Religious, Dharma-Karma, Spirituality, tree of kalptaru, Astrology, Dharm- adhyatm, religious : कल्पतरु को स्वर्ग का वृक्ष भी कहा जाता है। हमारे सनातन धर्म ने इसे यह मान्यता दी है। कहा जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, उसे यह वृक्ष पूरा करने में सक्षम है। इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। प्राचीन काल में साधु-संत कल्पवृक्ष के नीचे ध्यान लगाते थे और मनचाहा फल पाते थे। आपको बता दें इस दुर्लभ पेड़ की संख्या देश में बहुत ही कम है। समय के साथ-साथ इसकी संख्या और भी घटती जा रही है। ऐसे में झारखंड की लौह नगरी जमशेदपुर में स्वर्ग के पौधे उगाने का संकल्प एक शख्स ने न सिर्फ लिया है, बल्कि उसने इसकी खूबसूरत नर्सरी तैयार कर डाली है।
कुछ गिने-चुने शहरों में ही है इसकी उपलब्धता
कल्पवृक्ष की बात करें तो इसकी उपलब्धता देश के कुछ गिने-चुने शहरों में ही है। झारखंड की धरती इस मामले में धनी है। यहां रांची के डोरंडा में कुछ पेड़ हैं। इसके अलावा अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा नदी के किनारे और कर्नाटक के कुछ स्थानों पर कल्पतरु पाए गए हैं। अब जमशेदपुर से सटे गम्हरिया की एक नर्सरी में इसे विकसित किया जा रहा है। नर्सरी के संचालक वरुण कुमार के अनुसार उन्होंने कल्पतरु के बीज रांची के डोरंडा से मंगवाएं, इसके बाद इसे सुखाया और फिर हथौड़ा से उसे तोड़ा और अंत में इसे पाली ट्यूब में लगाया गया। आज उनकी नर्सरी में 218 कल्पतरु के पेड़ तैयार हैं।
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी
पुराणों की बात करें तो समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। इसे इंद्र के हवाले किया गया और इंद्र ने इसे हिमालय के उत्तर में स्थित सुरकानन वन में स्थापित कर दिया। कल्पतरु के पेड़ का हर भाग आयुर्वेद की दृष्टि से भी लाभकारी बताया गया है। बवासीर, किडनी, लीवर, फेफड़े आदि से जुड़ी बीमारियों के लिए इसे रामवाण माना गया है। हालांकि, पेड़ों की संख्या कम होने से रोगों के निदान में इसका उपयोग सर्वाधिक कम है।