इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि ओली भी जानते हैं कि सिर्फ उनके समर्थन से ही प्रचंड सरकार नहीं बनी है, नेपाली कांग्रेस का भी प्रचंड को भरपूर समर्थन है भले ही वह सरकार में न हो। भारी समर्थन की ताकत के बल पर ही प्रचंड के इरादे काफी मजबूत हैं, प्रधानमंत्री के रूप में वे अपने तीसरे कार्यकाल को किसी के हाथ की कठपुतली बनकर नहीं पूरा करना चाहेंगे लेकिन अपने गठबंधन सहयोगियों का सम्मान भी उनकी प्राथमिकता में है लेकिन अपने मंत्रिमंडल के प्रमुख सहयोगी और गृहमंत्री रवि लामीछाने को लेकर प्रचंड के स्टैंड ने साफ कर दिया कि वे न तो ओली की कठपुतली बने हैं और न ही चीन के झांसे में ही फंसे हैं। उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा भारत की करने का भी एलान कर अपने स्वभाव में बदलाव का संकेत दिया है जो प्रचंड और भारत को लेकर किसी शंका आशंका की गुंजाइश को भी खारिज करती है।

Share this: