Latest News Agriculture: सेहत के लिए काजू बेहद फायदेमंद ड्राई फ्रूट है। आज इसकी मार्केट प्राईस 800 से 1000 के बीच है। जो अमूमन गरीबों के पहुंच से दूर ही रहता है। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि 1000 रुपये किलो बिकने वाला यह काजू अपने ही देश के एक जिले में कौड़ियों के मोल से खरीदा जाता है। आपके मन में इस बात की जिज्ञासा हो रही होगी की आखिर वह कौन सा जगह है जहां सस्ते दाम पर में काजू की खरीद बिक्री होती है।
यह जगह है झारखंड का जामताड़ा । आप झारखंड की धरती पर होने वाली काजू की खेती के बारे में जानकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे। यहां पैदा होने वाला काजू मात्र 30 से 40 रुपये किलो में मिल जाता है। आपके मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर महंगा बिकने वाला काजू के इतना सस्ता होने की वजह क्या है। सूचना के मुताबिक झारखंड में हर साल हजारों टन काजू की पैदावार होती है. जबकि यहां सड़क किनारे महिलाएं 20 से 30 रुपये किलो काजू बेचती नजर आएंगी।
काजू नगरी के 50 एकड़ में लगे हैं बागान
ब्रिटिश के समय में झारखंड के कुछ जगह पर काजू की खेती होती थी, आज वे सारे बगान अस्तित्व में नहीं है। परंतु अभी जामताड़ा के नाला गांव में करीब 50 एकड़ जमीन पर काजू की खेती की जा रही है। आज झारखंड में यह काजू नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां काजू के बड़े-बड़े बागान हैं।
1990 से डिप्टी कमिश्नर के प्रयास से हो रही खेती
झारखंड के इस हिस्से में वर्ष 1990 के आसपास उस समय के डिप्टी कमिश्नर ने उड़ीसा के कृषि वैज्ञानिकों की मदद से भू परीक्षण कराया था। जिसमें वहां की जलवायु और मिट्टी काजू की खेती के लिए अनुकूल पाया गया। उनके प्रयास से वन विभाग के द्वारा काजू की प्लांटेसन की गई। जो आगे चलकर बड़े पेड़ बन गए। आज यहां हजारों की संख्या में काजू के पेड़ नजर आयेंगे।
प्रोसेसिंग के आभाव में कौड़ियों के भाव बिकता है काजू
इन पौधो में पहली बार आये काजू के फल को देखकर गांव वाले गदगद हो गए। किसान बागान से काजू चुनकर घर लाने लगे और उसे सड़क किनारे बैठकर औने-पौने दाम में बेचने लगे। सरकार ने कोई प्रोसेसिंग प्लांट नहीं लगाया। इसलिए फलों से बेहतर काजू निकालना संभव नहीं हो पाया था। आगे चलकर बंगाल के व्यापारी इसे थोक भाव में खरीदकर ले जाने लगे। व्यापारी तो प्रोसेसिंग के बाद मुनाफा कमा लेते हैं, लेकिन ग्रामीणों इसे कौड़ियों के भाव बेच देते है।
रोजगार मिलने से खुश हैं किसान
यहां के किसानों के माल की मार्केटिंग या ब्रांडिंग भी नहीं हो पाती है। जिस कारण भी इसे सही कीमत नहीं मिल पाता हैं। सबसे अहम बात यह है कि किसानों को मिलने वाली सुविधाएँ भी काफी कम है इसके बाद भी किसान इस खेती से खुश हैं। इसकी वजह इस खेती से मिला रोजगार है। जिला प्रशासन और वन विभाग ने यहां के किसानों की रुचि को देखते हुए गंभीर है। विभाग इस वर्ष करीब 50 हजार काजू का पौधा लगाने का प्लान किया है।