Ranchi news, dharm, religious, Dharma -Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन के तत्वावधान में रातु राजागढ़, रांची में शिव गुरु महोत्सव आयोजित किया गया। उक्त कार्यक्रम का आयोजन महेश्वर शिव के गुरु स्वरूप से एक-एक व्यक्ति का शिष्य के रूप में जुड़ाव हो सके, इसी बात को सुनाने और समझाने के निमित्त किया गया। शिव शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी के संदेश को लेकर आयी कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव केवल नाम के नहीं, अपितु काम के गुरु हैं। शिव के औढरदानी स्वरूप से धन, धान्य, संतान, सम्पदा आदि प्राप्त करने का व्यापक प्रचलन है, तो उनके गुरु स्वरूप से ज्ञान भी क्यों नहीं प्राप्त किया जाये? किसी सम्पत्ति या सम्पदा का उपयोग ज्ञान के अभाव में घातक हो सकता है।
दीदी बरखा आनन्द ने कहा- शिव जगतगुरु हैं
दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव जगतगुरु हैं। अतएव, जगत का एक-एक व्यक्ति ; चाहे वह किसी धर्म, जाति, सम्प्रदाय, लिंग का हो, शिव को अपना गुरु बना सकता है। शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारम्परिक औपचारिकता अथवा दीक्षा की आवश्यकता नहीं है। केवल यह विचार कि ‘‘शिव मेरे गुरु हैं’’ शिव की शिष्यता की स्वमेव शुरुआत करता है। इसी विचार का स्थायी होना हमको-आपको शिव का शिष्य बनाता है।
साल 1974 में शिव को अपना गुरु माना
आप सभी को ज्ञात है कि शिव शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी ने सन् 1974 में शिव को अपना गुरु माना।1980 के दशक तक आते-आते शिव की शिष्यता की अवधारणा भारत भूखण्ड के विभिन्न स्थानों पर व्यापक तौर पर फैलती चली गयी। शिव शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानन्दजी और उनकी धर्मपत्नी दीदी नीलम आनन्द जी द्वारा जाति, घर्म, लिंग, वर्ण, सम्प्रदाय आदि से परे मानव मात्र को भगवान शिव के गुरु स्वरूप से जुड़ने का आह्वान किया गया।
यह अवधारणा पूर्णतः आध्यात्मिक है
शिवकुमार विश्वकर्मा ने कहा कि यह अवधारणा पूर्णतः आध्यात्मिक है, जो भगवान शिव के गुरु स्वरूप से एक एक व्यक्ति के जुड़ाव से सम्बन्धित है। उन्होंने कहा कि शिव के शिष्य एवं शिष्याएं अपने सभी आयोजन ‘‘शिव गुरु हैं और संसार का एक-एक व्यक्ति उनका शिष्य हो सकता है’’, इसी प्रयोजन से करते हैं। ‘‘शिव गुरु हैं’’ यह कथ्य बहुत पुराना है। भारत भूखंड के अधिकांश लोग इस बात को जानते हैं कि भगवान शिव गुरु हैं, आदिगुरु एवं जगतगुरु हैं। हमारे साधुओं, शास्त्रों और मनीषियों द्वारा महेश्वर शिव को आदिगुरु, परमगुरु आदि विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया है।
शिव का शिष्य होने में मात्र तीन सूत्र ही सहायक है
पहला सूत्र : अपने गुरु शिव से मन ही मन यह कहें कि ‘‘हे शिव, आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिए।
दूसरा सूत्र: सबको सुनाना और समझाना है कि शिव गुरु हैं, ताकि दूसरे लोग भी शिव को अपना गुरु बनायें।
तीसरा सूत्र : अपने गुरु शिव को मन ही मन प्रणाम करना है। इच्छा हो, तो ‘‘नमः शिवाय’’ मंत्र से प्रणाम किया जा सकता है।
अंधविश्वास या आडम्बर का कोई स्थान नहीं
इन तीन सूत्रों के अलावा किसी भी अंधविश्वास या आडम्बर का कोई स्थान बिलकुल नहीं है। इस महोत्सव में समीपवर्ती क्षेत्रों से लगभग 05 हजार लोग शामिल हुए। इस कार्यक्रम में शिवकुमार विश्वकर्मा, इन्द्रभूषण सिंह, कमलेश सिंह, रामाकान्त सिंह, रमेश मल्लिक, सवित्री देवी समेत अन्य वक्ताओं ने भी अपने-अपने विचार दिये।