Parliament election, Dhanbad news, Dhanbad breaking news, Dhanbad update, Dhanbad election, Dhanbad labour and election : देश की कोयला राजधानी धनबाद कोयला मज़दूरों की वोट एक बड़ी ताकत माना जाता है। लेकिन, शहरी क्षेत्र के मतदाता धनबाद लोकसभा क्षेत्र में निर्णायक फैक्टर माने जाते हैं। छह विधानसभा क्षेत्रों ; यथा में झरिया, धनबाद, सिन्दरी, निरसा, चंदनकियारी और बोकारो विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यदि बोकारो विधानसभा क्षेत्र को छोड़ दें, तो सभी विधानसभा क्षेत्र में कोयला मज़दूर वोटरों की तादाद अच्छी है। इनका असर वोटों पर भी साफ दिखता है। एक-दो लोकसभा चुनावों को यदि छोड़ दें, तो 1952 से लेकर 1977 तक यहां कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है।
जब मजदूरों के मसीहा के रूप में उतरे एके राय
1977 में पहली बार जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन से उपजी जनता पार्टी ने कोयला मजदूरों के मसीहा के नाम से विख्यात कॉमरेड एके राय को अपना उम्मीदवार बनाया था। यही समय था, जब आज़ादी के बाद पहली बार जनता ने अपना मत जनता पार्टी को देकर धनबाद की राजनीति पलट दी थी। पहली बार देश की कोयला राजधानी धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कोयला मजदूर संगठन के वर्चस्ववाले इलाके में शहरी क्षेत्र के वोटर निर्णायक साबित हुए।
1952 से लेकर 1977 तक धनबाद में मजबूत रही कांग्रेस
छह विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करनेवाले धनबाद लोकसभा क्षेत्र में धनबाद, झरिया, निरसा, सिन्दरी, चंदनकियारी और बोकारो विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यदि बोकारो विधानसभा क्षेत्र को छोड़ दें, तो बाकी विधानसभा क्षेत्रों में कोयला मजदूर वोटरों का ही वर्चस्व रहा है। 1952 से लेकर 1977 तक धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ काफी मजबूत रही है। यहां से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था। 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में भी धनबाद की जनता ने एके राय को ही अपना मत देकर विजयी बनाया था। वह इस चुनाव में मासस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े थे।1984 में इंदिरा गांधी की हुई हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह को सहानभूति की लहर का फायदा मिला और एक बार फिर कांग्रेस ने यह सीट हासिल कर ली। लेकिन, 1989 के हुए चुनाव में मजदूर नेता मासस के एके राय ने एकबार फिर बाजी मार ली। 1991 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने यहां से एक रणनीति के तहत धनबाद के शहीद रणधीर वर्मा की पत्नी रीता वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया। सर्वविदित है कि रणधीर वर्मा डियूटी के दौरान धनबाद में ही पंजाब के आतंकवादियों की गोली का शिकार हो शहीद हो गये थे। रीता वर्मा के नॉमिनेशन में तत्कालीन अविभाजित बिहार के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष कैलाशपति मिश्र ने खुद शिरकत कर भाजपा कार्यकर्ताओं को इस सीट की अहमियत समझा दी थी।
भाजपा की यह रणनीति सफल रही और पहली बार कांग्रेस के गढ़ में केसरिया लहराया था। तब से लेकर 1999 तक भाजपा इस सीट पर कब्ज़ा जमाये रखा। लेकिन, इस दौरान भाजपा के कई गुट बन गये और उसका असर दिखा 2004 के लोकसभा चुनाव में जब मजदूर संगठन से जुड़े कांग्रेस नेता चंद्रशेखर दुबे ने कांग्रेस की इस परम्परागत सीट पर एक बार फिर कांग्रेस का परचम लहराने में सफल रहे।
जब धनबाद में भाजपा के लिए गुटबंदी बनी घातक
इस जीत ने जहां कांग्रेसियों में उत्साह भरा, वहीं भाजपा की गुटबंदी भी खुल कर सामने आ गयी। यही वह वक्त था, जब कोयला मज़दूर सूदखोरों का दंश झेल रहे थे। यही वजह थी कि कोयला मज़दूरों ने ज़म कर वोट किया। दूसरी ओर, भाजपा का शहरी वोट पार्टी की गुटबंदी का शिकार हो गया। इस तरहा यहां से भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। 2009 में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी एक ऐसे नेता को सामने लाना, जो इन सब पर भारी पड़ता हो, तभी पशुपतिनाथ सिंह के नाम को भाजपा ने आगे किया।
पशुपतिनाथ सिंह भाजपा के एक ऐसे नेता रहे हैं कि पार्षद से लेकर धनबाद विधानसभा का तीन बार नेतृत्व कर चुके थे और प्रदेश सरकार में मंत्री पद भी सम्भाल चुके थे। इस निर्विवाद नेता ने किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखा था। भाजपा ने इन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और इसी चुनाव में पार्टी ने अपनी खोई ज़मीन वापस पा ली। भाजपा ने चुनावी राजनीति के अजातशत्रु माने जानेवाले पशुपतिनाथ सिंह को 2014 और 2019 में भी अपना उम्मीदवार बनाया। धनबाद की जनता ने भी साबित किया कि सच में पशुपतिनाथ सिंह चुनावी मैदान के अजातशत्रु हैं। उन्होंने 2019 के चुनाव में कीर्ति आजाद को 05 लाख से अधिक मतों से पराजित किया था।
2024 के आगामी चुनाव में भाजपा ने ढुल्लू महतो को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, भाजपा के कई नेताओं ने दिल्ली की दौड़ लगायी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वहीं, कांग्रेस ने धनबाद सीट से अनुपमा सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। फिलहाल, स्थिति यह है कि धनबाद लोकसभा सीट पर चुनाव बहुत ही रोचक बन गया है।
धनबाद लोकसभा सीट का इतिहास
साल विजेता पार्टी
1952 पीसी बोस कांग्रेस
1957 पीसी बोस कांग्रेस
1962 पीआर चक्रवर्ती
1967 रानी ललिता राज्यलक्ष्मी निर्दलीय
1971 राम नारायण शर्मा कांग्रेस
1977 एके राय, मासस (जनतापार्टी समर्थित)
1984 शंकर दयाल शर्मा कांग्रेस
1989 एके राय मासस
1991 रीता वर्मा भाजपा
1996 रीता वर्मा भाजपा
1998 रीता वर्मा भाजपा
1999 रीता वर्मा भाजपा
2004 चंद्रशेखर दुबे कांग्रेस
2009 पीएन सिंह भाजपा
2014 पीएन सिंह भाजपा
2019 पीएन सिंह भाजपा
2019 पीएन सिंह पीएन सिंह को कुल वोट 827234, वोटों का प्रतिशत 66.03%, वहीं कृति आज़ाद कांग्रेस को मिले 341040 वोट। वोट का प्रतिशत 27.22 रहा।