Jharkhand (झारखंड) के देवघर में भगवान भोलेनाथ का मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का शाश्वत केंद्र है। अवघड़दानी बाबा की कृपा में भक्तों की अटूट आस्था भक्ति की उज्जवल परंपरा को साबित करती है। यहां हर साल होलिका दहन के बाद हरिहर मिलन और फिर बैद्यनाथ मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है। इसके साथ ही रंगों का फगडोल होता है। इस फगडोल की परंपरा में भक्ति का ऐसा दृश्य देखने को मिलता है कि दिल आनंद की अनुभूतिओं से भर जाता है। इस बार भी शुक्ल पक्ष पूर्णिमा पर देवघर के बाबा मंदिर में हरिहर मिलन के साथ बाबा बैद्यनाथ का स्थापना दिवस मनाया गया। भगवान हरि के हर से मिलन के अवसर पर गर्भगृह में जमकर गुलाल उड़े। 17 मार्च की दोपहर 3 बजे से ही बाबा मंदिर में होली की परंपरा शुरू हो गई।
ढोल-नगाड़ों की थाप, मंदिर की परिक्रमा
दोहपर ढाई बजे बाबा का पट बंद कर दिया गया। उसके बाद दोपहर तीन बजे सरदार पंडा श्रीश्री गुलाबनंद ओझा ने राधा-कृष्ण मंदिर से राधा एवं भगवान कृष्ण यानी हरि जी को बाहर निकालकर फगडोल पर बिठाकर डोली को दोलमंच के लिए रवाना किया। इस अवसर पर नगरवासियों ने जमकर गुलाल अर्पित कर होली की शुरुआत की। ढोल-नगाड़ों की थाप पर डोली को बाबा मंदिर का परिक्रमा कराया गया। रात 01:10 बजे होलिका दहन के बाद फगडोल पर दोबारा हरि को मंदिर के पूरब द्वार से परिसर में प्रवेश कराने के बाद गर्भगृह में बाबा भोलेनाथ से मिलन कराया गया। इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर होली की बधाई दी।
हरि ने किया हर को स्थापित
परंपरा के अनुसार विश्वास किया जाता है कि फाल्गुन मास पूर्णिमा के अवसर पर ही रावण द्वारा महादेव को लंका ले जाने के क्रम में लघुशंका का एहसास हुआ। इससे निवृत्त होने के लिए ग्वाले के रूप में खड़े भगवान विष्णु यानी हरि के हाथ में कुछ समय के लिए शिवलिंग को पकड़ा दिया। हरि ने शिवलिंग लेने के बाद लघुशंका में बैठे रावण की परवाह किए बिना अपने हाथों से स्थापित कर दिया। मान्यता के अनुसार, तभी से हरि एवं हर का मिलन इस खास तिथि पर शुरू किया गया। तब से अब तक यह परंपरा चली आ रही है।