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पूर्व सीएम चंपई सोरेन के रुख से सीएम हेमंत सन्न, समझ में नहीं आ रहा क्या करें…

Hemant Soren and champai Soren

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Ranchi news, political crisis in jmm : जमीन घोटाला मामले में हेमंत सोरेन की ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद बड़े विश्वास के साथ पार्टी ने और पूरे गठबंधन ने चंपई सोरेन पर विश्वास जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। वाकई उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाया और झारखंड को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास किया। हेमंत सोरेन को हाई कोर्ट से बेल मिलने के बाद वह जेल से बाहर आए और तुरंत चंपई सोरेन को हटाने और फिर हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने के बाद चंपई सोरेन ने अपना अपमान महसूस किया और इसके बाद शुरू हो गया जुदा-जुदा रास्ता। आज उन्होंने एक प्रकार से पार्टी से अलग रास्ता अपना लिया है और उनके रुख को देखकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सन्न हो गए हैं। यह सभी जानते हैं कि कोल्हान क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव है। अगर वह पार्टी छोड़कर जाते हैं तो चुनाव में इसका असर पड़ सकता है। ऐसा बताया जा रहा है कि वह भाजपा में जा सकते हैं और भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। उनके साथ अगर और विधायक भाजपा में गए तो उसके नफा नुकसान की स्थिति भी भविष्य में सामने आएगी।

मार्मिक पीड़ा का जिक्र 

झारखंड के लोगों के नाम जारी पत्र में उन्होंने अपनी मार्मिक पीड़ा का जिक्र किया है, लिखा है- मीडिया में चल रही अटकलों का जिक्र करते हुए सोरेन ने लिखा, ‘जोहार साथियों, आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया।  राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

अपमान का कड़वा घूंट 

पूर्व सीएम ने कहा, ‘जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया।’ उन्होंने आगे कहा, ‘इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। 

लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ नहीं

सोरेन ने लिखा, ‘क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।’ उन्होंने आगे लिखा, पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता।

आंसुओं को संभालने में लगा था 

सोरेन ने लिखा, ‘पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।

आगे के रास्ते का जिक्र 

सोरेन ने लिखा, ‘मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं। चंपई सोरेन के पत्र में झलक रहा भाव उनकी पीड़ा ही नहीं, उनकी आगे की सोच को साफ कर देता है।

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