Home
National
International
Jharkhand/Bihar
Health
Career
Entertainment
Sports Samrat
Business
Special
Bright Side
Lifestyle
Literature
Spirituality

सलाम तो बनता है : अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की गरिमा की लड़ाई लड़ रही इंडिया की यह बेटी, इतिहास बनाने…

सलाम तो बनता है : अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की गरिमा की लड़ाई लड़ रही इंडिया की यह बेटी, इतिहास बनाने…

Share this:

Thinking and talent speaks, hindrances can never hide. सोच और प्रतिभा बोलती है। बाधाएं इन्हें ढक नहीं सकतीं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है अमेरिका में रहने वाली इंडियन बेटी ने। नाम है प्रसिद्धा और उम्र मात्र 17 साल। अमेरिका के वर्जीनिया राज्य की फेयरफैक्स काउंटी में रहने वाली भारतीय मूल की प्रसिद्धा पद्मनाभन की चिंता अपने भविष्य को लेकर नहीं है, बल्कि इतिहास को लेकर है। यही कारण है कि वह अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की गरिमा की लड़ाई निडर होकर लड़ रही है। किसी भी प्रकार की आलोचना की उसे परवाह नहीं है। उसकी सोच में संघर्ष है और संघर्ष कठोर परिस्थितियों में ही तपता है। हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कहा करते थे कि संघर्ष की तलवार रेशम के तकिए पर नहीं, चट्टान पर धार हासिल करती है। कुछ कुछ ऐसा ही उदाहरण अमेरिका में प्रसिद्धा प्रस्तुत कर रही है।

इतिहास में बदलाव की शुरुआत

जानकारी के अनुसार, अमेरिकी स्कूलों में इतिहास के पाठ्यक्रम में महिलाओं और खासतौर पर अश्वेत महिलाओं के योगदान को बहुत कम लिखा गया है। प्रसिद्धा की कोशिश से पहली बार अमेरिका के स्कूली पाठ्यक्रम में महिलाओं को उनका उचित स्थान मिलने की उम्मीद जगी है। फेयरफैक्स काउंटी स्कूल डिस्ट्रिक्ट में इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है।

तमिलनाडु से है प्रसिद्धा का रिश्ता

अमेरिका के टेक्सास में जन्मीं प्रसिद्धा के माता-पिता तमिलनाडु से हैं। प्रसिद्धा अंग्रेजी और तमिल दोनों बोल लेती हैं। अपनी भारतीय विरासत और एक महिला के तौर पर पहचान को प्रसिद्धा बहुत गंभीरता से लेती है। प्रसिद्धा को अपनी स्कूली किताबों में महिलाओं के योगदान का जिक्र बहुत ही कम मिलता था। यह बात उसे परेशान करती थी, जबकि स्कूली पाठ्यक्रम से बाहर जब उसने खुद रिसर्च करना शुरू किया तो अमेरिका के इतिहास में महिलाओं का बड़ा योगदान मिला। इनमें भी अश्वेत महिलाओं का योगदान खास था, मगर यह सब कुछ स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल नहीं था।

प्रसिद्धा ने बनाया NGO

साल 2020 में कोरोना काल में ही प्रसिद्धा ने विमेन फॉर एजुकेशन, एडवोकेसी एंड राइट्स (वियर) के नाम से एक एनजीओ बनाया। इसके जरिये उसने चेंज.ओआरजी पर एक याचिका दायर कर इतिहास के पाठ्यक्रम में महिलाओं को सही योगदान देने की मुहिम छेड़ी। प्रसिद्धा बताती हैं कि शुरू में उन्हें बहुत ही उपेक्षा मिली। छात्र और पेरेंट्स दोनों ही इस मुहिम का महत्व नहीं समझ रहे थे। फिर जैसे-जैसे लोगों का ध्यान इस मुहिम पर गया, उन्हें ऑनलाइन विरोध का भी सामना करना पड़ा।

5000 लोगों ने याचिका पर किए हस्ताक्षर

इन बातों ने प्रसिद्धा को और मजबूत कर दिया। आज उनकी याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या पांच हजार से ज्यादा है। उनकी मुहिम का महत्व पब्लिक स्कूलों की नियामक संस्था फेयरफैक्स काउंटी पब्लिक स्कूल ने समझा। एफसीपीएस की एजुकेशन स्पेशलिस्ट डेबोरा मार्च ने प्रसिद्धा को काउंटी के टीचर्स से जोड़ा। कोरोना काल के दौरान ही प्रसिद्धा ने ऑनलाइन टीचर्स के साथ मिलकर पाठ्यक्रम में बदलाव शुरू किया। प्रसिद्धा कहती हैं कि उनका ध्येय पूरे अमेरिका में महिलाओं के इतिहास को पहचान दिलाना है।

Share this: