Patna News, Bihar news : बदलते जमाने के साथ लोग बदल रहे हैं, साथ ही उनकी सोच औऱ उनका नजरिया भी बदल रहा है। एक वक्त था, जब आजीविका के लिए ट्रांसजेंडर की पहचान नवजात बच्चों की नजरें उतारना और ट्रेनों में गाना-बजाना तक ही सीमित था। आज उनकी पैठ धार्मिक अखाड़ों के प्रमुख से लेकर न्यूज एंकर, नौकरी, पॉलिटिक्स और बिजनेस तक में है। इसी कड़ी में आज हम आपको ट्रांसजेंडर मोनिका दास से परिचय कराएंगे, जो अपने बूते न सिर्फ एक राष्ट्रीयकृत बैंक में बैंकर बनीं, बल्कि वह बिहार चुनाव की स्टेट आइकॉन भी है। आइए मोनिका को नजदीक से जानें….
बचपन किसी ट्रामा से कम नहीं था, परंतु गोल्ड मेडलिस्ट मोनिका ने कभी न मानी हार
बचपन में चाल-ढाल और बोलचाल से वो लड़कों जैसी हरकतें करती थीं पर उनकी पर्सनालिटी लड़कियों जैसी थी। मोनिका ने बताया कि उन्हें बचपन में काफी जिल्लत झेलनी पड़ती थी। उनके क्लासमेट्स उनका मजाक उड़ाते थे। यही नहीं, उनके भाई भी उनसे नाराज रहते थे। यह सब झेलना उनके लिए किसी ट्रामा से कम नहीं था। वह स्कूल से घर आकर काफी रोती थीं। स्कूल के ट्रॉमा के साथ-साथ घर पर ताने मन को काफी परेशान करते थें, परंतु, उसने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने नवोदय विद्यालय से 12वीं तथा पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन व पटना लॉ कालेज से एलएलबी किया। वह गोल्ड मेडलिस्ट भी हैं।
ट्रांसजेंडर होने से कोई नहीं चाहता था दोस्ती रखना
25 वर्ष की मोनिका पटना के हनुमान नगर स्थित सिंडिकेट बैंक में अक्टूबर 2015 से बतौर क्लर्क कार्यरत हैं। एक समय था जब मोनिका के घर वाले परेशान थें। मोनिका के ट्रांसजेंडर होने के कारण उनसे कोई दोस्ती नहीं रखना चाहता था। उन्हें बुली किया जाता था। मोनिका आज अपनी मेहनत के बल पर देश की पहली महिला ट्रांसजेंडर बैंकर और स्टेट इलेक्शन कमीशन की आइकन बनीं। यह भी पहली बार है, जब किसी ट्रांसजेंडर को विधानसभा चुनावों में पीठासीन पदाधिकारी बनाया गया है। मोनिका के पिता भगवान दास सेल्स टैक्स अफसर थे और उनकी मां अनीमा रानी बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हैं। मोनिका के दोनों भाई प्राइवेट बैंक में नौकरी करते हैं।