आनंद सिंह
Ranchi news : आप जैसे ही गूगल पर सर्च करेंगे वाटर कलर आर्टिस्ट, झारखंड आपको सबसे पहले टॉप 5 में एक ही नाम दिखेगाः प्रवीण करमकार। प्रवीण करमकार एक ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने वाटर कलर पर सबसे ज्यादा काम किया है और उनकी इसी कला ने उन्हें भारत तो छोड़िए, इटली के चार-पांच चक्कर, थाईलैंड के कई चक्कर, श्रीलंका और बांग्लादेश के कई चक्कर लगवाए। ये चक्कर इंटरनेशनल कांफ्रेंस और वर्कशॉप के लिए लगाए गएःपुरस्कार देने की मंशा से। प्रवीण आज की तारीख में वाटर कलर आर्ट में सबसे ज्यादा चर्चित हैं।
जैसा अक्सर बड़े कलाकारों के साथ होता है, वैसा ही प्रवीण के साथ भी हुआ। क्या हुआ? प्रवीण ने किसी आर्ट कॉलेज से कोई डिग्री नहीं ली। उन्होंने मारवाड़ी कॉलेज से एकाउंट्स में ग्रेजुएशन किया लेकिन मन उनका चित्रकारी में ही था। चित्रकारी में भी वाटर कलर ही क्यों? प्रवीण ने इसका बेहद करुण जवाब दिया। उन्होंने बतायाः मैं रांची में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाला लड़का था। घर में पिताजी कमाने वाले थे। इतने पैसे थे नहीं कि अपने शौक पूरे करने के लिए ऑइल कलर खरीदूं। 90 के दशक में यह बेहद महंगा होता था। मैंने वाटर कलर को ही चुना क्योंकि उसमें पैसे कम लगते थे।
यह पैसा ही था, जिसने प्रवीण को वॉटर कलर की तरफ खींचा। पैसे होते तो शायद हम लोग प्रवीण के रुप में एक वॉटर कलर आर्टिस्ट को शायद ही देख पाते…! फिर वह ऑइल कलर आर्टिस्ट के रूप में अपना कहीं स्थान बनाने की कोशिश कर रहे होते।
प्रवीण उन लोगों के लिए एक उदाहरण हैं, जिन्होंने कला सीखने के लिए अपने सीनियर्स पर भरोसा किया, उनकी संगत की। प्रवीण के पास सीखने की उम्र में कोई साधन-संसाधन तो था नहीं। लेकिन, ललक बड़ी जबरदस्त थी उनके भीतर। वह रविवार का इंतजार करते थे और रविवार को अनेक सीनियर आर्टिस्ट के पास वह जाते थे। वहां काम करके उन्हें दिखाते थे। जो करेक्शन्स होते थे, उसे ध्यान में रखते। वैसे तो उन्हें कई सीनियर्स ने सिखाया पर मूल रुप से वह सर्वश्री ताड़क शंकर दास, हरेन ठाकुर और यूसी झा का नाम लेते हैं। इन तीनों ने उन्हें वक्त-बेवक्त कला की गंभीरता सिखाई और कलर के साथ क्या कांबिनेशन होना चाहिए, कहां चटख रंग का इस्तेमाल करना है, कहां लाइट कलर का इस्तेमाल करना है, बेस कितना स्ट्रांग रखना है, कितना लाइट….ये सब सिखाया।
पैसे में कितनी ताकत होती है, यह तो हम सभी जानते हैं। जिनके पास पैसे नहीं होते, उन पर क्या बीतती है, यह समझना हो तो प्रवीण से समझें। प्रवीण बताते हैः तब नेट का जमाना नहीं था। मैंने मारवाड़ी कॉलेज में एकाउंट्स ऑनर्स में एडमिशन तो ले लिया क्योंकि नंबर अच्छे आए थे लेकिन आर्ट कॉलेज में आर्ट की पढ़ाई होती है, यह मुझे नहीं पता था। जब पता चला तो मेरी उम्र 19 साल से ज्यादा की हो चुकी थी। फिर, जब कोलकाता के एक रेपुटेड कॉलेज में दाखिले का सोचा भी तो पता चला कि 21 साल की उम्र से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मैं उस एज को भी क्रास कर गया था। पैसे नहीं थे तो सूचना का साधन भी नहीं जुटा पाता था। अगर पैसे होते, सूचना का साधन होता तो शायद मैं आर्ट कॉलेज में दाखिला ले पाता। आर्ट कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाने के कारण कई लोग आज भी मुझे आर्टिस्ट नहीं समझते। आर्ट कालेज की डिग्री रांची में मायने रखती है लेकिन इटली, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देशों में इसकी कोई अहमियत नहीं। ये कई बार हुआ। ये बात अलग है कि मैंने बंगीय संगीत परिषद, कोलकाता और प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़, दोनों ही स्थानों से आर्ट में डिप्लोमा हासिल किया है लेकिन जिन्हें वैल्यू नहीं देना है, वो नहीं देते।
शुरुआती दिनों में प्रवीण ने आउटडोर पेंटिग्स खूब बनाईं। वह जोश और जुनून से लबरेज थे। उनके साथ मित्रों का एक दल भी था, जो दीवारों पर पेंटिग्स बनाते थे। चूंकि सीखते-सीखते उन्हें बेस और कलर सेंस का इस्तेमाल करना आ गया था, इसलिए उन्हें बहुत तकलीफ नहीं हुई। ग्रेजुएशन करने के बाद जब वह कला को लेकर गंभीर हुए तो उन्होंने फेसबुक पर, यूट्यूब पर लोगों का काम देखा। अपनी स्किल का इस्तेमाल उन्होंने बनी-बनाई पेंटिग्स में ऐड ऑन करके किया। वह दूसरों की पेंटिग्स को देखते और उस पर अलग सिरे से काम करते। पुराने सीनियर्स की सिखाई गई बातों को याद रखते और नई चित्रकारी के प्रयास शुरु कर देते।
झारखंड में झूमर का बेहद महत्व है। यह आदिवासियों का डांस फार्म है और राज्य सरकार इस पर दिल खोल कर खर्चा करती है। झूमर, प्रवीण के दिल के काफी करीब रहा। उन्होंने अपने प्रोफेशनल लाइफ में झूमर को सबसे ऊपर का स्थान दिया। एक 90 का दशक था और आज का दिन हैः प्रवीण को झूमर ने और झूमर को प्रवीण ने जोड़ लिया है। झूमर के अलग-अलग फार्मेट्स को प्रवीण ने नए-निराले अंदाज में पेश किया और दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए। अगर यह कहा जाए कि झूमर की पेंटिग्स ने प्रवीण को स्थापित कर दिया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रवीण ने झूमर पर सैकड़ों पेंटिग्स (वाटर कलर) बनाई हैं और विविध ट्राइबल सरकारों ने उन पेंटिग्स की भरपूर प्रशंसा भी की है।
वाटर कलर के बारे में प्रवीण कहते हैं कि यह कला का सबसे कठिन माध्यम है। इसमें तन्मयता तो चाहिए ही, रंगों के मन-मिजाज को सब्जेक्ट के साथ मिलाना और अनुपात का निर्धारण करना सबसे कठिन होता है। लेकिन, कहते हैं न कि लगातार मेहनत करने से सफलता झक मार कर आपके पास पहुंचती है। यही प्रवीण के साथ भी हुआ।
अपने 51 साल के जीवन में प्रवीण को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं। वह कैमलिन कलर कांपटीशन के भी विजेता रहे हैं। वह रांची के यूनियन क्लब में बीते 22 साल से अपना काम तो कर ही रहे हैं, जवाहर लाल नेहरू कला केंद्र, रांची में वरिष्ठ कलाकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा वह जेवीएम, श्यामली, रांची में गेस्ट फैकल्टी के रूप में भी जुड़े हुए हैं और सैकड़ों बच्चों को ऑनलाइन इस कला की शिक्षा भी दे रहे हैं।