राज्य में बेल, काला शीशम, वाइल्ड धतूरा, चंदन, आडू फल आदि इस श्रेणी में शामिल है। यह रिपोर्ट किसी ऐसी- वैसी संस्था की नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की है।
Jharkhand latest Hindi news : आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की झारखंड से भी कई पेड़ पौधे तेजी से गायब हो रहे हैं। इनके गायब होने का सिलसिला कुछ इस हद तक बढ़ता जा रहा है कि अब ये पौधे विलुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में शुमार होने लगे है तो कुछ संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल कर लिए गए हैं। बेल, काला शीशम, वाइल्ड धतूरा, चंदन, आडू फल आदि इस श्रेणी में शामिल है। यह रिपोर्ट किसी ऐसी- वैसी संस्था की नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की हैं।
कैसे तय होती है श्रेणी
आपको बता दें किसी भी पेड़ पौधों को विलुप्त प्राय या संकटग्रस्त श्रेणी में रखे जाने का एक पैमाना होता है। तय पैमाने के मुताबिक अगर किसी खास क्षेत्र में 20 वर्ष पहले अगर किसी पेड़ की संख्या 1000 के आसपास थी और वर्तमान में वह घटकर 500 के आसपास रह गया है तो वह संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हो जाएगा। इसी तरह अगर कोई फल या फूल के पौधे की सड़कें 100 से भी कम मिलती है तो उसे अति विलुप्त की श्रेणी में रखा जाता है।
कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है गायब हो रहे हैं पेड़-पौधे
प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड में कई ऐसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं जिसका महत्व न सिर्फ आध्यात्मिक है, बल्कि उसका जुड़ाव सामाजिक भी है और औषधीक भी। पीपल, बेल आदि इनमें शामिल हैं। परंतु, दुर्भाग्य कि ऐसे पौधे अब शायद ही लगाए जा रहे हैं जबकि विकास के नाम पर दिन प्रति दिन इनका सफाया हो रहा है। कहा जाता है बेल की जड़ में भगवान शिव वास करते हैं, जबकि एक-दूसरे से जुड़े इसके पत्ते त्रिदेव कहे जाते हैं।