jharkhand: Can you put your hand in boiling oil, no, but this sir.., Jharkhand news, lohardaga news: जंगल, पहाड़, नदी-नालों से आच्छादित झारखंड पर्व त्योहारों के मामले में भी अपनी खासी पहचान रखता है। आदिवासी बहुल इस झार प्रदेश की अपनी परंपरा है, अपना इतिहास है, संस्कृति है, अपनी रीति है, रिवाज है। सरहुल यहां का खास पर्व है। आप कह सकते हैं यह पर्व नव वर्ष के अभिनंदन का है, उसके स्वागत का है। ऐसे में प्रकृति प्रेमी आदिवासी इसे हर्सोल्लास के साथ मनाते हैं। हाल ही में हमने इसे मनाया है। यहां हम आपको इस त्योहार से ही जुड़ी एक ऐसी बात बताएंगे, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे, दांतो तले उंगलियां दबा लेंगे। आइये बताते हैं…
पकवान बनाने को यहां हाथ ही करछल, हाथ ही छोलनी
यह बात आपको सुनने में आश्चर्य भले लगे पर है सच्चाई। हम आपको लेकर चलते हैं झारखंड के लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड स्थित उतका गांव। सरहुल की पूर्व संध्या पर यहां सदियों से एक अंगूठी परंपरा का निर्वहन होता आया है। गांव के पाहन, पुजारी और महतो द्वारा गांव के ही झखरा स्थल में सरहुल की पूर्व संध्या पर विधिवत पूजा-अर्चना की जाती हैं। इसके बाद गांव के पाहन द्वारा खौलते तेल में पकवान बनाए जाते हैं, वह भी बिना करछल, छोलनी की सहायता से। खौलते तेल में हाथ से बनाए गए ये पकवान बतौर प्रसाद ग्रामीणों के बीच बांटे जाते हैं।
यह दृश्य देखने को हजारों की जुटती है भीड़
हर वर्ष हिंदू नव वर्ष की शुरुआत के आसपास मनाए जाने वाले सरहुल के दौरान इस हैरतअंगेज कारनामे को देखने यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। इस वर्ष भी कुछ ऐसा ही हुआ। पाहन समेल उरांव, पुजार धनु उरांव व महतो ललित उरांव ने इस परंपरा का निर्वहन किया। इन्होंने 48 घंटे के उपवास के बाद पकवान बनाए ।इस आयोजन की देखने आसपास के गांवों से हजारों लोग पहुंचे। अपने गांव-खलिहान की सुख-समृद्धि की कामना करने वाले ये पाहन व अन्य पूजा से 15 दिन पहले से गांव के किसी भी व्यक्ति का छुआ हुआ खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करते। खुद ही बनाते और खाते हैं।
सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है और इसके बाद वाहन पूजा का महत्व द्वारा खोलते तेल में हाथ डालकर भोग लगाने के लिए पकवान बनाए जाते हैं।