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Health: हमारे शरीर की रक्षा के लिए कोशिकाएं करती हैं आत्महत्या : डॉ शशांक कुमार पाठक

Health: हमारे शरीर की रक्षा के लिए कोशिकाएं करती हैं आत्महत्या : डॉ शशांक कुमार पाठक

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Health news, dhanbad news, kumardhubi news: हमारी जिंदगी को महफूज रखने के लिए हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाएं भी आत्महत्या करती हैं। यह दिलचस्प वाकया डॉ शशांक कुमार पाठक (जेनेटिस्ट) ने बताया। जामताड़ा महिला महाविद्यालय में जीव विज्ञान के प्राध्यापक डॉ पाठक ने बताया कि हमारे शरीर में बहुत सी प्रकार की अलग-अलग कोशिकाएं बहुतायत में प्रतिदिन आत्महत्या कर लेती हैं। यह स्वयं  को नष्ट करके हमारे शरीर की रक्षा करती हैं। इस घटना को प्रोग्राम्ड सेल डेथ (एपोप्टासिस ) कहते हैं। इसके लिए डीएनए कोशिका की प्रारंभिक अवस्था में ही प्रोग्रामिंग कर लेता है। इस प्रोग्रामिंग में यदि कोशिका अपने गंतव्य पर नहीं पहुंच पाती है तो आत्महत्या कर लेती है। 

इनका नष्ट हो जाना ही शरीर के लिए हित में है

यह विशेष कार्य के लिए बनाई गई कोशिकाएं अपने कार्य के बाद अनावश्यक हो जाती हैं। इनका नष्ट हो जाना ही शरीर के लिए हित में है। एपोप्टासिस शब्द की व्याख्या सर्वप्रथम 1951 में ग्लूक्समैन ने की थी। तेज धूप की पराबैंगनी किरणों से त्वचा की कोशिकाओं की डीएनए टूट-फूट जाती है। ऐसी कोशिकाएं  आत्महत्या कर लेती हैं। यदि यह जीवित रह जाएंगी तो असामान्य कोशिका विभाजन के कारण कैंसर हो जाएगा। सच कहा जाए तो कोशिका जनन विविधता, जीर्णता और मृत्यु को नियंत्रित करके ही आज के आधुनिक जीव ब्रह्मांड में टिके हैं। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में जो टी- कोशिका विशिष्ट एंटीजीन के जवाब में एंटीबॉडी बनाने के लिए तैयार हो पाती हैं वो जीवित रहती हैं। शेष लगभग 95% कोशिकाएं जो लड़ने के योग्य नहीं बन पाती आत्महत्या कर लेती हैं।

… और यह एलर्जी उत्पन्न करती हैं

 कुछ कोशिकाएं हमारे शरीर की सेल्फ कोशा को पहचान नहीं पाती हैं यह एलर्जी उत्पन्न करती हैं और डीएनए इसका भी प्रोग्राम आत्महत्या करार देता है। ऐसा माना जाता है कि एक आतंकवादी जैसे जेब में साइनाइड लिए घूमता है और जैसे ही वह पकड़ा जाता है साइनाइड खाकर आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार शरीर की रक्षा के लिए बहुत सी  कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली में घूमती रहती हैं। यह अपने केंद्रक में ऐसे ही जिन को छुपाए रहती हैं और खतरा देखने पर या पकड़े जाने पर उसे जिन को अभिव्यक्ति कर आत्महत्या कर लेती हैं। एपोप्टासिस की सही जानकारी पूर्ण रूप से अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं मिल पाई है, लेकिन यह जीवन का आवश्यक अंग है की शरीर की  हजारों कोशिकाएं प्रतिदिन आत्महत्या करती हैं।

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